राजस्थान के प्रमुख हिन्दू संत एवं सम्प्रदाय
1. दादू दयाल जी :-
- जन्म : अहमदाबाद (गुजरात)
- इनका पालन पोषण लोदीराम नामक ब्राह्मण ने किया।
- गुरु : ब्रह्मानन्द जी
- यह प्रारम्भ में सांभर (जयपुर) में रहते थे लेकिन बाद में आमेर (जयपुर) चले गये।
- इन्होंने अपना अंतिम समय नरैना (जयपुर ग्रामीण) में बिताया। (नरैना पहले जयपुर जिले में था वर्तमान में यह जयपुर ग्रामीण जिले में है।)
- 1585 ई. में इन्होंने आमेर (जयपुर) के राजा भगवन्तदास के साथ फतेहपुर सीकरी (आगरा) में मुगल बादशाह अकबर से मुलाकात की।
- इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया।
- इन्हें “राजस्थान का कबीर” भी कहा जाता है। क्योंकि जिस प्रकार निर्गुण भक्ति का संदेश कबीर दास जी ने दिया था उसी प्रकार निर्गुण भक्ति का संदेश इन्होंने दिया था।
- इन्होंने अपने उपदेश ‘ढुंढाडी भाषा’ में दिए।
- इनके सत्संग स्थल को ‘अलख दरीबा’ कहा जाता है।
- इन्होंने ‘निपख आंदोलन’ चलाया।
- इनके अनुसार शव को जलाना या दफना नहीं चाहिए बल्कि पशु पक्षियों के खाने के लिए खुले मैदान में छोड़ देना चाहिए।
- इनका शव भैराणा की पहाड़ी (दूदू) में रखा गया था। इस पहाड़ी को ‘दादू खोल’ या ‘दादू पालका’ कहा जाता है। (यह पहाड़ी पहले जयपुर जिले में थी वर्तमान में यह दूदू जिले में है।)
- मुख्य केंद्र : नरैना (जयपुर ग्रामीण), यहाँ फाल्गुन शुक्ल पंचमी से एकादशी तक इनका मेला लगता है।
- इनके मंदिर को ‘दादूद्वारा’ कहते हैं। जहाँ इनकी ‘वाणी’ (पुस्तक) की पूजा की जाती है।
- इन्होंने “दादू सम्प्रदाय” की स्थापना की।
- दादू सम्प्रदाय की शाखाएं : दादू सम्प्रदाय का विभाजन 5 शाखाओं में हो गया था। जैसे-
- खालसा : वे दादू पंथी जो नरैना को अपना मुख्य केंद्र मानते है वो खालसा कहलाते हैं।
- विरक्त : वे दादू पंथी जो घरबार छोड़ वैरागय धारण कर ले वो विरक्त कहलाते हैं।
- उतरादे : वे दादू पंथी जो हरियाणा चले गये उन्हें उतरादे कहा जाता है।
- खाकी : वे दादू पंथी जो खाकी कपड़े पहने लगे व शरीर पर राख लगाने लगे उन्हें खाकी कहा जाता है।
- नागा : वे दादू पंथी जिन्होंने कपड़ों का त्याग किया नागा कहलाते थे।
- प्रमुख शिष्य : इनके 52 प्रमुख शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है। जिनमें से कुछ प्रमुख शिष्य निम्न हैं-
- सुन्दरदास जी (बड़े) :-
- वास्तविक नाम : भीमराज
- यह बीकानेर महाराजा कल्याणमल के छोटे भाई थे।
- उपाधी : गई भोम रो बाहड़ू
- मुख्य केंद्र : घाटडा गाँव (अलवर)
- शाखा : इन्होंने दादू सम्प्रदाय की ‘नागा शाखा’ की स्थापना की।
- नागा साधु :-
- यह अपने साथ हथियार रखते हैं।
- इनके रहने के स्थान को ‘छावनी’ कहते हैं।
- जयपुर के राजा ‘सवाई जयसिंह’ ने इन्हें जयपुर की सेना में शामिल किया।
- मराठा आक्रमणों के दौरान इन्होंने जयपुर के राजा ‘सवाई प्रतापसिंह‘ की सहायता की।
- रज्जब जी :-
- जन्म : पठान परिवार, सांगानेर (जयपुर)
- दादूदयाल जी के उपदेश सुनकर इन्होंने विवाह नहीं किया तथा आजीवन दूल्हे के वेश में रहे।
- पुस्तकें (ग्रंथ) : रज्जबवाणी, सर्वंगी
- मुख्य केंद्र : सांगानेर (जयपुर)
- सुन्दरदास जी (छोटे) :-
- जन्म : खंडेलवाल परिवार (दौसा)
- इन्होंने अपना अधिकतम समय फतेहपुर (सीकर) में बिताया।
- इन्होंने 42 पुस्तकों की रचना की। जैसे- सुन्दर सागर, सुन्दर विलास, ज्ञान समुद्र
- मुख्य केंद्र : गेटोलाव (दौसा)
- बालिन्द जी : इन्होंने ‘आरिलो’ नामक पुस्तक लिखी।
- गरीब दास जी : दादूदयाल जी के बाद नरैना (जयपुर) पीठ पर यही बैठे थे अर्थात् उनके उत्तराधिकारी थे।
- मिस्किन दास जी
- सन्त दास जी
- माधोदास जी
- बखना जी
2. जाम्भोजी :-
- जन्म : पंवार (राजपूत) परिवार, पींपासर (नागौर)
- बचपन का नाम : धनराज
- अन्य नाम : गुरु जम्बेश्वर, वैज्ञानिक सन्त
- मृत्यु : लालासर (बीकानेर)
- पिता : लोहट जी पंवार
- माता : हंसाबाई (हंसा देवी)
- गुरु : गोरखनाथ जी
- उपदेश स्थल : सांथरी
- ग्रंथ : जम्भ सागर, जम्भ संहिता, बिश्नोई धर्म प्रकास
- मुख्य केंद्र : मुकाम (बीकानेर)
- अन्य केंद्र :-
- जांगलू (बीकानेर)
- जाम्भा (फलौदी)
- रामड़ाबास (जोधपुर)
- मेले : वर्ष में इनके दो मेले लगते हैं। जैसे-
- आश्विन अमावस्या
- फाल्गुन अमावस्या
- इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
- अकाल के दौरान इनके कहने पर दिल्ली के सुलतान ‘सिकन्दर लोदी’ ने बीकानेर क्षेत्र (पशुओं) के लिए चारा भेजा।
- जोधपुर के राजा जोधा तथा बीकानेर के राजा बीका (जोधा का बेटा) भी इनका सम्मान करते थे।
- 1485 ई. में समराथल नामक स्थान पर इन्होंने अपने अनुयायियों को 29 (20 + 9 = बिश्नोई) उपदेश दिये थे इसलिए इनके अनुयायी ‘बिश्नोई’ (20 + 9) कहलाते हैं।
- बिश्नोईयों का पवित्र वृक्ष खेजड़ी व पवित्र पशु हिरण है।
- प्रमुख उपदेश :-
- हरे पेड़ पौधे नहीं काटे जाने चाहिए। (खेजड़ी)
- जीव हत्या नहीं की जानी चाहिए। (हिरण)
- नीले रंग के कपड़े नहीं पहने जाने चाहिए।
- विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया। अर्थात् विधवाओं की शादी की जानी चाहिए।
3. जसनाथ जी :-
- जन्म : ज्याणी जाट परिवार, कतरियासर (बीकानेर)
- पिता : हम्मीर जी
- माता : रुपादे
- गुरु : गोरखनाथ जी
- मुख्य केंद्र : कतरियासर (बीकानेर)
- अन्य केंद्र :-
- बम्बलू (बीकानेर)
- लिखमादेसर (बीकानेर)
- पूनरासर (बीकानेर)
- मालासर (बीकानेर)
- पांचला सिद्धा (नागौर) : इस केंद्र को “जसनाथी सम्प्रदाय की मथुरा” कहा जाता है।
- 1500 ई. में गोरख मालिया (बीकानेर) नामक स्थान पर इन्होंने जाम्भोजी से मुलाकात की।
- सिकंदर लोदी ने इन्हें मालासर गाँव दिया।
- इनके साथ इनकी पत्नी ‘कालदे’ की भी पूजा की जाती है।
- इन्होंने अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिये।
- इनके अनुयायी-
- जाल वृक्ष तथा मोर पंख को पवित्र मानते हैं।
- अग्नि नृत्य करते हैं।
- गले में काली ऊन का धागा पहनते हैं।
- इनके वर्ष में तीन मेले लगते हैं। जैसे-
- चैत्र शुक्ल सप्तमी
- आश्विन शुक्ल सप्तमी
- माघ शुक्ल सप्तमी
- इनके ग्रंथ/पुस्तकें (जसनाथी सम्प्रदाय के ग्रंथ/पुस्तकें) :-
- सिंभूदडा
- कोडां
- जसनाथ जी के शिष्य :-
- लालनाथ जी (पुस्तक : जीव समझोतरी)
- रामनाथ जी (पुस्तक : यशोनाथ पुराण, इस पुस्तक को “जसनाथी सम्प्रदाय की बाइबर” कहा जाता है।)
- रुस्तम जी (औरंगजेब ने इसे नगाडा व निशान/झंडा देकर सम्मानित किया)
- इन्होंने जसनाथी सम्प्रदाय चलाया।
- बाड़ी : जसनाथी सम्प्रदाय में जहाँ संत समाधी लेते है उस स्थान को ‘बाड़ी’ कहते हैं।
- जसनाथी सम्प्रदाय में कुल 84 बाड़ियां है।
- इन्होंने लूणकरण को बीकानेर का राजा बनने का आशीर्वाद दिया।
4. चरणदास जी :-
- जन्म : डेहरा (अलवर)
- बचपन का नाम : रणजीत
- पिता : मुरलीधर
- माता : कुंजोबाई
- गुरु : शुकदेव
- मुख्य केंद्र : दिल्ली
- मेला : बसन्त पंचमी
- ग्रंथ : धर्म जहाज, भक्ति पदास्थ, नासकेत लीला
- इन्होंने अपने अनुयायियों को मेवाती भाषा में 42 उपदेश दिये।
- इनके अनुयायी पीले रंग के कपड़े पहनते हैं।
- इन्होंने निर्गुण तथा सगुण दोनों प्रकार की भक्ति का संदेश दिया।
- इन्होंने “चरणदासी सम्प्रदाय” चलाया।
- चरणदासी सम्प्रदाय में भगवान श्री कृष्ण की पूजा सखी भाव से की जाती है।
- इन्होंने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की।
- 1739 ई. में ईरान के राजा नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया था।
- जयपुर महाराजा प्रतापसिंह ने इनको ‘कोलीवाड़ा गाँव’ दिया था।
- प्रमुख शिष्याएँ :-
- दयाबाई (पुस्तकें : दया बोध व विनय मलिका)
- सहजोबाई (पुस्तक : सहज प्रकास)
5. हरिदास जी :-
- जन्म : कापडोद (डीडवाना), कापडोद पहले नागौर जिले में था वर्तमान में डीडवाना जिले में है।
- वास्तविक नाम : हरिसिंह सांखला
- मुख्य केंद्र : गाढ़ा (डीडवाना), गाढ़ा पहले नागौर जिले में था वर्तमान में डीडवाना जिले में है।
- ये पहले डाकू थे लेकिन बाद में संत बन गये।
- इन्होंने निर्गुण व सगुण दोनों प्रकार की भक्ति का संदेश दिया।
- इन्होंने “हरिदासी सम्प्रदाय” चलाया। जिसे “निरंजनी सम्प्रदाय” भी कहा जाता है।
- पुस्तकें (ग्रंथ) :-
- मन्त्र राज प्रकास
- हरि पुरुष जी की वाणी
6. संत मावजी :-
- जन्म : साबला (डूंगरपुर)
- मुख्य केंद्र : साबला (डूंगरपुर)
- अन्य केंद्र :
- पुंजपुर (डूंगरपुर)
- पालोदा (बांसवाड़ा)
- शेषपुर (उदयपुर)
- दालावाला (डूँगरपुर)
- ये भगवान श्री कृष्ण की पूजा ‘निष्कलंक अवतार’ के रूप में करते थे अतः इन्होंने “निष्कलंकी सम्प्रदाय” चलाया।
- इनके अनुयायी इनको “भगवान विष्णु का ‘कल्कि’ (10वाँ) अवतार मानते हैं।
- पुस्तक (ग्रंथ) : चोपड़ा
- चोपड़ा ग्रंथ :-
- यह ‘वाद विवाद शैली’ में लिखा गया है।
- इसे दीपावली के दिन पढ़ा जाता है।
- इसमें भविष्यवाणियां की गई है। जिसमें ‘तीसरे विश्व युद्ध’ की भविष्यवाणी भी की गई है।
- इसके पांच भाग है। जैसे-
- प्रेम सागर
- मेघ सागर
- साम सागर
- रतन सागर
- अनन्त सागर
- इन्होंने अपने उपदेश ‘वागड़ी भाषा’ में दिये।
- बेणेश्वर धाम :-
- स्थित : सोम, माही और जाखम नदियों के संगम, साबला तहसील (डूंगरपुर)
- इसकी स्थापना संत मावजी ने की।
- अन्य नाम : आदिवासियों का हरिद्वार, वागड़ का पुष्कर, वागड़ का कुम्भ
7. बालनन्दाचार्य :-
- मुख्य केंद्र : लोहार्गल (नीम का थाना), लोहार्गल पहले झुंझुनूं जिले में था वर्तमान में नीम का थाना जिले में है।
- ये अपने साथ सेना रखते थे इसलिए इन्हें ‘लश्कर संत’ कहा जाता है। (लश्कर = सेना)
- इन्होंने औरगंजेब के खिलाफ हिन्दू देवी-देवताओं की 52 मूर्तियों की रक्षा की।
- इन्होंने औरगंजेब के खिलाफ अपनी सेना भेजकर राजसिंह (मेवाड़) तथा दुर्गादास राठौड़ (मारवाड़) की सहायता की।
8. संत पीपा :-
- वास्तविक नाम : प्रताप सिंह खींची
- ये गागरोन के राजा थे।
- गुरु : रामानन्द जी
- अपनी द्वारिका (गुजरात) यात्रा के दौरान ये गागरोन रुके थे।
- इस समय अपनी रानी सीता के साथ इन्होंने संन्यास धारण कर लिया तथा अपने छोटे भाई अचलदास खींची को गागरोन का राजा बना दिया।
- दर्जी समाज इनको अपना मुख्य देवता मानता है।
- मंदिर : समदडी (बालोतरा), समदडी पहले बाड़मेर जिले में था वर्तमान में बालोतरा जिले में है।
- गुफा : टोडा (केकड़ी), टोडा पहले टोंक जिले में था वर्तमान में केकड़ी जिले में है।
- छतरी (गुफा) : गागरोन
- मेला : चैत्र पूर्णिमा (हनुमान जयंती)
- इनसे प्रभावित होकर टोडा के राजा शूरसेन ने अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बाट दी।
- इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया।
9. संत धन्ना :-
- जन्म : जाट परिवार, धुआं कलां (टोंक)
- गुरु : रामानन्द जी
- इन्होंने राजस्थान में भक्ति आंदोलन प्रारम्भ किया।
- पंजाब में भी इनका प्रभाव दिखाई देता है।
- मंदिर : बोरानाड़ा (जोधपुर)
- इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया।
10. नवलदास जी :-
- जन्म : हरसोलाव (नागौर)
- ये राजा मानसिंह के समकालीन थे।
- पिता : खुशालराम
- मुख्य केंद्र : जोधपुर
- इन्होंने “नवल सम्प्रदाय” चलाया।
- ग्रंथ (पुस्तक) : नवलेश्वर अनुभव वाणी
- मेला : भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी)
- ये अपने उपदेश मारवाड़ी भाषा में देते थे।
- इन्होंने एकेश्वरवाद का समर्थन किया।
11. स्वामी लाल गिरि :-
- जन्म : सुलखनिया (चूरू)
- मुख्य केंद्र : बीकानेर
- इन्होंने “अलखिया सम्प्रदाय” चलाया।
- ग्रंथ (पुस्तक) : अलख स्तुति प्रकास
12. संतदास जी :-
- मुख्य केंद्र : दाँतड़ा (भीलवाड़ा)
- इन्होंने “गूदड सम्प्रदाय” चलाया।
13. राजाराम जी :-
- मुख्य केंद्र : शिकारपुरा (जोधपुर ग्रामीण), शिकारपुरा पहले जोधपुर जिले में था वर्तमान में जोधपुर ग्रामीण जिले में है।
- इन्होंने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।
- पटेल समाज के लोग इनको अपना मुख्य देवता मानते हैं।
14. मलूकनाथ जी :-
- ये अलवर के एक प्रमुख सन्त थे।
- इनका संबंध “गरीबदासी सम्प्रदाय” से है।
15. भक्त कवि दुर्लभ :-
- इनको “वागड़ का नृसिंह” कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार गुजरात में भगवान श्री कृष्ण के भक्त ‘नृसिंह’ (नरसी) हुए थे ठीक उसी प्रकार वागड़ में भगवान श्री कृष्ण के भक्त ‘कवि दुर्लभ’ थे।
16. मीरा बाई :-
- जन्म : कुडकी (ब्यावर), कुडकी पहले पाली जिले में था वर्तमान में ब्यावर जिले में है।
- इनका पालन पोषण दादा दूदा के पास मेडता (नागौर) में हुआ।
- अन्य नाम : राजस्थान की राधा
- पिता : रतनसिंह
- ये बाजोली (पाली) के सामंत थे।
- ये खानवा के युद्ध (1527) में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- माता : वीर कुंवर
- दादा : दूदाजी (मेडता के राजा)
- पति : भोजराज (महाराणा सांगा के पुत्र)
- गुरु : रैदास
- ग्रंथ (पुस्तकें) :-
- गीत गोविन्द
- पदावली
- रुकमणी मंगल
- सत्यभामा नूं रुसणो
- नरसी जी रो मायरो (रतना खाती के सहयोग से लिखी)
- ये भगवान श्री कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी ‘सगुण पूजा’ करती थी।
- ये द्वारिका (गुजरात) के रणछोड़ मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गई अर्थात् मूर्ति में समा गई थी।
- महात्मा गांधी के अनुसार यह अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाली सत्याग्राही महिला थी।
17. रानाबाई :-
- जन्म : हरनावा गाँव (परबतसर तहसील, डीडवाना), हरनावा गाँव पहले नागौर जिले में था वर्तमान डीडवाना जिले में है।
- अन्य नाम : राजस्थान की दूसरी मीरा
- पिता : रामगोपाल
- माता : गंगाबाई
- गुरु : चतुरदास जी (पालड़ी के संत)
- मेला : भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी
- मंदिर : हरनावा गाँव (परबतसर तहसील, नागौर)
- इन्होंने विवाह नहीं किया।
- इन्होंने समाधि ली।
- ये भगवान श्री कृष्ण की भक्त थी।
- अहमदाबाद युद्ध के दौरान इन्होंने जोधपुर के महाराजा अभय सिंह की रक्षा की।
18. गवरी बाई :-
- जन्म : नागर ब्राह्मण परिवार (डूंगरपुर)
- अन्य नाम : वागड़ की मीरा
- डूंगरपुर के महारावल ‘शिव सिंह’ ने इन्हें डूंगरपुर में ‘बालमुकुन्द मंदिर’ (भगवान श्री कृष्ण) बनवाकर दिया जिसे “गवरी बाई का मंदिर” भी कहते हैं।
19. भूरी बाई अलख :-
- जन्म : सरदारगढ़ गाँव (राजसमंद)
- ये मेवाड़ की प्रमुख महिला संत थी।
20. वल्लभ सम्प्रदाय :-
- प्रवर्तक (संस्थापक) : वल्लभाचार्य
- इस सम्प्रदाय में भगवान श्री कृष्ण की पूजा ‘बाल रूप’ में की जाती है।
- इस सम्प्रदाय के मंदिरों को ‘हवेली’ कहा जाता है। जिनमें ‘हवेली संगीत’ गाया जाता है।
- इस सम्प्रदाय में मंदिरों की दीवारों पर भगवान श्री कृष्ण के चित्र बनाये जाते हैं जिन्हें ‘पिछवाई’ कहा जाता है।
- राजस्थान में इस सम्प्रदाय के 41 मंदिर है। जिनमें प्रमुख मंदिर निम्न है-
- मथुरेश जी (कोटा)
- श्रीनाथ जी (सिहाड़/ नाथद्वारा, राजसमंद)
- द्वारिकाधीश जी मंदिर (कांकरोली, राजसमंद)
- गोकुलचन्द्र जी मंदिर (कामां, डीग)
- मदन मोहन जी मंदिर (कामां, डीग) : कामां पहले भरतपुर जिले में था वर्तमान डीग जिले में है।
- सावंत सिंह (किशनगढ़) :-
- इस सम्प्रदाय के प्रभाव में किशनगढ़ के महाराजा सावंत सिंह ने अपना नाम बदलकर नागरीदास कर लिया था।
- सावंत सिंह ने अपना अंतिम समय वृंदावन में बिताया था।
- भीमसिंह (कोटा) :-
- इस सम्प्रदाय के प्रभाव में कोटा महाराव भीमसिंह ने अपना नाम बदलकर ‘कृष्णदास’ कर लिया था।
- इस सम्प्रदाय के प्रभाव में भीमसिंह ने कोटा का नाम बदलकर ‘नदंग्राम’ तथा शेरगढ़ का नाम बदलकर ‘बरसाना’ कर दिया था।
- इन्होंने बारां में सांवरिया जी का मंदिर बनवाया था।
21. गौड़ीय सम्प्रदाय :-
- प्रवर्तक (संस्थापक) : चैतन्य महाप्रभु (गौड/ बंगाल)
- इस सम्प्रदाय में भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है।
- राजस्थान में इस सम्प्रदाय के प्रमुख मंदिर :-
- गोविन्द देव जी मंदिर (जयपुर) :-
- सवाई जयसिंह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया।
- जयपुर के राजा स्वयं को गोविन्द देव जी का दीवान (पीएम) मानते थे।
- मदनमोहन जी मंदिर (करौली) : इसका निर्माण करौली के महाराजा गोपालपाल ने करवाया।
22. निम्बार्क सम्प्रदाय :-
- प्रवर्तक (संस्थापक) : निम्बार्काचार्य
- मुख्य केंद्र : सलेमाबाद गाँव (किशनगढ़ तहसील, अजमेर)
- इस केंद्र की स्थापना परशुराम जी ने की। अर्थात् परशुराम जी ने यहाँ सम्प्रदाय की स्थापना की।
- परशुराम जी का जन्म सीकर के खण्डेला में हुआ था।
- इस सम्प्रदाय में राधा को भगवान श्री कृष्ण की पत्नी माना जाता है।
- मेला (सम्प्रदाय का) : राधा अष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी)
- इस सम्प्रदाय का सर्वाधिक प्रभाव शेखावाटी क्षेत्र में है।
23. परनामी सम्प्रदाय :-
- प्रवर्तक (संस्थापक) : प्राणनाथ जी
- मुख्य केंद्र : पन्ना (मध्य प्रदेश)
- ग्रंथ (पुस्तक) : कुजलम स्वरुप
- इस सम्प्रदाय में भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है।
- जयपुर के आदर्श नगर में इस सम्प्रदाय का मंदिर है।
24. रामानन्दी सम्प्रदाय :-
- प्रवर्तक (संस्थापक) : रामानन्द जी
- रामानन्द जी के वे चेले जो सगुण भक्ति की तरफ चले गये वे ‘रामानन्दी सम्प्रदाय’ से जुड़ गये।
- इस सम्प्रदाय में भगवान श्री राम की पूजा ‘रसिक नायक’ के रूप में की जाती है इसलिए इस सम्प्रदाय को ‘रसिक सम्प्रदाय’ भी कहा जाता है।
- सवाई जयसिंह के शासन काल में कृष्ण भट्ट ने ‘राम रासौ’ नामक पुस्तक लिखी। जिसमें राम व सीता की प्रेम कहानी का वर्णन किया गया है।
- राजस्थान में इस सम्प्रदाय के केंद्र :-
- गलता जी (जयपुर) :-
- रामानन्दी सम्प्रदाय के गलता जी स्थित केंद्र की स्थापना ‘कृष्णदास पयहारी’ द्वारा की गई।
- आमेर के राजा ‘पृथ्वीराज’ व उनकी रानी ‘बालाबाई’ कृष्णदास पयहारी के शिष्य थे।
- यहाँ गालव ऋषि रहते थे जिनका आश्रम गलता जी में था। अतः गालव ऋषि के आश्रम के कारण ही गलता जी नाम ‘गलता जी’ पड़ा।
- यह सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
- बंदरों की अधिकता के कारण इसे ‘मंकी वेली’ भी कहा जाता है।
- भारत में भक्ति आंदोलन की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई।
- गलता जी में रामानुज सम्प्रदाय के लोग भी रहते हैं।
- रामानुज (तमिलनाडु), रामानन्दी सम्प्रदाय के प्रवर्तक ‘रामानन्द’ के गुरु थे।
- इसे उत्तर भारत का तोताद्रि भी कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार दक्षिण भारत में रामानुज सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र ‘तोताद्रि’ (तमिलनाडु) है उसी प्रकार उत्तर भारत में रामानुज सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र ‘गलता जी’ है।
- रैवासा (सीकर) : रामानन्दी सम्प्रदाय के रैवासा स्थित केंद्र की स्थापना ‘अग्रदास जी’ द्वारा की गई।
25. रामस्नेही सम्प्रदाय :-
- प्रवर्तक (संस्थापक) : स्वामी रामचरण जी महाराज
- रामानन्द जी के वे चेले जो निर्गुण भक्ति की तरफ चले गये वे ‘रामस्नेही सम्प्रदाय’ से जुड़ गये।
- यह एक निर्गुण भक्ति का सम्प्रदाय है।
- इस सम्प्रदाय में दशरथ पुत्र राम की पूजा नहीं की जाती बल्कि ‘निर्गुण राम’ की पूजा की जाती है।
- इस सम्प्रदाय में संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते हैं।
- राजस्थान में इस सम्प्रदाय के केंद्र :-
- शाहपुरा (भीलवाड़ा) : इस केंद्र की स्थापना रामचरण जी ने की।
- रामचरण जी :-
- जन्म : विजयवर्गीय (वैश्य) परिवार, सोढ़ा (टोंक)
- बचपन का नाम : रामकिशन
- पिता : बख्तराम
- माता : देउ
- गुरु : कृपाराम जी (दांतड़ा)
- पुस्तक : अणभैवाणी
- शाहपुरा के राजा रणसिंह ने इनको छतरी व मठ बनवाकर दिये।
- होली के अलगे दिन ‘चैत्र कृष्ण एकम्’ को शाहपुरा (भीलवाड़ा) में ‘फूलडोल मेला’ आयोजित किया जाता है।
- रैण (नागौर) : इस केंद्र की स्थापना दरियाव जी ने की।
- दरियाव जी :-
- जन्म : धुनियां (पठान) परिवार, जैतारण (पाली)
- ये मुस्लिम थे।
- पिता : मानसा
- माता : गीगा
- गुरु : पेमदास जी
- ये सबसे पूराने (वरिष्ठतम) रामस्नेंही संत थे।
- सिंहथल (बीकानेर) : इस केंद्र की स्थापना हरिरामदास जी ने की।
- हरिरामदास जी :-
- जन्म : ब्राह्मण परिवार, सिंहथल (बीकानेर)
- पिता : भागचन्द जोशी
- माता : रामी
- गुरु : जैमलदास जी (इन्हें इस सम्प्रदाय की ‘सिंहथल शाखा का आदि आचार्य’ कहा जाता है क्योंकि ये सिंहथल शाखा के संस्थापक हरिरामदास जी के गुरु थे)
- ग्रंथ : निशानी (योग ग्रंथ अर्थात् योग से सम्बन्धित)
- खेडापा (जोधपुर) : इस केंद्र की स्थापना रामदास जी ने की।
- रामदास जी :-
- जन्म : मेघवाल परिवार, भीकमकोर (जोधपुर)
- पिता : सार्दुल
- माता : अणभी
- गुरु : हरिरामदास जी
- जैमलदास जी को इस सम्प्रदाय की ‘खेडापा शाखा का आदि आचार्य’ कहा जाता है क्योंकि ये खेडापा शाखा के संस्थापक रामदास जी के गुरु ‘हरिरामदास’ के गुरु थे। अर्थात् ये रामदास जी के गुरु के गुरु थे।
26. नाथ सम्प्रदाय :-
- प्रवर्तक (संस्थापक) : गोरखनाथ
- इस सम्प्रदाय की दो शाखाएं है जैसे-
- मान नाथी : इस शाखा का प्रमुख केंद्र महामंदिर (जोधपुर) है।
- वैराग नाथी : इस शाखा का प्रमुख केंद्र राताडूंगा (नागौर) है।
- जालौर का ‘सिरे मंदिर’ का संबंध नाथ सम्प्रदाय से है।
- जब मानसिंह जालौर में था तब देवनाथ ने उसके जोधपुर का राजा बनने की भविष्यवाणी की थी।
- मानसिंह :-
- अन्य नाम : मारवाड़ का संन्यासी राजा
- राजा बनने के बाद इसने नाथ सम्प्रदाय के लिए जोधपुर में ‘महामंदिर’ एवं ‘उदयमंदिर’ का निर्माण करवाया।
- इसने ‘नाथ चरित्र’ नामक पुस्तक लिखी।
- योगी रतन नाथ ने देवनाथ को जैसलमेर का राजा बनने का आशीर्वाद दिया।
27. उंदरिया/ऊंदरिया सम्प्रदाय :-
- जयसमंद झील (उदयपुर) के आप-पास के क्षेत्र में स्थित भील जनजाति में यह सम्प्रदाय लोकप्रिय है।
28. कामडिया सम्प्रदाय :-
- प्रवर्तक (संस्थापक) : रामदेव जी
- रामदेव जी के मेले में कामड़िया सम्प्रदाय की महिलाएं ‘तेरहताली नृत्य’ करती है।
29. कुंडा सम्प्रदाय :-
30. मेहोजी गोदारा :-
- ये विश्नोई सम्प्रदाय के सन्त थे।
- इन्होंने राजस्थान भाषा में रामायण लिखी थी।
राजस्थान के प्रमुख मुस्लिम संत एवं सम्प्रदाय
1. लालदास जी :-
- जन्म : मेव परिवार, धोलीदूब (अलवर)
- ये एक लकड़हारे थे।
- पिता : चांदमल
- माता : समदा
- गुरु : गद्दन चिश्ती
- पुत्र : कुतुब खाँ [इसका मुख्य केंद्र बांधोली (अलवर) है।]
- समाधि : शेरपुर (अलवर)
- मुख्य केंद्र : नंगला जहाज (भरतपुर)
- उर्स (मेले) :-
- आश्विन शुक्ल एकादशी
- माघ पूर्णिमा
- ये दादूदयाल जी के समकालीन थे।
- मेवात क्षेत्र में इनका प्रभाव अधिक था।
- इन्होंने अपने उपदेश ‘मेवाती भाषा’ में दिये।
2. नरहड़ पीर :-
- मुख्य केंद्र : नरहड़ (झुंझुनूं)
- उर्स (मेला) : कृष्ण जन्माष्टमी, नरहड़ (झुंझुनूं)
- अन्य नाम : हजरत शक्कर बाबा, बागड़ का धणी
- शिष्य : सलीम चिश्ती
3. सैय्यद फखरुद्दीन :-
- मुख्य केंद्र : गलियाकोट (डूंगरपुर)
- इस स्थान को ‘मजार-ए-फखरी’ कहते हैं।
- गलियाकोट, दाउदी बोहरा सम्प्रदाय का मुख्य केंद्र है।
- उर्स (मेला) : मोहर्रम माह की 27 तारीख
4. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती :-
- जन्म : संजर (ईरान)
- गुरु : ख्वाजा उस्मान हारुनी
- पुत्री : बीबी हाफिज जमाल (इसकी मजार/दरगाह अजमेर में स्थित है।)
- ये मोहम्मद गोरी के आक्रमणों के दौरान भारत आये थे।
- पृथ्वीराज चौहान के शासन काल में इन्होंने अजमेर को अपना मुख्य केंद्र बनाया।
- मोहम्मद गोरी ने इनको “सुल्तान-उल-हिन्द” की उपाधि दी।
- दिल्ली के सुलतान इल्तुतमिश ने अजमेर में इनकी दरगाह का निर्माण शुरू करवाया तथा मालवा के सुलतान गयासुद्दीन खिलजी (मालवा) ने निर्माण पूरा करवाया।
- मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का पहला सुलतान/राजा था जिसने इनकी दरगाह की यात्रा की।
- अकबर ने इनकी दरगाह की 14 बार यात्रा की।
- अकबर ने इनकी दरगाह को 18 गाँव भेंट किये थे।
- मेवाड़ महाराणा जगत सिंह- द्वितीय ने इनकी दरगाह को 4 गाँव भेंट किये थे।
- जोधपुर (मारवाड़) महाराजा अजीत सिंह ने इनकी दरगाह को भूमि अनुदान दिया।
- छत्रपति शाहू पहला मराठा राजा था जिसने इनकी दरगाह के लिए उपहार भेजे।
- औरंगजेब की बहन जहाँआरा ने इनकी दरगाह की यात्रा की तथा इनकी जीवनी “मुनीस-उल-अखाह” लिखी।
- उर्स (मेला) : रजब माह की 1 से 6 तारीख तक, अजमेर
- भीलवाड़ा का गोरी परिवार झंडा चढ़ाकर इनके उर्स की शुरुआत करता है।
- अजमेर में इनकी दरगाह में रजब माह की 6 तारीख को ‘कुल की रस्म’ निभाई जाती है।
- अजमेर मे इनकी दरगाह में रजब माह की 9 तारीख को ‘बड़े कुल की रस्म’ निभाई जाती है।
- इनके वंशजों ने अन्य स्थानों पर भी चिश्ती सम्प्रदाय का प्रचार प्रसार किया। जैसे-
- फखरुद्दीन सरवाड (अजमेर) आ गये थे
- हिसामुद्दीन सोख्ता सांभर (जयपुर) आ गये थे।
5. शेख हमीद्दुदीन नागौरी :-
- जन्म : दिल्ली
- गुरु : ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
- पत्नी : बीबी खदीना (यह भी एक आध्यात्मिक महिला थी।)
- पौता : शेख फरीदुद्दीन
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने इनको “सुल्तान-उत्-तारीकिन” की उपाधि दी।
- ये सुवाल गाँव (नागौर) में खेती करते थे।
- ये पूर्णतः शाकाहारी थे।
- इनके निवास स्थान को ‘फूल महल’ कहा जाता था।
- इन्होंने इल्तुतमिश के उपहारों को अस्वीकार किया।
- इल्तुतमिश ने इनके सम्मान में नागौर में ‘बुलंन दरवाजा’ (अतारीकिन का दरवाजा) बनवाया।
6. शेख फरीदुद्दीन :-
- दादा : शेख हमीद्दुदीन नागौरी
- ये मुहम्मद बिन तुगलक के समकालीन थे।
- इन्होंने अपने दादा का ‘मलफूजात’ (सुरुर-उस्-सुदुर) तैयार करवाया।
- मलफूजात : जिन पुस्तकों में सूफी संतों के उपदेश लिखे जाते हैं उन्हें मलफूजात कहा जाता है।
7. ख्वाजा मखदुम हुसैन नागौरी :-
- ये चिश्ती सम्प्रदाय के संत थे।
- ये शेख हमीदुद्दीन नागौरी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे।
- इन्होंने कुरान के 30 ग्रंथ तैयार करवाये थे जिन्हें ‘नूर-ए-नबी (नूरुनब्बी)’ कहा जाता है।
- इन्होंने नागौर में ‘रसूल बाडी बगीचा’ एवं ‘मुस्तफा सागर तालाब’ का निर्माण करवाया।
- मांडू के तुलतान ने इनको धन भेजा अतः इन्होंने अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गुम्बद तथा नागौर में शेख हमीद्दुदीन नागौरी की दरगाह की चारदीवारी का निर्माण करवाया।
- इस समय मालवा (मध्य प्रदेश) की राजधानी मांडू थी।
8. शेख बुरहान चिश्ती :-
- मुख्य केंद्र : तालाघोला (जयपुर)
- जयपुर के राजा तालाघोला में इनकी दरगाह से ‘कर’ (टेक्स) नहीं लेते थे।
- रोह (अफगानिस्तान) के अफगानों में इनका प्रभाव अधिक था।
9. शेख कबीर चिश्ती :-
- ये शेख हमीदुद्दीन नागौरी के वंशज थे।
- मुख्य केंद्र : नागौर
- ये प्रारम्भ में नागौर रहते थे लेकिन बाद में अहमदाबाद चले गये।
10. शेख इस्हाक मगरिबी :-
- इन्होंने मगरिबी सम्प्रदाय की स्थापना की।
- मुख्य केंद्र : खाटू (नागौर)
11. शेख अहमद :-
- गुरु : शेख इस्हाक मगरिबी
- इन्होंने हज यात्रा की।
- मुख्य केंद्र : खाटू (नागौर)
- 1398 ई. में इन्होंने दिल्ली में तैमूर से मुलाकात की।
- कालांतर में सुलतान मुजफ्फरशाह के बुलाने पर ये गुजरात चले गये।
- इन्होंने सरखेज (गुजरात) को अपना मुख्य केंद्र बनाया।
- इनकी ‘खानकाह’, ‘मदरसा’ एवं ‘मजार’ सरखेज (गुजरात) में स्थित है।
- खानकाह : जहाँ सूफी संत जहाँ रहते हैं।
- मदरसा : जहाँ सूफी संत जहाँ पढ़ाते हैं।
- मजार : जहाँ सूफी संतों को दफनाया जाता है।
- उपाधि : कुतुब-उल-अकताब, गंजबख्श
12. शाह गुलाम इमाम (शेख मानू) :-
- ये शेख हमीद्दुदीन नागौरी के वंशज थे।
- मुख्य केंद्र (मजार/दरगाह) : सिंघाना (नीम का थाना), सिंघाना पहले झुंझुनूं जिले में था वर्तमान में नीम का थाना जिले में है।
13. गुलाम मोइनुद्दीन (चाँदशाह) :-
- मुख्य केंद्र (मजार/ दरगाह) : सिंघाना (नीम का थाना)
14. काजी हमीदुद्दीन नागौरी :-
- अबुल फजल के अनुसार ये 3 वर्षों तक नागौर में काजी रहे थे।
- कालांतर में ये बगदाद चले गए थे।
- गुरु : शेख शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी
- इन्होंने नागौर को सुहरावर्दी सम्प्रदाय का मुख्य केंद्र बनाया।
- मजार (दरगार): दिल्ली
15. रसूल शाह :-
- मुख्य केंद्र : बहादुरपुर (अलवर)
- गुरु : नियामत उल्ला खाँ
- इन्होंने रसूलशाही सम्प्रदाय चलाया।
- रसूलशाही सम्प्रदाय के लोग शराब पीते हैं।
राजस्थान के प्रमुख जैन संत एवं सम्प्रदाय
1. आचार्य भिक्षु स्वामी :-
- जन्म : कंटालिया (पाली)
- इन्होंने जैन धर्म की ‘तेरापंथ शाखा’ (श्वेताम्बर) की स्थापना की अर्थात् इन्होंने तेरापथ सम्प्रदाय की शुरुआत की।
- मृत्यु : सिरियारी (पाली)
2. आचार्य तुलसी :-
- जन्म : लाडनूं (डीडवाना), लाडनूं पहले नागौर जिले में था वर्तमान में डीडवाना जिले में है।
- ये जैन धर्म की तेरापंथ शाखा/सम्प्रदाय के 9वें आचार्य थे।
- 1949 ई. में इन्होंने समाज में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए सरदारशहर (चूरू) से ‘अणुव्रत आंदोलन’ की शुरुआत की।
- 1991 ई. में इन्होंने लाडनूं (डीडवाना) में ‘जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय’ की स्थापना की।
- 1994 ई. में इन्होंने सुजानगढ़ (चूरू) में ‘मर्यादा महोत्सव’ का आयोजन करवाया।
- इन्होंने विसर्जन (बांटने) पर बल दिया।
- इन्होंने कहा था की “इंसान पहले इंसान है, बाद में हिंदू या मुस्लिम है”।
3. आचार्य महाप्रज्ञ :-
- जन्म : टमकोर (झुंझुनूं)
- ये जैन धर्म की तेरापंथ सम्प्रदाय/शाखा के 10वें आचार्य थे।
- इन्होंने ‘अणुव्रत आंदोलन’ (सरदारशहर, चूरू) में मुख्य भूमिका निभाई थी।
- 1979 ई. में इन्होंने चरित्र निर्माण तथा सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा में ‘Science of Living’ की शुरुआत की।
- 2001 ई. में इन्होंने सुजानगढ़ (चूरू) से ‘अहिंसा यात्रा’ की शुरुआत की।
- 2003 ई. में सूरत (गुजरात) में राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने ‘सर्व धर्म सम्मेलन’ का आयोजन करवाया जिसकी अध्यक्षता इन्होंने की।
- पुस्तकें : The Family and Nation, Economics of Mahaveer
लोक संतों का योगदान
1. राजनीतिक योगदान :-
- कई लोक संत राजपरिवारों से संबंधित थे। अतः उन्होंने जनता को अधिक प्रभावित किया।
- राजा-महाराजा संतों से प्रभावित थे। अतः वे जनता के प्रति उदार हो गये थे।
- इन्होंने धर्म एवं राष्ट्र की रक्षा की।
2. सामाजिक योगदान :-
- इन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता बढ़ाने का कार्य किया था। जैसे- आचार्य तुलसी
- इन्होंने छुआछुत दूर करने के प्रयास किये थे।
- इन्होंने महिला सशक्तिकरण पर बल दिया। जैसे- मीरा बाई
- इन्होंने सामाजिक सुधार करने के प्रयास किये। जैसे- जाम्भोजी ने विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया।
- इन्होंने समाज को तात्कालिन बीमारियों से मुक्ति दिलायी।
3. धार्मिक योगदान :-
- इन्होंने धार्मिक कर्मकाण्डों का विरोध किया तथा सरल भक्ति पर बल दिया।
- इन्होंने भक्ति की नई विचार धारा प्रारम्भ की जैसे- निर्गुण भक्ति
- इन्होंने समाज में नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों को बढ़ावा दिया। जैसे- अणुव्रत आंदोलन
4. आर्थिक योगदान :-
- इनके मंदिरों में मेलों का आयोजन किया जाता है, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
- इन मेलों से राजस्थान में पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।
5. पर्यावरणीय योगदान :-
- इन्होंने पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण को बढ़ावा दिया।
6. कलात्मक योगदान :-
- इनके अनुयायियों के द्वारा मंदिरों का निर्माण करवाया गया, जिससे राजस्थान की स्थापत्य कला को बढ़ावा मिला।
- इनके मंदिरों में देवी-देवताओं से संबंधित चित्र बनाये गए, जिससे चित्रकला को बढ़ावा मिला। जैसे- पिछवाई
7. सांस्कृतिक योगदान :-
- इनके अनुयायियों ने लोक गीत, लोक नृत्य तथा वाद्य यंत्रों का विकास किया, जिससे सांस्कृतिक विकास हुआ। जैसे-अग्नि नृत्य, तेरहताली नृत्य
- इनके मेले तथा त्योहारों ने सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया।
8. साहित्यिक योगदान :-
- इन्होंने स्थानीय बोलियों में अपने उपदेश दिए, जिससे राजस्थानी भाषा सशक्त हुई।
- इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिससे राजस्थानी साहित्य का विकास हुआ।