राजस्थान की जलवायु : परिचय, कारक, वर्गीकरण, ऋतु वर्गीकरण

  • विश्व में अधिकतम वर्षा की पेटी भूमध्य रेखा को कहा जाता है।
  • भारत में मानसून (आगमन) को ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ कहा जाता है।
  • भारत में लौटता हुए मानसून को ‘उत्तर-पूर्व मानसून’ कहा जाता है।
  • जलवायु : पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल की ‘दीर्घकालीक घटनाओं’ को ‘जलवायु’ कहा जाता है।
  • जलवायु का निर्धारण 30 वर्षों की औसत मौसमी दशाओं के आधार पर किया जाता है।
  • मौसम : पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल की ‘अल्पकालीक घटनाओं’ को ‘मौसम’ कहा जाता है।
  • तापमान के अनुसार राजस्थान की जलवायु ‘उपोष्ण एवं शुष्क तुल्य जलवायु’ है।

  1. अक्षांशीय स्थिति एवं विस्तार :-
    • राजस्थान की जलवायु निम्न अक्षांश (भूमध्य रेखा) से अधिक प्रभावित है।
    • निम्न अक्षांश : 0° अक्षांश (भूमध्य रेखा)
    • उच्च अक्षांश : 90° अक्षांश
  2. सागर से दूरी :-
    • सागर के पास आर्द्रता अधिक होती है और जैसे-जैसे दूरी बढ़ती है, आर्द्रता कम होने लगती है।
    • राजस्थान में आर्द्र दशाएं कम पायी जाती है, क्योंकि राजस्थान सागर से अधिक दूरी पर स्थित है।
  3. सागर तल से ऊँचाई या उच्चावच :-
    • समुद्र तल से ऊँचाई बढ़ने पर तापमान घटता तथा ऊँचाई घटने पर तापमान बढ़ता है।
    • राजस्थान में निम्न उच्चावच की स्थिति अधिक पायी जाती है, इसलिए राजस्थान में तापमान अधिक पाया जाता है।
    • राजस्थान में दक्षिणी अरावली (राजसमंद, उदयपुर, सिरोही) में सामान्यतः निम्न तापीय दशाएं पायी जाती है, क्योंकि दक्षिणी अरावली समुद्र तल से अधिक ऊँचाई पर है।
  4. पर्वतों की स्थिति या दिशा :-
    • पर्वत तापमान तथा वर्षा को प्रभावित करते हैं।
  5. मानसूनी पवनों की दिशा :-
    • मानसून की दिशा ग्रीष्म ऋतु में जल से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में स्थल से जल की ओर होती है।
    • ग्रीष्म ऋतु में सामान्यतः जब मानसूनी पवनें जलीय भाग (महासागर) से स्थलीय भाग (महाद्वीप) की ओर चलती है, तब मानसूनी पवनों में आर्द्रता अधिक होती है।
    • शीत ऋतु में सामान्यतः जब मानसूनी पवनें स्थलीय भाग (महाद्वीप) से जलीय भाग (महासागर) की ओर चलती है, तब मानसूनी पवनों में आर्द्रता कम होती है।
  6. उच्च वायुमंडलीय पवन संचरण या जेट स्ट्रीम :-
    • नोट : जेट स्ट्रीम की खोज 1947 में C.R. रोसबी द्वारा की गई थी।
  7. महासागरीय जलधाराएं :-
    • ठंडी महासागरीय जलधाराओं के कारण वर्षा कम होती है।
    • गर्म महासागरीय जलधाराओं के कारण वर्षा अधिक होती है।

नोट : जलवायु को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला कारक तापमान है।

  • राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण दो प्रकार से किया गया है। जैसे-
    • (अ) राजस्थान की जलवायु का सामान्य वर्गीकरण
    • (ब) राजस्थान की जलवायु का व्यक्तिगत वर्गीकरण

(अ) राजस्थान की जलवायु का सामान्य वर्गीकरण :-

  • सामान्य जलवायु वर्गीकरण के अनुसार राजस्थान की जलवायु को तापमान और वर्षा के आधार पर 5 भागों में विभाजित किया गया है। जैसे-

राजस्थान की जलवायु का सामान्य वर्गीकरण

क्र. सं.जलवायु का प्रकारऔसत वर्षाभौतिक प्रदेश
1शुष्क कटिबंधीय जलवायु0 – 20 cmमरुस्थल
2अर्द्धशुष्क जलवायु20 – 40 cmमरुस्थल
3उपार्द्र जलवायु40 – 60 cmअरावली
4आर्द्र जलवायु60 – 80 cmपूर्वी मैदान
5अतिआर्द्र जलवायु80 – 120 cmहाड़ौती

(ब) राजस्थान की जलवायु का व्यक्तिगत वर्गीकरण :-

  1. कोपेन का जलवायु वर्गीकरण
  2. ट्रिवार्था का जलवायु वर्गीकरण
  3. थॉर्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण

1. कोपेन का जलवायु वर्गीकरण :-

  • डॉ. ब्लादिमीर कोपेन ने जलवायु का वर्गीकरण वनस्पति (मुख्य), वर्षा एवं तापमान के आधार पर किया है।
  • कोपेन का जलवायु वर्गीकरण :-
    1. A : उष्ण
    2. B (वर्षा) BW : शुष्क मरु (W- Whole)
    3. B (वर्षा) BS : अर्द्धशुष्क (S- Steppe)
    4. C : उपोष्ण
    5. D : हिमतुल्य
    6. E : ध्रुवीय तुल्य
  • इनके जलवायु वर्गीकरण में D व E प्रकार की जलवायु राजस्थान में नहीं पायी जाती है।
  • इन्होंने राजस्थान की जलवायु को 4 भागों में विभाजित किया है। जैसे-

कोपेन के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण

क्र. सं.जलवायु प्रदेशस्थितजलवायुवनस्पतिविस्तारविशेषता
1Awराजस्थान के दक्षिण भाग में (अरावली के पूर्व में)उष्ण-आर्द्र तुल्यसवाना तुल्य𑇐 वागड़ : बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़
𑇐 हाड़ौती : दक्षिणी कोटा, बारां, झालावाड़, आंशिक चित्तौड़गढ़
𑇐 इस प्रदेश में वनस्पति सघनता उच्च पाई जाती है, क्योंकि इस प्रदेश में वर्षा की मात्रा अधिक होती है।
2BWhwअरावली के पश्चिम मेंशुष्क उष्ण मरुस्थलीय तुल्यमरुद्भिद/ कंटीली
(नागफनी, डंडाथोर)
बीकानेर, चूरू, श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, जैसलमेर𑇐 इस प्रदेश में वनस्पति सघनता कम पायी जाती है, या विरल वनस्पति पाई जाती है, क्योंकि इस प्रदेश में वर्षा कम होती है।
3BShwअरावली के पश्चिम मेंअर्द्धशुष्क या स्टेपी तुल्यस्टेपी या छोटी घास तुल्य𑇐 लूनी बेसिन : पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर
𑇐 नागौर
𑇐 शेखावाटी : सीकर, झुंझुनूं, आंशिक चूरू
𑇐 इस प्रदेश में पशु सम्पदा अधिक पाई जाती है।
𑇐 कोपेन के अनुसार यह प्रदेश राजस्थान में सबसे बड़ा जलवायु प्रदेश है।
4Cwgअरावली के पूर्व मेंउपोष्ण-आर्द्र तुल्यशुष्क मानसूनी तुल्य
(पतझड़)
अलवर, भरतपुर, डीग, करौली, धौलपुर, अजमेर, केकड़ी, भीलवाड़ा, शाहपुरा, बूंदी, चित्तौड़गढ़, दौसा, राजसमंद, सिरोही, सवाई माधोपुर, गंगापुर सिटी, टोंक, उदयपुर, जयपुर शहर, जयपुर ग्रामीण𑇐 इस प्रदेश में कृषि उत्पादकता अधिक होती है, क्योंकि यह प्रदेश सबसे अधिक उपजाऊ जलवायु प्रदेश या भौतिक प्रदेश है।
𑇐 इस प्रदेश में जनघनत्व अधिक पाया जाता है।
𑇐 इस प्रदेश में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।
यहाँ : A- Tropical (उष्ण), BW- Arid Desert (शुष्क मरु), BS- Semi Arid/Steppe  (अर्द्धशुष्क), C- Sub Tropical (उपोष्ण), h- Average Temperature 18℃ and More Than (औसत तापमान 18℃ या अधिक), w- Winter Dry (शुष्क शीत), g- Gangetic Plain Type Climate (गंगा मैदान तुल्य जलवायु)

2. ट्रिवार्था का जलवायु वर्गीकरण :_

  • इन्होंने राजस्थान की जलवायु को 4 भागों में विभाजित किया है, जिसका मुख्य आधार वर्षा है। जैसे-

ट्रिवार्था के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण

क्र. सं.जलवायु प्रदेशवर्षाऔसत वर्षा
1Aw80 – 120 cm100 cm
2BWh0 – 20 cm10 cm
3BSh20 – 40 cm30 cm
4Caw60 – 80 cm70 cm
यहाँ : A- Tropical (उष्ण), BW- Arid Desert (शुष्क मरु), BS- Semi Arid/Steppe (अर्द्धशुष्क), C- Sub Tropical (उपोष्ण), h- Average Temperature 18℃ and More Than (औसत तापमान 18℃ या अधिक), w- Winter Dry (शुष्क शीत), a- Hot Summer Season (गर्म ग्रीष्म ऋतु)

3. थॉर्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण :-

  • व्यक्तिगत जलवायु वर्गीकरणों में थॉर्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण अधिक मान्य है।
  • थॉर्नथ्वेट ने जलवायु का वर्गीकरण तापमान, वाष्पीकरण एवं वर्षा के आधार पर किया है।
  • वर्षा के आधार पर थॉर्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण :-
    1. A : अतिआर्द्र
    2. B : आर्द्र
    3. C : उपार्द्र
    4. D : अर्द्धशुष्क
    5. E : शुष्क
  • थॉर्नथ्वेट के अनुसार A व B प्रकार की जलवायु राजस्थान में नहीं पायी जाती है।
  • तापमान, वाष्पीकरण एवं वर्षा के आधार पर इन्होंने राजस्थान की जलवायु को 4 भागों में विभाजित किया है। जैसे-

थॉर्नथ्वेट के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण

क्र. सं.जलवायु प्रदेशजलवायुविस्तारविशेषता
1CA’wउपार्द्र तुल्यहाड़ौती : दक्षिणी कोटा, बारां, झालावाड़, आंशिक चित्तौड़गढ़
वागड़ : डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़
2DA’wअर्द्धशुष्क तुल्यअलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, बूंदी, चित्तौड़गढ़, दौसा, राजसमंद, सिरोही, सवाई माधोपुर, टोंक, उदयपुर, जयपुर, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, पाली, जालौर, आंशिक जोधपुर𑇐 थॉर्नथ्वेट के अनुसार यह राजस्थान में सबसे बड़ा जलवायु प्रदेश है।
3DB’wशुष्क एवं अर्द्धशुष्क तुल्यबीकानेर, चूरू, श्री गंगानगर, हनुमानगढ़
4EA’dशुष्क मरुस्थलीय तुल्यजैसलमेर, बाड़मेर, पश्चिमी जोधपुर, दक्षिण-पश्चिमी बीकानेर
यहाँ : A’- Mega Thermal (उच्च तापीय), B’- Meso Thermal (मध्य तापीय), C- Sub Humid (उपार्द्र), D- Semi-Arid (अर्द्धशुष्क), E- Arid (शुष्क), w- Winter Dry (शीत ऋतु शुष्क), d- All Season Dry or Scarcity of Rainfall in All Season (प्रत्येक ऋतु में वर्षा का कम या अल्प होना)

  • जलवायु के अनुसार राजस्थान में ऋतु को 4 भागों में विभाजित गया है। जैसे-
    1. ग्रीष्म ऋतु (मार्च – जून)
    2. वर्षा ऋतु (जून – सितम्बर)
    3. शरद ऋतु (अक्टूबर – नवम्बर)
    4. शीत ऋतु (दिसम्बर – फरवरी)

1. ग्रीष्म ऋतु :-

  • समय : मार्च से जून तक
  • औसत तापमान : 30℃ से 40℃
  • ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान में-
    • सर्वाधिक गर्म जिला चूरू है।
    • सर्वाधिक गर्म स्थान फलौदी (फलौदी) है।
    • सर्वाधिक गर्म माह जून है।
    • सर्वाधिक ठंडा जिला सिरोही है।
    • सर्वाधिक ठंडा स्थान माउंट आबू (सिरोही) है।
  • सिरोही जिले का सर्वाधिक ठंडा होने का कारण उच्चावच अधिक होना है। अर्थात् ऊंचाई बढ़ने पर तापमान कम होता है।
  • तापान्तर :-
    • एक निश्चित समय में अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान के अंतर को तापान्तर कहा जाता है।
    • राजस्थान में-
      • सर्वाधिक दैनिक तापान्तर जैसलमेर जिले में रहता है।
      • सर्वाधिक वार्षिक तापान्तर चूरू जिले में रहता है।
  • घटनाएं :-
    1. लू :-
      • परिभाषा : ग्रीष्म ऋतु के दौरान चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाएं लू कहलाती है।
      • कारण : हवाओं का अभिवहनीय/क्षैतिज प्रवाह
      • प्रभावित क्षेत्र : उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान (सर्वाधिक बाड़मेर)
      • विशेषता : लू ग्रीष्म ऋतु की वह घटना है, जो तापमान को बढ़ाती है।
    2. आँधी :-
      • परिभाषा : ग्रीष्म ऋतु के दौरान चलने वाली धूलभरी एवं आर्द्रता युक्त हवाओं को आँधी कहा जाता है।
      • कारण : हवाओं का संवहनीय/लम्बवत प्रवाह
      • प्रभावित क्षेत्र : उत्तरी राजस्थान (सर्वाधिक श्री गंगानगर : लगभग 27 दिन)
      • विशेषता : आँधी ग्रीष्म ऋतु की वह घटना है, जो तापमान को घटाती है।
      • दिशा : राजस्थान में आंधियों की दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होती है।
    3. भभूल्या :-
      • परिभाषा : ग्रीष्म ऋतु में धूलभरी एवं चक्रवाती हवाओं को भभूल्या कहा जाता है।
      • कारण : किसी स्थान विशेष के केंद्र में निम्न वायुदाब तथा परिधि में उच्च वायुदाब (केंद्र में अधिक तापमान के कारण वायुदाब निम्न होता है तथा परिधि में कम तापमान के कारण वायुदाब अधिक होता है।)
      • प्रभावित क्षेत्र : उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान (सर्वाधिक बीकानेर)

2. वर्षा ऋतु :-

  • समय : जून से सितम्बर तक
  • घटनाएं :-
    1. मानसून

मानसून :-

  • मूल शब्द : मानसून शब्द का मूल शब्द ‘मौसिम’ है, जो अरबी भाषा का शब्द है।
  • जनक : मानसून शब्द का जनक अल-मसूदी को माना जाता है।
  • मानसून का अर्थ : ऋतु में परिवर्तन या जल से स्थल की ओर चलने वाली पवनों को मानसूनी पवने कहा जाता है।
  • मानसून का नाम : भारत में मानसून का नाम दक्षिणी-पश्चिमी मानसून है, जो हिन्द महासागर से आता है।

मानसून की तिथियां :-

  • मानसून की आगमन तिथि :-
    • भारत में मानसून का प्रथम आगमन 22 मई को होता है। (अंडमान एंड निकोबार)
    • भारत में मानसून का मुख्य भूमि पर आगमन 1 जून को होता है। (मालाबार तट, केरल)
    • राजस्थान में मानसून का मुख्य भूमि पर आगमन 25 जून को होता है। (बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर)
  • मानसून की निवर्तन तिथि :-
    • सम्पूर्ण भारत में मानसून का निवर्तन 16 सितम्बर से शुरू होता है।
    • सम्पूर्ण भारत से मानसून का निवर्तन 31 अक्टूबर को होता है।
    • उत्तर भारत में मानसून का निवर्तन 1 अक्टूबर को होता है।
    • राजस्थान में मानसून का निवर्तन 16 सितम्बर से शुरू होता है।
    • राजस्थान में मानसून का निवर्तन 30 सितम्बर को होता है।

मानसून की प्रकृति :-

  • राजस्थान में मानसून देरी से आता और समय से पहले ही लौट जाता है।

मानसून की शाखाएं :-

  1. अरब सागरीय शाखा : इसे तीन शाखाओं में विभाजित किया गया है। जैसे-
    1. पश्चिमी घाट शाखा
    2. छोटा नागपुर शाखा
    3. हिमाचल शाखा :-
      • इस शाखा का मानसून राजस्थान में आता है।
      • यह मानसून की वह शाखा है, जो राजस्थान में सबसे पहले मानसून लाती है, लेकिन इस शाखा से राजस्थान में अधिक वर्षा नहीं होती, क्योंकि अरावली इसके समानांतर है।
      • यह शाखा राजस्थान में वर्षा (आर्द्रता) का मुख्य स्रोत है।
  2. बंगाल की खाड़ी की शाखा : इसे दो शाखाओं में विभाजित किया गया है। जैसे-
    1. पूर्वी हिमालय शाखा
    2. शिवालिक शाखा :-
      • इस शाखा का मानसून राजस्थान में आता है।
      • यह शाखा राजस्थान में अधिक वर्षा में सहयोग करती है।

पूरवाई : राजस्थान में बंगाल की खाड़ी से आने वाली पूर्वी मानसूनी हवाओं को पूरवाई कहा जाता है। जिसके कारण राजस्थान में अरावली के पूर्व में अधिक वर्षा होती है।

मानसून का प्रभाव :-

  • राजस्थान में मानसून का प्रभाव :-
  • राजस्थान में-
    • औसत वार्षिक वर्षा 57.5 cm (575 mm) है।
    • सर्वाधिक वर्षा वाले जिले झालावाड़, बांसवाड़ा (वर्तमान में अधिक वर्षा) है। जहाँ औसत वर्षा 100 cm है।
    • सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान माउंट आबू (सिरोही) है। जहाँ औसत वर्षा 150 cm है।
    • 150 cm या इससे अधिक वर्षा वाला एकमात्र स्थान माउंट आबू (सिरोही) है।
    • न्यूनतम वर्षा वाले जिले जैसलमेर, बीकानेर है। जहाँ औसत वर्षा 10 cm है।
    • न्यूनतम वर्षा वाला स्थान सम (जैसलमेर) है। जहाँ औसत वर्षा 0 cm (1 cm से भी कम) है।
  • दिशाओं के अनुसार राजस्थान में मानसून का प्रभाव :-
  • राजस्थान में-
    • मानसून की दिशा दक्षिण-पश्चिम है।
    • मानसून के आगे बढ़ने की दिशा उत्तर-पूर्वी है।
    • मानसून (वर्षा) की बढ़ती हुई मात्रा की दिशा उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है।
    • मानसून (वर्षा) की घटती हुई मात्रा की दिशा दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर है।
  • राजस्थान में-
    • सर्वाधिक वर्षा वाला भाग दक्षिण राजस्थान है।
    • न्यूनतम वर्षा वाला भाग पश्चिम राजस्थान है।
    • उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा बढ़ती है।
    • दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा कम होती है।
    • पूर्व से पश्चिम की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा कम होती है।
    • पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा बढ़ती है।

मानसून के दौरान होने वाली घटनाएं :-

  1. मानसून प्रस्फोट :-
    • परिभाषा : मानसून के शुरुआत में होने वाली तेज वर्षा को मानसून प्रस्फोट कहा जाता है।
    • समय : जूलाई/ अगस्त
  2. मानसून प्रतिच्छेदन :-
    • परिभाषा : मानसून प्रस्फोट के बाद 2 से 3 सप्ताह तक वर्षा का नहीं होना मानसून प्रतिच्छेदन कहलाता है।
    • समय : अगस्त/ सितम्बर
  3. मानसून का निवर्तन/ लौटना :-
    • परिभाषा : मानसून के वापस लौटने की घटना को मानसून निवर्तन कहा जाता है।
    • भारत में समय : नवम्बर/ मध्य दिसम्बर
    • राजस्थान में समय : अक्टूबर/ नवम्बर
  4. कार्तिक/ अक्टूबर हीट :-
    • परिभाषा : मानसून निवर्तन के दौरान 1 या 2 सप्ताह के लिए अचानक तापमान का बढ़ना कार्तिक/ अक्टूबर हीट कहलाता है।
    • कारण : वायुमण्डलीय आर्द्रता का कम होना तथा भूमि की आर्द्रता का बढ़ना।

मानसून को प्रभावित करने वाली वैश्विक घटनाएं :-

  1. अलनीनो :-
    • अर्थ : यह एक गर्म महासागरीय जल धारा है।
    • स्थित : दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी तट पर (3° से 24° दक्षिणी अक्षांश)
    • समय : दिसम्बर का अंतिम सप्ताह
    • प्रभाव : मानसून का देरी से आना एवं कम प्रभावशाली होना।
    • अन्य नाम : ईशु का शिशु/ बालक, महासागरीय बुखार
  2. ला-नीना :-
    • अर्थ : यह एक ठंडी महासागरीय जल धारा है।
    • स्थित : दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी तट पर (3° से 24° दक्षिणी अक्षांश)
    • समय : दिसम्बर का अंतिम सप्ताह
    • प्रभाव : मानसून का समय पर आना एवं अधिक प्रभावशाली होना।
    • अन्य नाम : अलनीनो की छोटी बहन

मानसून की अनिश्चितता :-

  • Uncertainty (अनिश्चितता)\propto \frac{1}{Rainfall(वर्षा)}
  • मानसून की अनिश्चितता के कारण मानसून की तिथियों में परिवर्तन होता है।
  • मानसून में अनिश्चितता अधिक होगी तो वर्षा कम होगी।
  • मानसून में अनिश्चितता कम होगी तो वर्षा अधिक होगी।

मानसून में परिवर्तनशीलता :-

  • मानसून में परिवर्तनशीलता के कारण वर्षा की मात्रा में परिवर्तन होता है। जैसे-
    • मानसून में परिवर्तनशीलता अधिक होती है, तो वर्षा कम होती है।
    • मानसून में परिवर्तनशीलता कम होती है, तो वर्षा अधिक होती है।

3. शरद ऋतु :-

  • समय : अक्टूबर से नवम्बर तक
  • घटनाएं :-
    1. मानसून निवर्तन :-
      • परिभाषा : मानसून के वापस लौटने की घटना को मानसून निवर्तन कहा जाता है।
      • भारत में समय : नवम्बर/ मध्य दिसम्बर
      • राजस्थान में समय : अक्टूबर/ नवम्बर
    2. कार्तिक हीट :-
      • परिभाषा : मानसून निवर्तन के दौरान 1 या 2 सप्ताह के लिए अचानक तापमान का बढ़ना कार्तिक/ अक्टूबर हीट कहलाता है।
      • कारण : वायुमण्डलीय आर्द्रता का कम होना तथा भूमि की आर्द्रता का बढ़ना।

4. शीत ऋतु :-

  • समय : दिसम्बर से फरवरी तक
  • घटनाएं :-
    1. मावठ :-
      • परिभाषा : शीत ऋतु में होने वाली वर्षा को मावठ कहा जाता है। जो पश्चिमी विक्षोभ (जेट स्ट्रीम) द्वारा भूमध्य सागर से आती है।
      • समय : दिसम्बर से मार्च तक
      • प्रभावित क्षेत्र (भारत) : जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली
      • प्रभावित क्षेत्र (राजस्थान) : उत्तरी पश्चिमी राजस्थान जैसे- श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर
      • प्रमुख लाभान्वित फसल : रबी फसलें जैसे- गेहूँ
      • वार्षिक वर्षा में योगदान : राजस्थान में कुल वर्षा में 90% योगदान मानसून का तथा 10% योगदान मावठ का होता है।
      • मावठ को सोने की बूंद (गोल्डन ड्रोप्स/स्वर्णिम बौछार) कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा सर्वाधिक लाभान्वित फसल गेहूँ है।
      • मावठ (शीतकालीन मानसून) को भूमध्य सागरीय/ शीतोष्ण कटिबंधीय/ उत्तर-पश्चिम मानसून कहा जाता है।
    2. शीत लहर :-
      • परीभाषा : शीत ऋतु में हिमालय की ओर से आने वाली ठंडी हवाओं को शीत लहर कहा जाता है।
      • समय : राजस्थान में शीत लहर का समय मुख्यतः जनवरी है।
      • प्रभावित क्षेत्र : चूरू (सर्वाधिक), सीकर, बीकानेर
      • दिशा : राजस्थान में शीत लहर की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर होती है।

समवर्षा रेखा :-

  • मानचित्र/ चार्ट में एक समान वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को ‘समवर्षा रेखा’ कहा जाता है।
  • राजस्थान की प्रमुख समवर्षा रेखाएं :-
    1. 25 cm समवर्षा रेखा : यह मरुस्थल को दो भागों में विभाजित करती है। जैसे-
      1. शुष्क मरुस्थल (1 लाख वर्ग किलोमीटर)
      2. अर्द्धशुष्क मरुस्थल (75,000 वर्ग किलोमीटर)
    2. 40 cm समवर्षा रेखा : यह पश्चिमी मरुस्थल की पूर्वी सीमा है, जो राजस्थान को दो बराबर भागों में विभाजित करती है।
    3. 50 cm समवर्षा रेखा : यह अरावली पर स्थित है, जो पूर्वी मैदान एवं पश्चिमी मरुस्थल को अलग करती है।

समवायुदाब रेखा :-

  • मानचित्र/ चार्ट में एक समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को ‘समवायुदाब रेखा’ कहा जाता है।
  • राजस्थान में समवायुदाब रेखाएं :-
    1. जनवरी में समवायुदाब रेखाएं : राजस्थान में जनवरी में तापमान निम्न एवं वायुदाब उच्च होता है, जिसके कारण राजस्थान पर दो समवायुदाब रेखाएं बनती है। जैसे-
      1. 1018 mb समवायुदाब रेखा :-
        • इस रेखा पर तापमान कम व वायुदाब अधिक होता है।
        • विस्तार : बीकानेर, चूरू, सीकर
      2. 1019 mb समवायुदाब रेखा :-
        • इस रेखा पर तापमान अधिक व वायुदाब कम होता है।
        • विस्तार : जैसलमेर, जोधपुर, पाली, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, झालावाड़
    2. जुलाई में समवायुदाब रेखाएं : राजस्थान में जुलाई में तापमान उच्च एवं वायुदाब निम्न होता है, जिसके कारण राजस्थान पर चार समवायुदाब रेखाएं बनती है। जैसे-
      1. 997 mb समवायुदाब रेखा :-
        • विस्तार : श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर
      2. 998 mb समवायुदाब रेखा :-
        • विस्तार : बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, चूरू
      3. 999 mb समवायुदाब रेखा :-
        • विस्तार : जालौर, पाली, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर
      4. 1000 mb समवायुदाब रेखा :-
        • विस्तार : सिरोही, उदयपुर, प्रतापगढ़, झालावाड़

Leave a Comment

error: Content is protected !!