चौहान वंश : सांभर/अजमेर, रणथम्भौर, नाडौल, जालौर, सिरोही, बूंदी, कोटा

  • चौहान वंश की उत्पत्ती से संबंधित निम्न मत हैं-
    1. अग्निवंशी (अग्निकुंड का सिद्धांत) : चंदबरदाई की पुस्तक ‘पृथ्वीराज रासौ’ में दिये गए अग्निकुंड के सिद्धान्त के अनुसार ऋषि वशिष्ठ ने आबू पर्वत पर एक यज्ञ किया। इस यज्ञ के अग्निकुंड से चार राजपूत वंशों की उत्पत्ति हुई थी। जैसे-
      1. चालुक्य (चालुक्यों को सोलंकी भी कहा जाता था।)
      2. परमार
      3. प्रतिहार
      4. चौहान (सबसे अंत में उत्पन्न)
        • कालांतर में मुहणौत नैणसी व सूर्यमल्ल मीसण ने भी अग्निकुंड के सिद्धान्त का समर्थन किया।
    2. सूर्यवंशी : निम्न के अनुसार चौहान सूर्यवंशी थे।
      1. पृथ्वीराज विजय (पुस्तक)
      2. हम्मीर महाकाव्य (पुस्तक)
      3. हम्मीर रासौ (पुस्तक)
      4. विग्रहराज चतुर्थ का अजमेर अभिलेख
      5. गौरीशंकर हीराचन्द औझा (इतिहासकार)
      6. सुर्जन चरित्र
      7. चौहान प्रशस्ति
    3. चन्द्रवंशी : हाँसी (हरियाणा) अभिलेख (1167 ई.) एवं अचलेश्वर मंदिर अभिलेख के अनुसार चौहान चन्द्रवंशी थे।
    4. ब्राह्मण : निम्न के अनुसार चौहान ब्राह्मण थे।
      1. बिजौलिया अभिलेख (भीलवाड़ा)
      2. चन्द्रावती अभिलेख (सिरोही)
      3. कायम रासौ (पुस्तक)
      4. दशरथ शर्मा (इतिहासकार) : (इसकी पुस्तक- The Early Chauhan Dynasty)
      5. गोपीनाथ शर्मा (बिजौलिया लेख के आधार पर बताया)
    5. विदेशी : निम्न के अनुसार चौहान विदेशी थे।
      1. जेम्स टॉड (इसके अनुसार चौहान शक/सिथीयन थे।)
      2. विलियम क्रुक (इसने जेम्स टॉड की जीवनी लिखी।)
      3. वी. स्मिथ
    6. इन्द्र के वंशज : रायपाल के सेवाडी अभिलेख (पाली) के अनुसार चौहान इन्द्र के वंशज थे।
  • चौहानों का उत्पत्ति स्थल : सपादलक्ष (अर्थ- सवा लाख)
    • सपादलक्ष सांभर झील के चारों ओर का क्षेत्र था।
  • चौहानों की राजधानी : अहिच्छत्रपुर (नागौर का प्राचीन नाम, अहि = नाम)
  • रामकरण आसोपा (इतिहासकार) : इसके अनुसार प्रारम्भ में चौहान सांभर झील के चारों ओर रहते थे अतः इन्हे चौहान कहा जाता है।

राजस्थान में चौहान वंश की रियासतें

क्र. सं.चौहान रियासतें
1सांभर/ अजमेर
2रणथम्भौर
3नाडौल
4जालौर
5सिरोही
6बूंदी
7कोटा
  • सांभर में चौहान वंश का शासन था।
  • संस्थापक : वासुदेव

सांभर/ अजमेर के चौहान वंश के प्रमुख राजा

क्र. सं.राजाशासन काल
1वासुदेव
2गूवक प्रथम
3चन्दनराज
4वाक्पतिराज
5विग्रहराज-द्वितीय
6गोविन्द-तृतीय
7दुर्लभराज-तृतीय
8विग्रहराज-तृतीय
9पृथ्वीराज-प्रथम
10अजयराज1105-1133 ई.
11अर्णोराज (आनाजी)1133-1155 ई.
12जगदेव
13विग्रहराज-चतुर्थ1158-1163 ई.
14अपरगांग्य
15पृथ्वीराज-द्वितीय
16सोमेश्वर
17पृथ्वीराज-तृतीय (पृथ्वीराज चौहान)1177-1192 ई.
18गोविंदराज
19हरिराज

  • यह सांभर में चौहान वंश का संस्थापक था।
  • राजशेखर की पुस्तक ‘प्रबंध कोश’ के अनुसार इसने 551 ई. में सांभर में चौहान राज्य की स्थापना की।
  • बिजौलिया अभिलेख के अनुसार इसने सांभर झील (जयपुर ग्रामीण) का निर्माण करवाया तथा नागौर को अपनी राजधानी बनाया।
  • चौहान पहले गुर्जर प्रतिहारों के सामन्त थे।
  • प्रतिहारों की राजधानी भीनमाल (जालौर) थी।
  • भीनमाल के प्रतिहार राजा नागभट्ट-द्वितीय ने इसे ‘वीर’ की उपाधी दी।
  • कालांतर में इसने प्रतिहारों की अधिनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
  • इस प्रकार यह पहला स्वतंत्र चौहान राजा था।
  • इसने हर्षनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
  • हर्षनाथ चौहानों के इष्टदेव हैं।
  • रानी : आत्मप्रभा
    • अन्य नाम : रूद्राणी
    • यह पुष्कर झील (अजमेर) में 1000 दीपक जलाकर भगवान शिव की पूजा करती थी।
    • यह योग क्रिया में निपुण थी।
  • यह 108 युद्धों का विजेता था।
  • इसके बेटे लक्ष्मणराज ने नाडोल (पाली) में चौहान राज्य की स्थापना की।
  • इसने गुजरात के चालुक्य राजा मुलराज प्रथम को हराया।
  • इसने भरूच/ भड़ौच (गुजरात) में आशापुरा माता का मंदिर बनवाया।
  • आशापुरा माता चौहानों की कुल देवी हैं।
  • मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार इसने गजनी के राजा को मारवाड़ पार नहीं करने दिया था।
  • इस समय गुजरात का चालुक्य राजा भीम प्रथम भी इसके साथ था।
  • पृथ्वीराज विजय (पुस्तक) के अनुसार इसे वैरीघट्ट (शत्रुसंहारक) की उपाधि दी गई थी।

  • दशरथ शर्मा के अनुसार इसने गजनी के राजा इब्राहिम का सामना किया।

  • इसने गजनी के राजा शहाबुद्दीन को हराया।

  • इसने मुस्लिम आक्रमणकारी बगुलीशाह को हराया।

  • शासन काल : 1105-1133 ई.
  • 1113 ई. में इसने अजमेर की स्थापना की तथा यहाँ पर किले का निर्माण करवाया।
  • अजमेर का मूल नाम अजयमेरू था।
  • इसने गजनी के राजा गर्जन मातंग को हराया।
  • इसने पार्श्वनाथ मंदिर में सुवर्ण कलश (सोने का कलश) भेंट किया।
  • इसने दिगम्बर तथा श्वेताम्बर के बीच शास्त्रार्थ की अध्यक्षता की।
  • इसने अपनी रानी सोमलदेवी (सोमलेखा) के नाम से चाँदी व ताँबे के सिक्के चलाए, जो अजयप्रिय द्रम्म कहलाए।
  • अपने अंतिम समय में इसने अपने बेटे अर्णोराज को राजा बनाया तथा स्वयं सन्नयासी बन गया।
  • अपने अंतिम समय मे सन्नयासी बनने वाला यह एकमात्र चौहान राजा था।
  • शासन काल : 1133-1155 ई.
  • अन्य नाम : आनाजी
  • रानी :-
    1. सुधवा :-
      • पुत्र :-
        1. जगदेव
        2. विग्रहराज चतुर्थ
    2. कांचन देवी :-
      • पुत्र :-
        1. सोमेश्वर
  • 1135 ई. में इसने तुर्को को हराया तथा युद्ध स्थल पर आनासागर झील (अजमेर) का निर्माण करवाया।
  • इसने मालवा (मध्य प्रदेश) के राजा नरवर्मन को हराया।
  • इसने गुजरात के चालुक्य राजा जयसिंह सिद्धराज को हराया।
  • जयसिंह सिद्धराज ने अपनी पुत्री राजकुमारी कांचन देवी का विवाह इसके साथ कर दिया।
  • गुजरात के चालुक्य राजा कुमारपाल ने इसे हरा दिया।
    • इस युद्ध का वर्णन ‘प्रबंध चिंतामणी’ एवं ‘प्रबंध कोश’ (राजशेखर) में मिलता है।
  • इसने अपनी राजकुमारी जाल्हण देवी का विवाह कुमारपाल से करवाया।
  • अजमेर जीतने के बाद कुमारपाल चित्तौड़ गया।
  • इसने पुष्कर (अजमेर) में वराह मंदिर (विष्णु) का निर्माण करवाया।
  • इसने खरतरगच्छ समुदाय (जैन धर्म) को भूमी दान दिया।
  • जैन दरबारी विद्वान :-
    1. देव बोध
    2. धर्मघोष
  • इसकी हत्या इसके बेटे जग्गदेव ने की।
अर्णोराज Shiksha Nagari Hi
  • पिता : अर्णोराज
  • माता : सुधवा
  • इसके भाई विग्रहराज चतुर्थ ने इसे राजा के पद से हटा दिया।

  • पिता : अर्णोराज
  • माता : सुधवा
  • शासन काल : 1158-1163 ई.
  • इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार इसका शासन काल अजमेर के चौहानों का स्वर्ण काल था।
  • इसने गुजरात के राजा कुमारपाल चालुक्य को हराया।
  • बिजौलिया अभिलेख के अनुसार इसने ढिल्लिका (दिल्ली का प्राचीन नाम) के तोमर राजाओं को हराकर उन्हें अपना सामंत बना लिया था।
  • इसने दिल्ली शिवालिक स्तम्भ लेख लगवाया, जो अशोक के दिल्ली टोपरा लेख (हरियाणा) के ठीक नीचे लिखा गया है।
  • इसने अजमेर में ‘सरस्वती कंठाभरण’ नामक संस्कृत पाठशाला की स्थापना की।
  • इस पाठशाला की दीवारों पर हरकेली तथा ललित विग्रहराज पुस्तकों की पंक्तियाँ लिखी गई थी।
  • कालांतर में कुतुबद्दीन ऐबक ने इस पाठशाला को तोड़कर इसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ कहा जाता है।
  • इसी मस्जिद के पास पीर पंजाबशाह का 2½ दिन (अढ़ाई दिन) का उर्स लगता है।
  • धर्मघोष सूरि के कहने पर इसने हर महीने की एकादशी के दिन पशु हत्या पर रोक लगा दी।
  • पुस्तक (नाटक) : हरकेली (यह पुस्तक भारवि की किरातार्जुनीयम् पुस्तक पर आधारित है।)
  • इसने बीसलपुर नगर की स्थापना की तथा यहाँ तालाब और शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
  • दरबारी विद्वान :-
    1. सोमदेव
      • पुस्तक : ललित विग्रहराज
        • इस पुस्तक में विग्रहराज-चतुर्थ तथा देसल देवी की प्रेम कहानी का वर्णन किया गया है।
        • इस पुस्तक के अनुसार विग्रहराज-चतुर्थ ने गजनी के राजा खुसरोशाह को हराया।
  • उपाधियां :-
    1. बीसलदेव
    2. कवि बन्धु : पृथ्वीराज विजय (पुस्तक) के अनुसार इसे कवि बन्धु की उपाधि दी गई थी। (जयानक भट्ट के अनुसार इसे कवि बान्धव की उपाधि दी गई थी।)
  • किलहोर्न ने इसकी तुलना कालिदास तथा भवभूति से की।

बीसलदेव रासौ (पुस्तक) :-

  • लेखक : नरपति नाल्ह
  • भाषा : गौडवाडी भाषा (यह मारवाड़ी की उपबोली है, जो बाली (पाली) से आहोर (जालौर) की बीच बोली जाती है।)
  • पिता : विग्रहराज-चतुर्थ
  • इसे जग्गदेव के बेटे पृथ्वीराज-द्वितीय ने राजा के पद से हटा दिया तथा स्वयं राजा बन गया।
  • पिता : जग्गदेव
  • 1167 ई. के हाँसी (हरियाण) अभिलेख के अनुसार इसने हाँसी (हरियाण) में एक किले का निर्माण करवाया तथा यहाँ पर अपने मामा गुहिल किल्हण को नियुक्त किया।
  • 1168 ई. के रूठी रानी मंदिर (शिव मंदिर, भीलवाड़ा) के धोड़ अभिलेख (भीलवाड़ा) के अनुसार इसने अपना राज्य बाहुबल से प्राप्त किया था।
  • धोड़ अभिलेख में इसकी एक रानी सुहाव देवी का नाम मिलता है, जो रूठी रानी का वास्तविक नाम है।
  • इसने मेनाल (भीलवाड़ा) में सुहेश्वर मंदिर (शिव मंदिर) का निर्माण करवाया।
  • इसका बचपन गुजरात में बीता।
  • पिता : अर्णोराज
  • माता : कांचन देवी
  • रानी : कर्पूरी देवी (चेदि (मध्य प्रदेश) के राजा अचलराज कलचूरी की पुत्री)
  • इसने कोंकण (महाराष्ट्र) के राजा मल्लिकार्जुन को हराया, जो गुजरात के राजा कुमारपाल चालुक्य का शत्रु था।
  • इसका विवाह चेदि (मध्य प्रदेश) के राजा अचलराज कलचूरी की पुत्री राजकुमारी कर्पूरी देवी के साथ हुआ।
  • इसने अजमेर में अपनी तथा अपने पिता अर्णोराज की मूर्तियां लगवायी।
  • इसने अजमेर में वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया, जिसमें भगवान ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की मूर्तियां लगाई गई।
  • 1170 ई. में इसके शासन काल में बिजौलिया अभिलेख लगवाया गया।
  • उपाधि : प्रताप लंकेश्वर (बिजौलिया अभिलेख के अनुसार)

बिजौलिया अभिलेख :-

  • समय : 1170 ई.
  • स्थान : भीलवाड़ा
  • यह दिगम्बर जैन लोलाक द्वारा पार्श्वनाथ मंदिर में लगवाया गया।
  • रचनाकार : गुणभद्र
  • लेखक : केशव
  • उत्कीर्णक : गोविन्द
  • इसमें राज्य के प्रशासनिक विभाजन की जानकारी मिलती है। जैसे- (देश > पत्तन > पुर > पल्लि > ग्राम)
  • इसमें प्रशासनिक अधिकारियों की जानकारी मिलती है। जैसे- (क्रमशः)
    • इकाई = अधिकारी
    • ग्राम = महतर
    • प्रतिगण = पारिग्राही
  • इस अभिलेख के अनुसार-
    1. चौहान वत्स गौत्रीय ब्राह्मण है।
    2. वासुदेव ने सांभर झील का निर्माण करवाया।
    3. विग्रहराज चतुर्थ ने दिल्ली पर विजय प्राप्त की।
    4. यह अभिलेख सोमेश्वर के समय लगवाया गया था।
    5. सोमेश्वर ने पार्श्वनाथ मंदिर (जैन मंदिर) को ‘रेवणा’ गाँव दान में दिया।
    6. इस अभिलेख में सोमेश्वर की उपाधि ‘प्रताप लंकेश्वर’ का उल्लेख किया गया है।
    7. इस अभिलेख में शैव तथा जैन तीर्थों की जानकारी मिलती है।
    8. इस अभिलेख में राजस्थान/भारत के नगरों के प्राचीन नामों की जानकारी मिलती है जैसे-
क्र. सं.प्राचीन नामवर्तमान नाम
1विजयावल्लीबिजौलिया
2उत्तमाद्रिऊपरमाल
3मंडलकरमांडलगढ़
4नागहृदनागदा
5शाकम्भरीसांभर
6अहिच्छत्रपुरनागौर
7नड्डुलनाडौल
8जाबालिपुरजालौर
9श्रीमालभीनमाल
10ढिल्लिकादिल्ली

  • शासन काल : 1177-1192 ई.
  • अन्य नाम : पृथ्वीराज चौहान
  • पिता : सोमेश्वर
  • माता : कर्पूरी देवी
  • यह 11 वर्ष की अल्प आयु में ही राजा बन गया।
  • संरक्षिका : कर्पूरी देवी
  • इसने अपने चचेरे भाईयों (नागार्जुन तथा अपरगांग्य) के विद्रोह को दबाया।
  • नागार्जुन ने गुरुग्राम (हरियाणा) को अपना मुख्य केन्द्र बनाया।
  • 1182 ई. में मथुरा, अलवर तथा भरतपुर क्षेत्रों में इसने भंडानक जनजाति के विद्रोह को दबाया, जिसकी जानकारी जिनपति सूरि (जैन) की पुस्तकों से मिलती है।
  • भंडानक जनजाति पंजाब के सतलज क्षेत्र से आकर हरियाणा के गुरुग्राम एवं हिसार क्षेत्रों में रहने लगी थी।
  • उपाधियां :-
    1. राय पिथौरा
    2. दलपुंगल
  • सांस्कृतिक उपलब्धियां :-
    1. इसने कला एवं संस्कृति विभाग की स्थापना की तथा इस विभाग का मंत्री पद्मनाभ को बनाया।
    2. इसने दिल्ली के समीप पिथौरागढ़ किले का निर्माण करवाया।
  • दरबारी विद्वान :-
    1. चन्दबरदाई (पृथ्वी भट्ट) :-
      • पुस्तक : पृथ्वीराज रासौ
    2. जयानक :-
      • पुस्तक : पृथ्वीराज विजय
    3. वागीश्वर जनार्दन
    4. विद्यापति गौड़
    5. विश्वरूप
    6. आशाधर
  • प्रमुख मंत्री :-
    1. कदम्बवास/ कैमास
    2. भुवनमल्ल
    3. स्कन्द
    4. वामन
    5. सोढ
  • मूल्यांकन :-
    1. इस पर अपरिपक्व सेनापति तथा अदूरदर्शी राजा होने का अरोप लगाया जाता है, लेकिन यह आरोप सही नहीं है क्योंकि तराईन के दुसरे युद्ध से पहले इसको किसी भी युद्ध में हार का सामना नहीं करना पड़ा था अतः इसे अपरिपक्व सेनापति नहीं कहा जा सकता है।
    2. दुश्मन (मोहम्मद गौरी) की भागती हुई सेना पर इसके द्वारा आक्रमण नहीं करना तथा माफी मांगने पर दुश्मन (मोहम्मद गौरी) को छोड़ देना उस समय की भारतीय संस्कृति के आदर्श थे और यह इन्ही आदर्शों का पालन कर रहा था।
    3. हालाकी इसकी हार ने भारत की गुलामी का मार्ग प्रशस्त कर दिया था लेकिन फिर भी मध्यकालीन भारत के इतिहास में इसके महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

महोबा का युद्ध :-

  • अन्य नाम : तुमुल का युद्ध
  • समय : 1182 ई.
  • स्थान : महोबा (मध्य प्रदेश)
  • मध्य : पृथ्वीराज चौहान Vs परमार्दिदेव चन्देल (महोबा का राजा)
  • कारण : परमार्दिदेव चन्देल ने पृथ्वीराज चौहान के घायल सैनिकों को मरवा दिया था।
  • इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई तथा परमार्दिदेव चन्देल हार गया।
  • पृथ्वीराज चौहान ने पंजवनराय को महोबा का प्रशासक बनाया।
  • इस युद्ध में परमार्दिदेव चन्देल के सैनापति आल्हा तथा उदल थे।

नागौर का युद्ध :-

  • समय : 1184 ई.
  • मध्य : पृथ्वीराज चौहान Vs भीम-द्वितीय चालुक्य (गुजरात का राजा)
  • कारण :-
    1. यह दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
    2. चौहानों तथा चालुक्यों बीच लम्बे समय से दुश्मनी चली आ रही थी।
    3. यह दोनों आबू (सिरोही) के परमार वंश की राजकुमारी इच्छिनी देवी से विवाह करना चाहते थे, लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने इससे विवाह कर लिया।
  • भीम-द्वितीय के सेनापति जगदेव प्रतिहार ने इन दोनों के मध्य संधि करवा दी।

चौहान-गहड़वाल विवाद :-

  • मध्य : पृथ्वीराज चौहान Vs जयचन्द (कन्नौज (उत्तर प्रदेश) का राजा)
  • कारण :-
    1. दिल्ली का उतराधिकारी बनने हेतु दोनों के मध्य तनावपूर्ण संबंध थे।
    2. जयचन्द, पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ परमार्दिदेव चन्देल की सहायता कर रहा था।
    3. पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता का अपहरण कर उससे विवाह कर लिया था।

दशरथ शर्मा :-

  • पुस्तक : The early Chauhan dynasty
  • इसने पृथ्वीराज चौहान तथा संयोगिता की प्रेम कहानी को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकार किया है।
  • इसने अपनी पुस्तक “The early Chauhan dynasty” में पृथ्वीराज चौहान तथा संयोगिता की प्रेम कहानी का वर्णन किया है।

तराईन का प्रथम युद्ध :-

  • समय : 1191 ई.
  • स्थान : तराईन (हरियाणा)
  • मध्य : पृथ्वीराज चौहान Vs मोहम्मद गौरी (गजनी का शासक)
  • कारण :-
    1. मोहम्मद गौरी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।
    2. गजनी के राजाओं तथा चौहानों के बीच लम्बे समय से दुश्मनी चली आ रही थी।
  • तात्कालिक कारण : मोहम्मद गौरी ने पंजाब के तबर हिन्द (वर्तमान बठिंडा/भटिंडा) पर अधिकार कर लिया था।
  • इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई तथा जियाउद्दीन को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति गोविंदराज तोमर (दिल्ली) ने मोहम्मद गौरी को घायल कर दिया था।

तराईन का द्वितीय युद्ध :-

  • समय : 1191 ई.
  • स्थान : तराईन (हरियाणा)
  • मध्य : पृथ्वीराज चौहान Vs मोहम्मद गौरी (गजनी का शासक)
  • इस युद्ध में मोहम्मद गौरी की जीत हुई तथा पृथ्वीराज चौहान हार गया।
  • मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को सिरसा (हरियाणा) के पास सरस्वती नामक स्थान से गिरफ्तार किया तथा इसकी हत्या कर दी।
  • इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने कुछ दिनों तक मोहम्मद गौरी के अधीन शासन किया जिसका वर्णन हसन निजामी ने अपनी पुस्तक ‘ताज-उल-मासिर’ में किया है।
  • इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के हार के कारण :-
    1. पृथ्वीराज चौहान के अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मतभेद थे अतः किसी भी राजा ने मोहम्मद गौरी के खिलाफ इसकी सहायता नहीं की।
    2. इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना मोहम्मद गौरी की सेना की तुलना में कम थी क्योंकि पृथ्वीराज चौहान के सेनापति अन्य सीमाओं पर व्यस्थ थे।
    3. तराईन के पहले युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को युद्ध की तैयारी का प्रयाप्त समय दे दिया था।
    4. मोहम्मद गौरी एक अच्छा सेनापति था अतः इसने अपनी कूटनीति से पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया।
    5. इस युद्ध में तुर्को ने घोड़ों का प्रयोग किया, जबकि राजपूतों ने हाथियों का प्रयोग किया।
    6. इस युद्ध में तुर्को ने राजपूतों की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया।
  • इस युद्ध के राजनीतिक प्रभाव (परिणाम या महत्व) :-
    1. पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद मोहम्मद गौरी के उत्तराधिकारियों के लिए भारत में राज करना आसान हो गया। तथा यहीं से भारत में तुर्की शासन की नींव पड़ी।
    2. राजपूतों की उभरती हुई राजनीतिक महत्वाकांक्षा समाप्त हो गई तथा पृथ्वीराज चौहान के बाद कोई भी राजपूत या हिन्दू राजा दुबारा दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया।
    3. भारत में विदेशी शासन का सिलसिला प्रारम्भ हुआ जो की 1947 तक चलता रहा।
  • इस युद्ध के सांस्कृतिक प्रभाव (परिणाम या महत्व) : तुर्क शासन की स्थापना के कारण भारतीय कला एवं संस्कृति पर सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव दिखायी दिये। जैसे-
    1. सकारात्मक प्रभाव :-
      1. भारत में इंडो इस्लामिक नामक एक साझी संस्कृति का उदय हुआ जिसके प्रभाव स्थापत्य कला, साहित्य कला, संगीत कला एवं चित्रकला पर देखे गये।
      2. भारत में सूफी तथा भक्ति आंदोलन प्रारम्भ हो गये।
    2. नकारात्मक प्रभाव :-
      1. तर्को ने हिन्दू मंदिरों तथा बौद्ध मठों को तोड़ा जिससे भारतीय कला एवं संस्कृति का नुकसान हुआ।
      2. 1200 ई. के बाद बौद्ध संस्कृति भारत से लगभग समाप्त हो गई।
      3. तुर्क आक्रमणकारियों ने विद्या केंद्रों को नष्ट किया जिससे शिक्षा का पतन हुआ।

  • इसने तुर्को की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अजमेर का राजा बना।
  • इसके चाचा हरिराज ने इसको राजा के पद से हटा दिया तथा स्वयं अजमेर का राजा बन गया।
  • इसके बाद यह रणथम्भौर चला गया तथा वहाँ इसने चौहान राज्य की स्थापना की।
  • इसने अपने सेनापति चतरराज को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए भेजा, लेकिन चतरराज को हार का सामना करना पड़ा।
  • 1194 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक (दिल्ली) ने अजमेर (हरिराज) पर आक्रमण किया तथा उसने हरिराज को हरा दिया, जिसके बाद हरिराज ने आत्महत्या कर ली। अतः अब अजमेर पर तुर्कों का राज हो गया।

  • रणथम्भौर में चौहान वंश का शासन था।
  • संस्थापक : गोविंदराज

रणथम्भौर के चौहान वंश के प्रमुख राजा

क्र. सं.राजाशासन काल
1गोविंदराज
2वाल्हण
3प्रह्लादन
4वीरनारायण
5वागभट्ट
6जैत्रसिंह
7हम्मीर देव चौहान1282-1301 ई.

  • पिता : पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान)
  • 1194 ई. में इसने रणथम्भौर में चौहान राज्य की स्थापना की।
  • यह दिल्ली के राजा इल्तुतमिश के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया।
  • दिल्ली के राजा नासिरुद्दीन महमूद ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।
  • इसने 32 वर्षो तक रणथम्भौर में शासन किया तथा अपने जीवन काल में अपने बेटे हम्मीर देव चौहान को राजा बना दिया।
  • शासन काल : 1282-1301 ई.
  • पिता : जैत्रसिंह
  • रानी : रंगदेवी
  • पुत्री : देवलदे
  • गुरु : राघवदेव
  • इसने 17 में से 16 युद्ध जीते तथा इसने कई राजाओं को हराया। जैसे-
    1. समर सिंह (मेवाड़ का राजा)
    2. प्रताप सिंह (आबू, सिरोही का राजा)
    3. भोज परमार द्वितीय (धार नगरी, मालवा, मध्य प्रदेश का राजा)
      • मध्य प्रदेश के मालवा की राजधानी धार नगरी थी।
    4. अर्जुन (भीमरस, उत्तर प्रदेश का राजा)
  • जलालुद्दीन खिलजी (दिल्ली) ने रणथम्भौर पर दो बार (1290, 1292 ई.) आक्रमण किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली जिसके बाद जलालुद्दीन खिलजी ने कहा था की “में ऐसे 10 किलों को मुस्लमान के बाल के बराबर नहीं समझता”, इसकी जानकारी अमीर खुसरों ने अपनी पुस्तक “मिफता-उल-फुतुह” में दी।
  • दरबारी विद्वान :-
    1. राघवदेव
    2. बीजादित्य
  • सांस्कृतिक उपलब्धियां :-
    1. इसने ‘शृंगार हार’ नाम पुस्तक लिखी।
    2. इसने अपने पिता जैत्रसिंह के 32 वर्षिय शासन काल की याद में रणथम्भौर में 32 खम्भों की छतरी का निर्माण करवाया।
    3. इसने कोटि यज्ञ का आयोजन करवाया जिसका पुरोहित विश्वरूप था।
  • मूल्यांकन :-
    1. इस पर कर बढ़ाने तथा हठ के लिए युद्ध करने का आरोप लगाया जाता है, लेकिन इसे इन आरोपों से मुक्त किया जा सकता है।
    2. कर युद्ध के समय बढ़ाये गये थे क्योंकि युद्ध के समय अधिक धन की आवश्यकता थी तथा ऐसा सभी राजाओं द्वारा किया जाता था तथा इसने इससे पहले कभी भी कर नहीं बढ़ाया था।
    3. शरणागत की रक्षा करना उस समय की भारतीय संस्कृति का आदर्श था तथा यह भी अपने इसी आदर्श का पालन कर रहा था।
    4. इसकी बहादुरी तथा शरणागत की रक्षा के लिए सबकुछ न्योछावर करने की भावना न केवल अविस्मरणीय है बल्कि इसको प्रथम पक्ति में खड़ा कर देती है।
    5. इसके बारे में ठीक ही कहा जाता है की-

“सिंह गमन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै एक बार।
तिरिया तेल, हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार।”

अलाउद्दीन खिलजी का रणथम्भौर आक्रमण :-

  • 1301 ई. में अलाउद्दीन खिलजी (दिल्ली) ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया।
  • इस समय अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति नुसरत खान तथा हम्मीर देव चौहान का सेनापति भीमसिंह युद्ध में लड़ते हुए मारे गये।
  • इस युद्ध में रणमल तथा रतिपाल ने हम्मीर देव चौहान के साथ विश्वासघात किया।
  • इस समय रणथम्भौर में साका किया गया जो राजस्थान का पहला शाका था।
    • साका : जिस आक्रमण/ युद्ध में जौहर एवं केसरिया दोनों साथ होते हैं, उसे साका कहा जाता है।
  • हम्मीर देव चौहान की रानी रंगदेवी के नेतृत्व में जौहर तथा हम्मीर देव चौहान के नेतृत्व में केसरिया किया गया।
  • इस जौहर की जानकारी अमीर खुसरों ने फारसी भाषा में लिखी अपनी पुस्तक ‘खजाइन-उल-फुतुह’ (तारीख-ए-अलाई) में दी, जो फारसी भाषा में जौहर की पहली जानकारी है।
  • हम्मीर देव चौहान की पुत्री देवलदे ने पद्म तालाब में कूदकर जल जौहर कर लिया था।
  • 11 जुलाई, 1301 ई. को अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर अधिकार कर लिया तथा रणथम्भौर अपने सेनापति उलुग खान को सौंप दिया।
  • अलाउद्दीन खिलजी द्वारा रणथम्भौर जीतने के बाद अमीर खुसरों ने कहा था की “आज कुफ्र का घर इस्लाम का घर हो गया है।”
  • कारण :-
    1. अलाउद्दीन खिलजी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।
    2. रणथम्भौर का किला दिल्ली से गुजरात तथा मालवा (मध्य प्रदेश) के व्यापारिक मार्ग पर स्थित था।
    3. रणथम्भौर का किला अपने सामरिक महत्व के लिए प्रसिद्ध था।
    4. अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी की विफलता का बदला लेना चाहता था।
  • तात्कालिक कारण : हम्मीर देव चौहान ने अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोहियों मुहम्मद शाह तथा केहब्रू को शरण दी थी।
  • इस समय हम्मीर देव चौहान के सेनापति :-
    1. भीमसिंह (यह लड़ता हुआ मारा गया)
    2. धर्मसिंह
  • इस समय अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति :-
    1. नुसरत खान (यह लड़ता हुआ मारा गया)
    2. उलुग खान
    3. अलप खान
  • झाईन :-
    • इसे रणथम्भौर की कुंजी/ चाबी कहा जाता है।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने इसका नाम बदलकर नौ शहर कर दिया।

हम्मीर देव चौहान के संबंधित पुस्तकें

क्र. सं.पुस्तकेंलेखक
1हम्मीर महाकाव्यनयनचन्द्र सूरि
2हम्मीर रासौसारंगधर
3हम्मीर रासौजोधराज
4हम्मीर हठचन्द्रशेखर
5हम्मीर बन्धनअमृत कैलाश
6हम्मीरायणभांडउ व्यास
7हम्मीर रासौमहेश

  • नाडोल में चौहान वंश का शासन था।
  • संस्थापक : लक्ष्मणराज

नाडोल के चौहान वंश के प्रमुख राजा

क्र. सं.राजा
1लक्ष्मणराज
2केल्हण

  • पिता : वाक्पतिराज (सांभर में चौहान वंश का राजा)
  • 960 ई. में इसने नाडोल में चौहान राज्य की स्थापना की।
  • इसने नाडोल (पाली) में आशापुरा माता का मंदिर बनवाया।
  • चौहानों की कुलदेवी : आशापुरा माता
  • इसने कायन्द्रा के युद्ध में भाग लिया।
  • इसने अपनी दो पुत्रियों ‘गीगा देवी’ एवं ‘शृंगार देवी’ का विवाह आबू के परमार राजा धारावर्ष से किया।
  • इसके छोटा भाई कीर्तिपाल चौहान ने जालौर में चौहान राज्य की स्थापना की।

  • जालौर में चौहान वंश की सोनगरा शाखा का शासन था।
  • संस्थापक : कीर्तिपाल
  • जाबाली ऋषि के कारण जालौर को जाबालीपुर कहा जाता था।
  • जाल वृक्षों की अधिकता के कारण इसका नाम जालौर पड़ा।
  • जालौर का किला सोनगिरि पहाड़ी पर स्थित है, अतः जालौर के चौहान सोनगरा चौहान कहलाये।
  • जालौर के किले को सुवर्णगिरी, सोनगढ़, कांचनगिरी कहते हैं।

जालौर के चौहान वंश के प्रमुख राजा

क्र. सं.राजा
1कीर्तिपाल
2समर सिंह
3उदय सिंह
4चचिगदेव
5सामन्त सिंह
6कान्हड़देव सोनगरा

  • इसने कायन्द्रा के युद्ध में भाग लिया।
  • 1179 ई. में इसने मेवाड़ के राजा सामन्त सिंह को हराया।
  • 1181 ई. में इसने कुन्तपाल परमार को हराया तथा जालौर में चौहान वंश की सोनगरा शाखा की स्थापना की।
  • सुन्धा अभिलेख के अनुसार इसको राजेश्वर कहा गया है।
  • मुहणौत नैणसी की पुस्तक ‘नैणसी री ख्यात’ के अनुसार यह एक महान राजा था।
  • इसने जालौर में परकोटा, शस्त्रागार तथा कोषागार का निर्माण करवाया।
  • इसने अपनी पुत्री लीला देवी का विवाह गुजरात के राजा भीम-द्वितीय चालुक्य के साथ किया।
  • इसने दिल्ली के शासक इल्तुतमिश से मंडौर (जोधपुर) तथा नाडोल (पाली) छीन लिए थे।
  • इसने गुजरात के राजा लवण प्रसाद को हराया।
  • इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
  • दिल्ली के दो शासक नासिरुद्दीन महमूद तथा बलबन इसके शासन काल में जालौर पर आक्रमण करने की हिम्मत (साहस) नहीं कर पाये।
  • 1291 ई. में दिल्ली के शासक जलालुद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण किया तथा जालौर के सांचौर क्षेत्र तक पहुंच गया लेकिन सामन्त सिंह अपने सेनापति सारंगदेव बाघेला की सहायता से जलालुद्दीन खिलजी को आगे बढ़ने से रोकने में सफल रहा।

अलाउद्दीन खिलजी का सिवाणा पर आक्रमण :-

  • समय : 1308 ई.
  • 1308 ई. में दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा पर आक्रमण किया।
  • सिवाणा पहले जालौर का हिस्सा था, लेकिन वर्तमान में सिवाणा बाड़मेर का हिस्सा है।
  • इस समय सिवाणा का किला कान्हड़देव सोनगरा के भतीजे सातलदेव सोनगरा एवं सोमदेव सोनगरा के पास था।
  • कान्हड़देव सोनगरा की सेना के भायल नामक सैनिक ने सातलदेव सोनगरा एवं सोमदेव सोनगरा के साथ विश्वासघात किया।
  • इस समय सातलदेव सोनगरा एवं सोमदेव सोनगरा के नेतृत्व में सिवाणा (जालौर) का पहला शाका हुआ।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा पर अधिकार कर लिया तथा अपने सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग को सौंप दिया।
  • इस आक्रमण के दौरान नाहर खाँ नामक तुर्क सेनापति लड़ता हुआ मारा गया।
  • तुर्कों ने सांचौर (जालौर) का महावीर मंदिर तोड़ दिया तथा विद्या के केन्द्र भीनमाल को नष्ट कर दिया।
  • सिवाणा :-
    • सिवाणा को जालौर की कुंजी/ चाबी कहा जाता है।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा का नाम बदलकर खैराबाद कर दिया।

मालकाना का युद्ध :-

  • स्थान : मालकाना (नागौर)
  • इस युद्ध में कान्हड़देव सोनगरा ने तुर्क सेना को हराया तथा तुर्क सेनापति शम्स खाँ को गिरफ्तार कर लिया।

अलाउद्दीन खिलजी का जालौर पर आक्रमण :-

  • समय : 1311 ई.
  • 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण किया।
  • कारण :-
    1. अलाउद्दीन खिलजी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।
    2. जालौर दिल्ली से गुजरात तथा दक्षिण भारत के व्यापारिक मार्ग पर स्थित था।
    3. 1299 ई. के गुजरात आक्रमण के दौरान अलाउद्दीन खिलजी को जालौर से निकलने नहीं दिया गया था।
    4. गुजरात आक्रमण से लौटते समय अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर कान्हड़देव सोनगरा के सेनापति जैता देवड़ा ने आक्रमण कर दिया तथा अलाउद्दीन खिलजी की सेना द्वारा सोमनाथ मंदिर (शिव मंदिर) से ला रहे शिवलिंग के टुकड़े छीन लिए थे।
    5. इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति आईन-उल-मुल्क मुल्तानी ने जालौर पर आक्रमण किया तथा कान्हड़देव सोनगरा को समझाकर अपने साथ दिल्ली ले गया लेकिन दिल्ली में कान्हड़देव सोनगरा ने अलाउद्दीन खिलजी की युद्ध की चुनौती को स्वीकार कर लिया।
    6. इतिहासकार मुहणोत नैणसी के अनुसार आक्रमण का कारण फिरोजा का वीरमदेव के प्रति आकर्षण था।
      • फिरोजा :-
        • पिता : अलाउद्दीन खिलजी
        • धाय माँ : गुल विहिश्त
        • यह कान्हड़देव के बेटे वीरमदेव को पसन्द करती थी।
        • यह सती हुई थी।
  • इस आक्रमण के दौरान बीका दहिया ने कान्हड़देव सोनगरा के साथ विश्वासघात किया, जिसके कारण बीका दहिया को उसकी पत्नी हीरादे ने मार दिया था।
  • इस समय कान्हड़देव सोनगरा तथा वीरमदेव के नेतृत्व में जालौर में साका किया गया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर पर अधिकार कर लिया तथा जालौर का नाम बदलकर जलालाबाद कर दिया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर में अलाई मस्जिद का निर्माण करवाया।
  • अलाई मस्जिद के पास तोपखाना होने के कारण इसे तोपखाना मस्जिद भी कहा जाता है।

पद्मनाभ :-

  • पुस्तकें :-
    1. कान्हड़देव प्रबंध
    2. वीरमदेव सोनगरा री वात

  • सिरोही में चौहान वंश की देवड़ा शाखा का शासन था।

सिरोही के चौहान वंश के प्रमुख राजा

क्र. सं.राजा
1लुम्बा देवड़ा
2शिवभान
3सहसमल देवड़ा
4सुरताण देवड़ा
5बैरीसाल
6शिवसिंह

  • 1311 ई. में इसने परमारों को हराया तथा परमारों के आबू (सिरोही) तथा चन्द्रावती (सिरोही) पर अधिकार कर लिया।
  • इस समय परमारों की राजधानी चन्द्रावती थी। (पहले परमारों की राजधानी आबू थी।)
  • इसने चन्द्रावती को अपनी राजधानी बनाया।
  • 1405 ई. में इसने चन्द्रावती से अपनी राजधानी हटाकर शिवपुरी को अपनी राजधानी बनाया।
  • 1425 ई. में इसने सिरोही की स्थापना की तथा सिरोही को अपनी राजधानी बनाया।
  • इस समय बीजा देवड़ा भी सिरोही पर अधिकार करना चाहता था। इसलिए बीकानेर के रायसिंह के कहने पर इसने सिरोही का आधा भाग अकबर को दे दिया तथा अकबर ने यही भाग जगमाल को दे दिया।
  • पहले अकबर ने जगमाल को जहाजपुर (भीलवाड़ा) परगना दिया था।
  • दरबारी विद्वान :-
    1. दुरसा आढ़ा :-
      • पुस्तक : “राव सुरताण रा कवित्त”
      • अचलगढ़ किले में दुरसा आढ़ा की मूर्ति लगी हुई है।

दत्ताणी का युद्ध :-

  • समय : 1583 ई.
  • स्थान : दत्ताणी
  • मध्य : सुरताण Vs अकबर (दिल्ली का राजा)
  • इस युद्ध में सुरताण जीत गया।
  • इस युद्ध में अकबर से सेनापति :-
    1. जगमाल (मेवाड़) : यह महाराणा प्रताप का भाई था।
    2. रायसिंह (मारवाड़) : यह चन्द्रसेन का बेटा था।
    3. दाँती सिंह (कोलीवाड़ा)
  • जगमाल तथा रायसिंह इस युद्ध में लड़ते हुए मारे गये।
  • इसने दिल्ली के शासक औरंगजेब के खिलाफ मारवाड़ (जोधपुर) के अजीत सिंह को कालिन्द्री गाँव (सिरोही) में शरण दी।
  • 1823 ई. में इसने अंग्रेजों के साथ संधि कर ली।
  • सिरोही अंग्रेजों के साथ संधि करने वाली राजस्थान की सबसे अंतिम रियासत थी।

  • बूंदी में चौहान वंश की हाड़ा शाखा का शासन था।
  • संस्थापक : देवा
  • बूंदी में पहले मीणा वंश का शासन था।
  • बूंदा मीणा के नाम पर ही बूंदी का नाम बूंदी पड़ा था।
  • रणकपुर अभिलेख (पाली) में बूंदी का नाम ‘वृंदावती’ लिखा गया है।

बूंदी के चौहान वंश के प्रमुख राजा

क्र. सं.राजा
1देवा
2जैत्रसिंह
3बरसिंह
4सुरजन
5बुद्ध सिंह
6विष्णु सिंह

  • 1241 ई. में इसने जैता मीणा को हराया तथा बूंदी में चौहान वंश की हाड़ा शाखा का शासन स्थापित किया।
  • 1274 ई. में इसने कोटा को जीतकर कोटा को बूंदी राज्य में मिला लिया।
  • 1354 ई. में इसने बूंदी में तारागढ़ किले का निर्माण करवाया, जो राजस्थान में भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
  • 1569 ई. में दिल्ली के शासक अकबर ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया।
  • आमेर के भगवन्तदास ने दिल्ली के शासक अकबर तथा बूंदी के चौहान राजा सुरजन के मध्य संधि करवाई।
  • इसने द्वारका (गुजरात) में रणछोड़ मंदिर (श्री कृष्ण) का निर्माण करवाया।
  • दरबारी विद्वान :-
    1. चन्द्रशेखर :-
      • पुस्तकें :-
        1. सुर्जन चरित
        2. हम्मीर हठ

  • पुस्तक : नेहतरंग
  • वास्तविक पुत्र : उम्मेद सिंह
  • दत्तक पुत्र (गोद लिया पुत्र) : दलेल सिंह (यह सालिम सिंह का पुत्र था।)
    • रानी : कृष्णा कंवर (दलेल सिंह की रानी तथा जयपुर के राजा जयसिंह की पुत्री)
  • रानी : अमर कंवर (यह जयपुर के राजा जयसिंह की बहन थी।)

बूंदी का उतराधिकार संघर्ष :-

  • मध्य : दलेल सिंह Vs उम्मेद सिंह
  • जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने दलेल सिंह का साथ दिया, जबकि मराठों ने उम्मेद सिंह का साथ दिया।
  • बूंदी राजस्थान की पहली ऐसी रियासत थी जिसकी आन्तरिक राजनीति को मराठों द्वारा प्रभावित किया गया।
  • उम्मेद सिंह का साथ देने के लिए अमर कंवर ने मराठा सेनापति मल्हार राव होल्कर को बुलाया।

  • 1818 ई. में इसने अंग्रेजों के साथ संधि की।

  • कोटा में चौहान वंश की हाड़ा शाखा का शासन था।

कोटा के चौहान वंश के प्रमुख राजा

क्र. सं.राजा
1माधोसिंह
2मुकुन्द सिंह
3भीम सिंह
4उम्मेद सिंह
5किशोर सिंह द्वितीय
6राम सिंह द्वितीय
  • पिता : रतनसिंह (बूंदी का राजा)
    • दिल्ली के शासक मुगल बादशाह जहांगीर ने रतनसिंह को ‘रामराज’ तथा ‘सरबुलन्दराज’ नामक दो उपाधियां दी।
  • 1631 ई. में दिल्ली के शासक मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बूंदी राज्य का विभाजन कर कोटा राज्य की स्थापना की तथा माधोसिंंह को कोटा का स्वतंत्र राजा घोषित किया।
  • मध्य एशियाई अभियान (आक्रमण) की सफलता के बाद शाहजहाँ ने इसको ‘बाद रफतार’ नामक घोड़ा भेंट किया।
  • यह धरमत के युद्ध में दाराशिकोह की तरफ से लड़ता हुआ मारा गया।
  • इसने कोटा में अबली मीणी महल का निर्माण करवाया।
  • यह वल्लभ संप्रदाय का अनुयायी था।
  • इसने अपना नाम बदलकर कृष्णदास कर लिया।
  • इसने कोटा का नाम बदलकर नन्दग्राम कर दिया।
  • इसने बारा में सांवरिया जी मंदिर का निर्माण करवाया।
  • मुगल बादशाह फर्रूखसियर के कहने पर इसने बूंदी पर आक्रमण किया तथा बूंदी के राजा बुद्ध सिंह को हरा दिया।
  • इसने बूंदी का नाम बदलकर फर्रूखाबाद कर दिया।
  • इसने बूंदी के किले से धूलधाणी तथा कडकबिलजी नामक दो तोपों को उठाकर अपने साथ कोटा ले गया।
  • फर्रूखसियर ने इसे बारां का शेरगढ़ किला दिया।
  • इसने शेरगढ़ किले का नाम बदलकर बरसाना कर दिया।
  • 1817 ई. में इसने अंग्रेजों के साथ संधि कर ली।
  • उम्मेद सिंह के समय कोटा का दीवान (प्रधानमंत्री) जालिम सिंह झाला था।

पूरक संधि :-

  • परिभाषा : संंधि करने के बाद संधि में बदलाव करना या दो बार संधि करना या संधि में संधि जोड़ना पूरक संधि कहलाता है।
  • समय : फरवरी, 1818
  • मध्य : कोटा रियासत + अंग्रेज
  • अंग्रेजों तथा कोटा के राजा उम्मेद सिंह के मध्य 1817 में हुई संधि में ही फरवरी, 1818 ई. में दो बाते ओर जुड़वायी गई, जिसे पूरक संधि कहा गया।
  • पूरक संधि की दो शर्तें :-
    1. पूरक संधि के अनुसार उम्मेद सिंह या उसके वंशज ही हमेशा कोटा के राजा बनेंगे तथा कोटा का दीवान (प्रधानमंत्री) जालिम सिंह झाला या उसके वंशज को ही हमेशा कोटा का दीवान नियुक्त किया जायेगा।
    2. कोटा की सारी शक्तियां दीवान को दी जायेंगी। (राजा के पास कोई शक्ति नहीं होगी)

मांगरोल का युद्ध :-

  • समय : 1 अक्टूबर, 1821 ई.
  • स्थान : मांगरोल (बारां)
  • मध्य : किशोर सिंह-द्वितीय Vs जालिम सिंह झाला
  • इस युद्ध में जालिम सिंह झाला की जीत हुई तथा किशोर सिंह द्वितीय हार गया।
  • इस युद्ध में अंग्रेजों (कर्नल जेम्स टॉड) ने जालिम सिंह झाला का साथ दिया।
  • इस युद्ध में किशोर सिंह द्वितीय के छोटे भाई पृथ्वी सिंह विरगति को प्राप्त हुए।
  • इनकी स्मृति में बमोरीकलां मार्ग पर स्मारक बने हैं, जिन्हें सुरली के नाम से जाना जाता हैं।
  • 1838 ई. में अंग्रेजों ने कोटा रियासत का विभाजन कर झालावाड़ रियासत की स्थापना की तथा जालिम सिंह झाला के पोते मदन सिंह झाला को झालावाड़ का स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया।
  • झालावाड़ की राजधानी झालरापाटन को बनाया गया।
  • झालावाड़ राजस्थान की सबसे अंतिम रियासत थी। अर्थात् इसके बाद राजस्थान में कोई भी अन्य रियासत नहीं बनायी गयी।

हाड़ौती क्षेत्र : बूंदी तथा कोटा में चौहानों की हाड़ा शाखा का शासन होने के कारण बूंदी तथा कोटा क्षेत्र को हाड़ौती क्षेत्र कहा जाता है।

  • झालावाड़ में झाला वंश का शासन था।
  • संस्थापक : मदन सिंह झाला

झालावाड़ के प्रमुख राजा

क्र. सं.राजा
1मदन सिंह झाला
2राजेन्द्र सिंह

  • दादा : जालिम सिंह झाला
  • 1837 ई. में इसने कोटा से अलग स्वतंत्र झालावाड़ राज्य की स्थापना की।
  • 1838 ई. में झालावाड़ रियासत को अंग्रेजों ने मान्यता दी।
  • झालावाड़ राजस्थान की अन्तिम रियासत थी।
  • झालावाड़ रियासत की राजधानी झालरापाटन को बनाया गया, जो चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित है।
  • झालरापाटन को राजस्थान में ‘घंटियों का शहर’ कहा जाता है।
  • रोम (इटली) को विश्व में ‘घंटियों का शहर’ कहा जाता है।

  • इसने झालावाड़ में काष्ठ प्रासाद महल का निर्माण करवाया।
  • इसने झालावाड़ के सभी मंदिरों को हरिजनों हेतु खुलवा दिए थे।

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