राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग (R-SEC) : परिचय, संरचना, कार्य, कमियां, सुझाव एवं राज्य निर्वाचन आयुक्त

  • यह एक संवैधानिक एवं स्वतंत्र आयोग है।
  • यह एक एकल सदस्यीय आयोग है, जिसका अध्यक्ष ‘राज्य निर्वाचन आयुक्त’ होता है।
  • इसका प्रावधान मूल संविधान में नहीं किया गया है। अर्थात् बाद में जोड़ा गया।
  • यह 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संविधान में जोड़ा गया है। अर्थात् संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
  • 73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 :-
    • लोकसभा द्वारा पारित : 22 दिसंबर, 1992
    • राज्यसभा द्वारा पारित : 23 दिसंबर, 1992
    • राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति : 20 अप्रैल, 1993
    • लागू : 24 अप्रैल, 1993
    • इस संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग 9 जोड़ा गया, जिसका शीर्षक था “पंचायतें” जिसमें अनुच्छेद 243 से 243 (O) तक के प्रावधान शामिल किए गए तथा एक नई 11वीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसमें पंचायतों के कार्यों के अंतर्गत 29 विषय शामिल किए गए।
  • 74वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 :-
    • लोकसभा द्वारा पारित : दिसंबर, 1992
    • राज्यसभा द्वारा पारित : दिसंबर, 1992
    • राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति : अप्रैल, 1993
    • लागू : 1 जून, 1993
    • इस संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग 9 (क/A) जोड़ा गया, जिसका शीर्षक था “नगर पालिकाओं” जिसमें अनुच्छेद 243 (P) से 243 (ZG) तक के प्रावधान शामिल किए गए तथा एक नई 12वीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसमें शहरी स्थानीय निकायों के कार्यों के अंतर्गत 18 विषय शामिल किए गए।
  • प्रावधान :-
    • पंचायती राज संस्थान (PRI) हेतु : भाग 9, अनुच्छेद 243 (ट/K)
    • शहरी स्थानीय निकाय (ULB) हेतु : भाग 9 (क/A), अनुच्छेद 243 (यक/ZA)

स्थानीय निकायों के स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए पंचायती राज संस्थान (PRI) हेतु संविधान के भाग 9, अनुच्छेद 243 (ट/K) में एवं शहरी स्थानीय निकाय हेतु भाग 9 (क/A), अनुच्छेद 243 (यक/ZA) में राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है।

राज्य निर्वाचन आयोग, राजस्थान :-

  • स्थापना का आदेश : 17 जून, 1994 को जारी किया गया।
  • स्थापना : ‘राज्य निर्वाचन आयुक्त (सेवा शर्तें) नियम 1994’ के तहत 1 जुलाई, 1994 को की गई। (अनुच्छेद 243 ट/K)
  • कार्य प्रारम्भ : 1 जुलाई, 1994
  • मुख्यालय : जयपुर
  • आयोग द्वारा राजस्थान में स्थानीय निकायों के प्रथम चुनाव 1995 में करवाए गए थे।
  • इस आयोग का प्रावधान ‘राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994’ की धारा 119 व 120 में भी किया गया है।

क्र.सं.पद का नामनियुक्त अधिकारी
1राज्य निर्वाचन आयुक्तसेवानिवृत्त IAS अधिकारी
2सचिवराज्य निर्वाचन अधिकारी
(IAS अधिकारी)
3उप सचिवRAS अधिकारी
4सहायक सचिवRAS अधिकारी
5जिला निर्वाचन अधिकारीजिला कलेक्टर
6जिला पंजीयन अधिकारीजिला कलेक्टर
7रिटर्निंग अधिकारी (RO)
8सहायक रिटर्निंग अधिकारी (ARO)RAS अधिकारी
9मतदान अधिकारी/ पीठासीन अधिकारी
10बूथ स्तरीय अधिकारी (BLO)उपखण्ड अधिकारी (SDO) द्वारा नियुक्त

योग्यतासेवानिवृत IAS अधिकारी जिसे न्यूनतम 5 वर्ष का प्रधान सचिव के रूप में अनुभव होना चाहिए।
(2017 के अनुसार)
नियुक्तिराज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री व मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर
शपथकोई प्रावधान नहीं है।
कार्यकाल
(पदग्रहण से)
𑇐 6 वर्ष/65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो। (1994 से 2002 तक)
𑇐 5 वर्ष/65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो। (2002 से वर्तमान तक)
वेतन एवं भत्तेराज्य के मुख्य सचिव/ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान
वर्तमान- 2,25,000 रुपये प्रतिमाह
(राज्य की संचित निधि पर भारित)
त्यागपत्र (इस्तीफा)राज्यपाल
पुनर्नियुक्तिनहीं
पदावधि, वेतन-भत्ते एवं सेवा शर्तों का निर्धारणराज्यपाल द्वारा विधानमण्डल के संबंधित अधिनियम के अधीन रहते हुए।

निष्कासन प्रक्रिया (राज्य निर्वाचन आयुक्त)

प्रावधानअनुच्छेद 243 ट/K (2) व 243 यक/ZA (2)
आधार1. कदाचार या दुर्व्यवहार
2. असमर्थता
प्रक्रियाउच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान
(महाभियोग द्वारा)
महाभियोग का प्रावधानभाग-4, अनुच्छेद 124 (4)
निष्कासनसंसद में महाभियोग प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति द्वारा

राज्य निर्वाचन आयुक्त के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया :-

  • महाभियोग प्रक्रिया लोकसभा के 100 सदस्यों या राज्यसभा के 50 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव से शुरू होती है।
  • यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति द्वारा एक जांच समिति का गठन किया जाता है, जिसमें तीन सदस्य शामिल होते हैं जो निम्न हैं-
    1. सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश
    2. किसी भी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
    3. प्रतिष्ठित न्यायविद
  • यह समिति आरोप तय करती है और राज्य निर्वाचन आयुक्त से लिखित जवाब मांगती है।
  • यह समिति आरोपों की गहन जांच करती है।
  • जांच के बाद समिति यह निर्धारित करती है कि आरोप सही हैं या नहीं। जिसके बाद समिति अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।
  • यदि जांच में वह दोषी नहीं पाया जाता है, तो आगे कोई कार्रवाई नहीं होती लेकिन यदि जांच में वह दोषी पाया जाता है तो उसी सदन में प्रस्ताव पर बहस होती है जिसमें प्रस्ताव पेश किया गया था।
  • राज्य निर्वाचन आयुक्त या उसके प्रतिनिधि को अपना पक्ष रखने का अधिकार है।
  • उसके बाद, प्रस्ताव पर मतदान होता है।
  • प्रस्ताव पारित होने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। (उस सदन में उपस्थित सदस्यों का कम से कम दो-तिहाई बहुमत।)
  • अगर मतदान करने वालों में से दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलता है, तो इस प्रस्ताव को पारित मान लिया जाता है।
  • फिर यही प्रक्रिया संसद के दूसरे सदन में दोहराई जाती है।
  • यह प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित होने पर अनुच्छेद 124 (4) के तहत राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।, जिसके बाद राष्ट्रपति द्वारा राज्य निर्वाचन आयुक्त को पद से हटाया जाता है।

नोट :- अब तक राजस्थान में किसी भी राज्य निर्वाचन आयुक्त के खिलाफ महाभियोग नहीं लाया गया है।

  • प्रावधान : लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 13A में
  • मुख्य निर्वाचन अधिकारी, भारत निर्वाचन आयोग का भाग होता है।
  • मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पद पर IAS अधिकारी को नियुक्ति किया जाता है।
  • मुख्य निर्वाचन अधिकारी राजस्थान में निम्न चुनावों को करवाता है :-
    1. लोकसभा चुनाव
    2. विधानसभा चुनाव
    3. विधानसभा में राष्ट्रपति के चुनाव
    4. राज्यसभा सीटों के चुनाव
  • राजस्थान के वर्तमान मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवीन महाजन (IAS) हैं।

नोट :- मुख्य निर्वाचन अधिकारी, राज्य निर्वाचन आयोग का भाग नहीं होता है।

  1. अनुच्छेद 243 (K) व 243 (ZA) में आयोग को संवैधानिक आधार प्रदान किया गया है।
  2. राज्य निर्वाचन आयुक्त की पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया। (राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री व मंत्रीपरिषद की सिफारिश पर)
  3. राज्य निर्वाचन आयुक्त के कार्यकाल का स्थायित्व। (5 वर्ष/65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो)
  4. राज्य निर्वाचन आयुक्त को पद से हटाने (निष्कासन) की जटिल प्रक्रिया। (राष्ट्रपति द्वारा महाभियोग प्रक्रिया से)
  5. राज्य निर्वाचन आयुक्त के वेतन व भत्ते राज्य की संचित निधि पर भारित है। (इस पर बहस हो सकती है लेकिन मतदान नहीं)
  6. राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के पश्चात सेवा शर्तों में अलाभकारी या नकारात्मक परिवर्तनों पर रोक है। (यदि नियुक्ति के बाद सेवा शर्तों में अलाभकारी या नकारात्मक परिवर्तन किया जाता है तो वह वर्तमान आयुक्त पर लागू ना होकर अगले आयुक्त पर लागू होगा।)

  1. सबसे प्रमुख कार्य स्थानीय निकायों के निर्वाचन का आयोजन, संचालन, पर्यवेक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण करना है।
  2. निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन एवं आरक्षण संबंधी कार्य करना। [परिसीमन कार्यों में राज्य सरकार (राज्य परिसीमन आयोग) को सलाह प्रदान करना]
  3. स्थानीय निकायों (PRI, ULB) के-
    1. चुनावों की तिथि या कार्यक्रम की घोषणा करना।
    2. चुनावों का आयोजन करवाना। (आम चुनाव एवं उपचुनाव)
    3. चुनावों को स्थगित करना, निरस्त करना एवं पुनर्मतदान कराना।
  4. मतदाताओं की सुविधा हेतु विभिन्न कार्य करना जैसे- पेयजल, मतदाता विवरणिका, दिव्यांगों हेतु रैंप की व्यवस्था करना।
    • वर्तमान में विशेष योग्यजनों एवं वृद्धों के लिए घर पर ही मतदान की सुविधा की गई है।
  5. मतदाता जागरूकता कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना।
  6. मतदाता सूचियों का नवीनीकरण करवाना (केवल स्थानीय निकायों (PRI, ULB) के चुनाव में)
  7. चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता का क्रियान्वयन करना।
  8. चुनाव में विभिन्न सुधार एवं नवाचार लागू करना। जैसे- EVM का प्रयोग, फोटोयुक्त मतदान सूची, चुनावी व्यय पर नियंत्रण करना।
  9. चुनाव चिह्नों का आवंटन एवं उससे संबंधित विवादों का निपटारा करना। (ग्राम पंचायत निर्वाचन में किसी पार्टी का चुनाव चिह्न नहीं होता।)
  10. चुनावों के सुचारु रूप से संचालन हेतु राज्यपाल से पर्याप्त चुनावी मशीनरी की मांग करना। (राज्यपाल का कर्त्तव्य बनता है कि वह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव हेतु चुनावी मशीनरी उपलब्ध करवाये।)
  11. राज्य में राजनीतिक दलों की भागीदारी किस स्थानीय निकाय चुनाव में रहेगी और किसमें नहीं इसका निर्धारण करना।
  12. दूरदर्शन और आकाशवाणी पर राष्ट्रीय प्रसारण के दौरान चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक दलों को समय और दिन आवंटित करना।
  13. राज्यपाल को वार्षिक प्रतिवेदन सौंपना।
  14. राज्य विधानमण्डल द्वारा सौंपा गया कोई अतिरिक्त कार्य करना।

  1. आयोग में राज्य निर्वाचन आयुक्त, सचिव एवं अन्य कर्मचारियों के पद निरंतर रिक्त रहना।
  2. राज्य निर्वाचन आयुक्त की योग्यता का उल्लेख संविधान में नहीं किया गया।
  3. राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति में राज्य सरकार का एकाधिकार।
  4. अत्यधिक कार्यभार है जबकि यह एक सदस्यीय आयोग है।
  5. सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार केवल सेवानिवृत लोक सेवक (Retired IAS) को राज्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करना तार्किक नहीं है।
  6. मानव संसाधन (कर्मचारी) हेतु आयोग की राज्य सरकार पर निर्भरता।
  7. आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन एक औपचारिक प्रक्रिया है। अर्थात् विधानसभा में इस पर विचार विमर्श न होना।
  8. आयोग में राज्य सरकार का अनावश्यक हस्तक्षेप।
  9. राज्य निर्वाचन आयुक्त एवं मुख्य निर्वाचन अधिकारी के मध्य समन्वय का अभाव।
  10. आदर्श आचार संहिता का प्रभावी क्रियान्वयन न हो पाना।

  1. द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के अनुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति एक समिति की सिफारिश पर की जानी चाहिए। जिसकी संरचना निम्न है-
    1. मुख्यमंत्री
    2. विधानसभा अध्यक्ष
    3. विधानसभा में विपक्ष का नेता (प्रतिपक्ष)
  2. आयोग में अतिरिक्त सदस्यों की नियुक्ति की जानी चाहिए। (अत्यधिक कार्यभार के कारण)
  3. राज्य में एक प्रत्यक्ष सचिवालय होना चाहिए जो राज्य निर्वाचन आयुक्त एवं मुख्य निर्वाचन अधिकारी को सहायता प्रदान करें।
  4. राज्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा आदर्श आचार संहिता का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
  5. भारतीय निर्वाचन आयोग एवं राज्य निर्वाचन आयोग को साथ लाने हेतु संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए ताकि दोनों एक दूसरे के अनुभवों को साझा कर सके।
  6. आयोग में स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
  7. आयोग में राज्य सरकार के अनावश्यक हस्तक्षेप को कम किया जाना चाहिए।
  8. सरकारी या सेवानिवृत लोकसेवकों की जगह स्वतंत्र व्यक्ति को राज्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए।

क्र. सं.आयुक्त का नामकार्यकालविशेष
1श्री अमर सिंह राठौड़01-07-1994
से
30-03-2000
𑇐 सेवानिवृत्त IAS अधिकारी
𑇐 प्रथम राज्य निर्वाचन आयुक्त
𑇐 सर्वाधिक कार्यकाल
2श्री नेकराम भसीन
(श्री एन. आर. भसीन)
01-07-2000
से
10-08-2002
𑇐 सेवानिवृत्त IAS अधिकारी
𑇐 भारतीय डेयरी एसोसिएशन के अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक रहे।
𑇐 1979 में इन्होंने राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन की स्थापना की।
𑇐 इन्हें “राजस्थान के कुरियन” की उपाधि प्राप्त है।
𑇐 न्यूनतम कार्यकाल
𑇐 पद पर रहते हुए मृत्यु हुई।
3श्री इन्द्रजीत खन्ना26-12-2002
से
26-12-2007
𑇐 सेवानिवृत्त IAS अधिकारी
𑇐 1966 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश किया।
𑇐 जनवरी 2000 से दिसंबर 2002 तक राजस्थान राज्य के मुख्य सचिव रहे।
𑇐 सेबी ने इन्हे जयपुर स्टॉक एक्सचेंज के बोर्ड में जनप्रतिनिधि के रूप में नामित किया।
𑇐 भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद के विजिटिंग प्रोफेसर।
𑇐 वित्त मंत्रालय के प्रवर्तक निदेशक एवं पदेन सचिव रहें।
4श्री अशोक कुमार पाण्डे
(श्री ए. के. पाण्डे)
01-10-2008
से
30-09-2013
𑇐 सेवानिवृत्त IAS अधिकारी
5श्री राम लुभाया01-10-2013
से
02-04-2017
𑇐 सेवानिवृत्त IAS अधिकारी
𑇐 वरिष्ठ IAS अधिकारी
𑇐 हाईपावर कमेटी में राजस्व विभाग के प्रमुख।
𑇐 नये जिलों हेतु बनी समिति के अध्यक्ष (इस समिति का कार्यकाल 6 माह बढ़ाया गया।)
6श्री प्रेमसिंह मेहरा03-07-2017
से
03-07-2022
𑇐 सेवानिवृत्त IAS अधिकारी
𑇐 वरिष्ठ IAS अधिकारी
𑇐 राज्य वित्त आयोग के मुख्य सचिव रहे।
𑇐 सहकारिता विभाग के रजिस्ट्रार।
𑇐 टैक्स बोर्ड के चेयरमैन।
𑇐 भू-जल विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख।
𑇐 इनको आयोग का अध्यक्ष बनाने हेतु सरकार ने सेवा नियमों में संशोधन किया।
7श्री मधुकर गुप्ता14-08-2022
से लगातार
𑇐 सेवानिवृत्त IAS अधिकारी
𑇐 वर्तमान आयुक्त
𑇐 भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1985 बैंच के वरिष्ठ IAS अधिकारी।
𑇐 नई दिल्ली बीकानेर हाउस स्थित राजस्थान के आवासीय आयुक्त कार्यालय में प्रमुख आवासीय आयुक्त रहे।
𑇐 भारत सरकार के सार्वजनिक उद्यम एवं भारी उद्योग मंत्रालय में संयुक्त सचिव व अतिरिक्त सचिव रहे।
𑇐 इंदिरा गाँधी नहर बोर्ड के चैयरमैन रहे।
𑇐 संभागीय आयुक्त-जयपुर, कोटा, भरतपुर, बीकानेर।
𑇐 राजस्थान सरकार के उच्च शिक्षा विभाग और परिवहन विभाग में प्रिंसिपल सचिव रहे।

  • जिला कलेक्टर जिले में जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में स्थानीय निकायों (PRI एवं ULB) के चुनाव करवाता है।
  • जिला कलेक्टर जिले में जिला पंजीयन अधिकारी के रूप में समय-समय पर मतदाता सूची में अपडेट करवाता है। अर्थात् जिला कलेक्टर जिला पंजीयन अधिकारी के रूप में बूथ स्तरीय अधिकारी (BLO) से समय-समय पर मतदाता सूचियों का नवीनीकरण करवाता है।
  • जिला निर्वाचन अधिकारी व जिला पंजीयन अधिकारी के रूप में जिला कलेक्टर राज्य निर्वाचन आयोग के अधीन कार्य करता है।
  • राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं (PRI) के प्रथम चुनाव 1960 में पंचायत विभाग द्वारा करवाये गये थे।
  • राजस्थान में शहरी स्थानीय निकाय (ULB) के प्रथम चुनाव 1963 में चुनाव विभाग द्वारा करवाये गये थे।
  • नगरपालिका अध्यक्ष हेतु मुक्त प्रतीकों की संख्या 40 (चुनाव चिह्न)
  • राजस्थान में प्रथम एवं द्वितीय निर्वाचन आयुक्त के समय कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु था लेकिन बाद में द्वितीय निर्वाचन आयुक्त नेकराम भसीन ने सरकार को प्रस्ताव भेजा कि इसे 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु किया जाये। अतः सरकार ने यह प्रस्ताव स्वीकार करते हुए तीसरे निर्वाचन आयुक्त के समय से यह कार्यकाल लागू कर दिया।
  • पंचायत चुनावों से संबंधित किसी भी विवाद में न्यायालय का हस्तक्षेप वर्जित है। अर्थात् पंचायत चुनाव पर केवल चुनाव याचिका के रूप में ही प्रश्न उठाया जा सकता है, जिसे राज्य विधानमंडल कानून द्वारा निर्धारित प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
  • स्थानीय निकायों के चुनाव में उपखण्ड अधिकारी ‘रिटर्निंग ऑफिसर (RO)’ के रूप में कार्य करता है, जबकि तहसीलदार ‘सहायक रिटर्निंग ऑफिसर (ARO)’ के रूप में कार्य करता है।
  • लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव में जिला कलेक्टर ‘रिटर्निंग ऑफिसर (RO)’ के रूप में कार्य करता है, जबकि उपखण्ड अधिकारी ‘सहायक रिटर्निंग ऑफिसर (ARO)’ के रूप में कार्य करता है।

राजस्थान में पंचायती राज की त्रिस्तरीय प्रणाली है जिसमें जिला परिषद (जिला स्तर), पंचायत समिति (ब्लॉक स्तर) और ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर) शामिल है।

  1. जिला परिषद : जिला परिषद, ग्रामीण आबादी के लिए आवश्यक सेवाएं एवं सुविधाएं प्रदान करने के लिए जिला स्तर पर एक स्थानीय निकाय है।
  2. पंचायत समिति : पंचायत समिति एक स्थानीय निकाय है। यह ग्राम पंचायत एवं जिला परिषद के बीच की कड़ी है।
  3. ग्राम पंचायत : ग्राम पंचायत प्रथम स्तर पर निर्वाचित निकाय है और लोकतंत्र की बुनियादी इकाई है, जो विशिष्ट उत्तरदायित्वों के साथ स्थानीय सरकार है। ग्राम पंचायत की भाँति ग्राम सभा, ग्राम के सम्पूर्ण नागरिकों की सामान्य सभा है।

राजस्थान में पंचायती राज संस्थाएं

क्र. सं.पंचायती राज संस्थाएं
(PRI)
कुल संख्या
(वर्तमान)
1जिला परिषद
(जिला स्तर)
33
2पंचायत समिति
(ब्लॉक स्तर)
365
3ग्राम पंचायत (इसमें एक गाँव या गाँवों का समूह शामिल है)
(ग्राम स्तर)
11194
कुल11592

राजस्थान में पंचायती राज्य संस्थाओं के चुनाव

क्रमनिर्वाचन वर्षनिर्वाचन संस्थानविशेष
पहला1960पंचायत विभाग
दूसरा1965चुनाव विभाग
तीसरा1978चुनाव विभाग
चौथा1981चुनाव विभाग
पाँचवां1988चुनाव विभाग
छठा1995राज्य निर्वाचन आयोग
सातवां2000राज्य निर्वाचन आयोग
आठवां2005राज्य निर्वाचन आयोग
नौवां2010राज्य निर्वाचन आयोग
दसवां2015राज्य निर्वाचन आयोग
ग्यारहवांसिंतबर-अक्टूबर, 2020राज्य निर्वाचन आयोग𑇐 इस समय 21 जिलों के 11वें आम चुनाव कराए गए थे।

राजस्थान में शहरी स्थानीय निकायों को नगर निगम, नगर परिषद और नगर पालिका कहा जाता है।

राजस्थान में शहरी स्थानीय निकाय

क्र. सं.शहरी स्थानीय निकाय
(ULBs)
श्रेणीकुल संख्या
(वर्तमान)
1नगर निगम13
2नगर परिषद52
3नगर पालिकाद्वितीय श्रेणी- 17
तृतीय श्रेणी- 53
चतुर्थ श्रेणी- 170
240
कुल305

राजस्थान में शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव

क्रमनिर्वाचन वर्षनिर्वाचन संस्थानविशेष
पहला1960स्थानीय स्वशासन विभाग
दूसरा1963चुनाव विभाग
तीसरा1970चुनाव विभाग
चौथा1972चुनाव विभाग
पाँचवां1974चुनाव विभाग
छठा1976चुनाव विभाग
सातवां1982चुनाव विभाग
आठवां1986चुनाव विभाग
नौवां1994-1995राज्य निर्वाचन आयोग𑇐 1994 में 45 एवं 1995 में 137 नगर निकायों के आम चुनाव कराए गए थे।
दसवां1999-2000राज्य निर्वाचन आयोग
ग्यारहवां2004-2005राज्य निर्वाचन आयोग
बारहवां2009-2010राज्य निर्वाचन आयोग
तेरहवां2014-2015राज्य निर्वाचन आयोग
चौदहवांजनवरी-फरवरी, 2021राज्य निर्वाचन आयोग𑇐 इस समय 91 नगर निकायों के आम चुनाव कराए गए थे।

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