राजस्थान की जनजातियों की सामान्य जानकारी :-
- राजस्थान में-
- सबसे बड़ी जनजाति मीणा है।
- दूसरी सबसे बड़ी जनजाति भील है।
- तीसरी सबसे बड़ी जनजाति गरासिया है।
1. मीणा जनजाति
- यह राजस्थान की सर्वाधिक जनसंख्या वाली एवं सर्वाधिक शिक्षित जनजाति है।
- मुख्य क्षेत्र : जयपुर
- इसमें मुख्यतः दो वर्ग होते हैं। जैसे-
- जमींदार मीणा
- चौकीदार मीणा
- मुख्य देवता : भूरिया बाबा
- मोरनी मांडना : विवाह की एक रसम
2. भील जनजाति
- जेम्स टॉ के अनुसार भील शब्द ‘वील/बील’ से बना है जिसका अर्थ होता है- ‘तीर-कमान’
- यह राजस्थान की प्राचीनतम एवं दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है।
- मुख्य क्षेत्र : उदयपुर
- कर्नल जेम्स टोड ने भीलों को ‘वनपुत्र’ कहा था।
- विलियम रोने ने अपनी पुस्तक “Wild Tribes of India” में भीलों का उत्पत्ति स्थल मारवाड़ बताया है।
- घर : टापरा/कू
- मोहल्ला : फला
- गाँव : पाल
- गाँव का मुखिया : पालवी/तदवी
- जनजाति का मुखिया : गमेती
- कुल देवता : टोटम (पेड़-पौधों को टोटम का प्रतीक मानते हैं।)
- हाथीवेंडो विवाह : पेड़-पौधों को साक्षी मानकर किया गया विवाह
- विवाह की देवी : भराडी माता
- इस जनजाति में दूल्हें को ससुराल में भराडी माता का चित्र बनाना पड़ता है।
- बाल विवाह : नहीं
- दापा : विवाह के दौरान दिये जाने वाला वधू मूल्य
- तलाक : छेड़ा फाड़ना
- झगड़ा (झगड़ा राशि) : यदि कोई महिला अन्य पुरुष के साथ रहने लग जाती है, तो वह व्यक्ति उसके पूर्व पति को धन देता है जिसे झगड़ा राशि कहा जाता है।
- रक्त मूल्य (मौताणा) : मोत के बदले दिया जाने वाला धन
- रणघोष : फाइरे-फाइरे
- यदि कोई भील व्यक्ति किसी घुड़सवार सैनिक को मार देता है, तो उसे ‘पाखरिया’ कहा जाता है।
- वालरा : स्थानान्तरित कृषि
- चिमाता : पहाड़ी भाग में स्थानान्तरित कृषि
- दजिया : समतल मैदान में स्थान्तरित कृषि
- हेलमो : सामुहिक कृषि कार्य
- मेले :-
- बेणेश्वर मेला : डूंगरपुर (यहाँ शिव मंदिर बना हुआ है।)
- घोटिया अम्बा मेला : बांसवाड़ा (यहाँ पर कुंती तथा 5 पांडवों के मंदिर बने हुए हैं।)
- वेशभूषा :-
- ठेपाडा/ढेपाड़ा : पुरुषों की तंग धोती
- खोयतू : पुरुषों की सामान्य धोती
- पिरिया : दुल्हन की पीले रंग की साड़ी
- सिन्दूरी : लाल रंग की सामान्य साड़ी
- परिजनी : महिलाओं द्वारा पैरों में पहने जाने वाले पीतल के कड़े
- कछाबू : महिलाओं द्वारा कमर पर पहने जाने वाला वस्त्र (घाघरा/लहंगा)
- केशरीया नाथ जी की केसर पीकर इस जनजाति के लोग झूठ नहीं बोलते हैं।
- इस जनजाति के लोग महुआ से बनी शराब पीते हैं।
- चीरा बावसी : इस जनजाति में लोग अपने मृत पूर्वजों की आत्मा के अस्तित्व में विश्वास कहते हैं। इसलिए मृत व्यक्ति की पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी प्रतिष्ठा करते हैं, जिसे ‘चीरा-बावसी’ कहा जाता है।
3. गरासिया जनजाति
- मुख्य क्षेत्र : पिंडवाडा (आबू, सिरोही), बाली (पाली), गोगुन्दा (उदयपुर)
- गरासिया शब्द ‘गरास’ से बना है जिसका अर्थ है- ‘टुकड़ा’
- संयुक्त परिवार व्यवस्था : नहीं
- त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था :-
- मोटी न्यात (बड़ी/उच्च पंचायत) : इसके सदस्य को ‘बाबोर हाईया’ कहते हैं।
- नेनकी न्यात (मध्यम पंचायत) : इसके सदस्य को ‘माडेरिया’ कहते हैं।
- निचली न्यात (निम्न पंचायत) : इसके सदस्य को ‘गरासिया’ कहते हैं।
- पवित्र स्थान : नक्की झील (माउंट आबू, सिरोही)
- इस जनजाति के लोग नक्की झील में अस्थियों का विसर्जन करते हैं।
- पवित्र पशु-पक्षी : सफेद पशु व मोर
- मुखिया : सहलोत/पालवी
- सहकारी समिति : हेलरु
- स्मारक (छतरी) : हूरे
- बरामदा : ओसरा
- अनाज भंडार : सोहरी
- मेले :-
- कोटेश्वर मेला : अम्बाजी (गुजरात)
- चेतर विचितर मेला : देलवाडा (सिरोही)
- गणगौर मेला : सियावा (सिरोही)- इस मेले में प्रेम विवाह अधिक होते हैं।
- विवाह के प्रकार :-
- मोरबंधिया : सामान्य विवाह
- ताणना
- पहरावणा : कपड़े देकर वधु लाना
- मेलबो/मेलबरे : बिना कुछ दिए ससुराल भेजना
- खेवणो (माता) : माता भी साथ जाती है।
- सेवा
- भील गरासिया- यदि कोई गरासिया पुरुष किसी भील महिला से विवाह करता है, तो ऐसे परिवार को भील गरासिया कहा जाता है।
- गमेती गरासिया- यदि कोई गरासिया महिला किसी भील पुरुष से विवाह करती है, तो ऐसे परिवार को गमेती गरासिया कहा जाता है।
4. कंजर जनजाति
- कंजर शब्द ‘काननचार’ से बना है जिसका अर्थ होता है- ‘जंगल में रहने वाला’
- मुख्य क्षेत्र : हाड़ौती
- मुख्य व्यवसाय : अपराध करना
- इस जनजाति के लोक अपराध करने से पहले देवताओं से आशीर्वाद लेते हैं, जिसे ‘पाती मांगना’ कहा जाता है।
- नृत्य : चकरी, धाकड़
- मुख्य देवी-देवता :
- कुल देवी : जोगणिया माता (मंदिर- चित्तौड़गढ़)
- चौथ माता (मंदिर- चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर)
- रक्तदंजी माता (मंदिर- संतूर, बूंदी)
- हनुमान जी
- इस जनजाति में घरों में पीछे की तरफ खिड़की रखना अनिवार्य होता है।
- हाकम राजा का प्याला पीने के बाद इस जनजाति के लोग झूठ नहीं बोलते हैं।
- इस जनजाति के लोग मोर का मांस खाते हैं।
- मुखिया : पटेल
- इस जनजाति में व्यक्ति के मरने के बाद उसके मुँह में शराब की बूंदे डाली जाती हैं तथा उसके शव को दफनाया जाता है।
5. कथौड़ी जनजाति
- यह मूल रूप से महाराष्ट्र की जनजाति है।
- इस जनजाति के लोग खैर के पेड़ से कत्था प्राप्त करते हैं, इसलिए इन्हें ‘कथौड़ी’ कहा जाता है।
- मुख्य क्षेत्र : उदयपुर
- यह एक संकटग्रस्थ जनजाति है। (40 परिवार)
- इस जनजाति में-
- दूध नहीं पीते हैं।
- शराब अधिक पीते हैं।
- महिलाएं भी पुरुषों के साथ बैठकर शराब पीती है।
- बंदर का मांस खाते हैं।
- महिलाएं गहने नहीं पहनती है।
- महिलाएं गोदना गुदवाती है।
- झोंपड़ी : खोलरा
- मुखिया : नायक
- मुख्य देवी-देवता :-
- डूंगर देव
- गाम देव
- वाद्य देव
- भारी माता
- कंसारी माता
- मनरेगा योजना में राजस्थान सरकार इस जनजाति के लोगों को 100 दिन का अतिरिक्त रोजगार देती है।
6. डामोर जनजाति
- मुख्य क्षेत्र : सीमलवाडा पंचायत समिति (डूंगरपुर)
- डूंगरपुर के सीमलवाडा पंचायत समिति क्षेत्र को ‘डामरिया’ कहा जाता है।
- इस जनजाति में-
- पुरुष भी महिलाओं की तरह गहने पहनते हैं।
- पुरुष बहुविवाह करते हैं।
- लोग वनों पर आश्रित नहीं है, बल्कि कृषि व पशुपालन करते हैं।
- इनकी भाषा पर गुजराती प्रभाव दिखाई देता है।
- दापा : विवाह के दौरान दिये जाने वाला वधू मूल्य
- चाड़िया : होली पर किये जाने वाले कार्यक्रम
- मुखिया : मुखी
- मेले :-
- छैला बावजी का मेला (पंचमहल, गुजरात)
- ग्यारस की रेवड़ी का मेला (डूंगरपुर)
7. सांसी जनजाति
- मुख्य क्षेत्र : भरतपुर तथा अजमेर
- इस जनजाति में मुख्यतः दो वर्ग होते हैं। जैसे-
- बीजा
- माला
- भाखर बावजी की कसम लेने के बाद इस जनजाति के लोग झूठ नहीं बोलते हैं, तथा कसम लेते समय एक हाथ में कुल्हाड़ी तथा दूसरे हाथ में पीपल का पत्ता रखते हैं।
- इस जनजाति के लोग सिकोदरी माता की पूजा करते हैं।
- विधवा विवाह : नहीं
- कूकड़ी : विवाह के दौरान महिलाओं की एक रसम
8. सहरिया जनजाति
- मुख्य क्षेत्र : बारां जिले की किशनगंज व शाहबाद तहसीले
- सहरिया शब्द ‘सहर’ से बना है जिसका अर्थ होता है- ‘जंगल’
- यह राजस्थान की एकमात्र आदिम जनजाति है।
- त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था :-
- पंचताई (5 गाँव की पंचायत)
- एकदसिया (11 गाँव की पंचायत)
- चौरासी (सभी सहरियों/84 गाँवों की पंचायत) : यह वाल्मीकि मंदिर (सीताबाड़ी, बारां) में होती है।
- आदि पुरुष : वाल्मीकि जी
- कुल देवी : कोड़िया माता
- इस जनजाति में-
- लोग तेजाजी तथा भैरुंजी की पूजा भी कहते हैं।
- लोग वर्षा ऋतु में आल्हा तथा लंहगी तथा दीपावली पर हीड़ नामक गीत गाते हैं।
- लोग होली के त्योहार पर लठ्ठमार होली खेलते हैं।
- लोग मकर संक्रांति पर लकड़ी के डंडों से लेंगी खेलते हैं।
- महिलाएं गोदना गुदवाती है, लेकिन पुरुष नहीं करवा सकते हैं।
- महिलाएं घर में घूंघट रखती है, लेकिन घर से बाहर घूंघट नहीं रखती है।
- मुखिया : कोतवाल
- गाँव : सहरोल
- बस्ती : सहराना
- सामुदायिक केंद्र : बंगला/हथाई/ढालिया
- पेड़ पर बने घर : गोपना/टोपा/कोरुआ
- दहेज प्रथा : नहीं
- युगल नृत्य : नहीं
- श्राद्ध : नहीं
- इस जनजाति में ‘धारी संस्कार’ किया जाता है।
- मनरेगा योजना में राजस्थान सरकार द्वारा सहरिया जनजाति के लोगो को 100 दिन का अतिरिक्त रोजगार दिया जाता है।
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परमार वंश : आबू, मालवा, वागड़, जालौर, किराडू
चौहान वंश : सांभर/अजमेर, रणथम्भौर, नाडौल, जालौर, सिरोही, बूंदी, कोटा
प्रतिहार वंश : मंडोर का प्रतिहार वंश
राजस्थान के भौतिक प्रदेश : मरुस्थल, अरावली, पूर्वी मैदान, हाड़ौती पठार