कछवाहा वंश का इतिहास
- कछवाहाओं का मानना है कि उनकी उत्पत्ति भगवान राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश से हुई है।
- राम के वंशज होने के कारण इन्हें ‘रघुवंश तिलक’ भी कहा जाता है।
- गौरी शंकर हीराचन्द औझा के अनुसार कछवाहा वंश का मूल पुरुष कछवाहा था, इसीलिए इन्हें कछवाहा कहा जाता था।
राजस्थान में कछवाहा वंश की रियासतें
क्र. सं. | रियासत |
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1 | आमेर (जयपुर) |
2 | अलवर |
1. आमेर (जयपुर) का कछवाहा वंश
- आमेर में पहले मीणा वंश का शासन था, लेकिन बाद में कछवाहा वंश ने यहाँ शासन किया।
आमेर में कछवाहा वंश के प्रमुख राजा
क्र. सं. | राजा | शासन काल |
---|---|---|
1 | दुल्हेराय (दुलहराय) | |
2 | काकिलदेव | |
3 | राजदेव | |
4 | भारमल | 1547- 1573 ई. |
5 | भगवानदास/ भगवंतदास | 1573- 1589 ई. |
6 | मानसिंह | 1589- 1614 ई. |
7 | मिर्जा राजा जयसिंह | 1621- 1667 ई. |
8 | सवाई जयसिंह | 1700- 1743 ई. |
9 | सवाई ईश्वरीसिंह | 1743- 1750 ई. |
10 | सवाई माधोसिंह प्रथम | 1750- 1768 ई. |
11 | सवाई प्रताप सिंह | 1778-1803 ई. |
12 | सवाई जगतसिंह द्वितीय | 1803-1818 ई. |
13 | सवाई रामसिंह द्वितीय | 1835-1880 ई. |
14 | सवाई माधोसिंह द्वितीय | 1880-1922 ई. |
15 | सवाई मानसिंह द्वितीय | 1922- 1947 ई. |
1. दुल्हेराय (दुलहराय)
- वास्तविक नाम : तेजकरण
- 1137 ई. में यह नरवर (मध्य प्रदेश) से राजस्थान आया।
- इसने दौसा के बड़गुर्जरों को हराकर वहां अधिकार कर लिया तथा दौसा को अपनी राजधानी बनाया।
- दौसा कछवाहा वंश की पहली राजधानी थी।
- इसने रामगढ़/ जमवारामगढ़ के मीणाओं को हराकर रामगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा रामगढ़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
- रामगढ़ कछवाहा वंश की दूसरी राजधानी थी।
- इसने रामगढ़ में जमवाय माता (कछवाहा वंश की कुल देवी) का मंदिर बनवाया।
2. काकिलदेव
- 1207 ई. में इसने आमेर के मीणाओं को हराकर वहां अधिकार कर लिया तथा आमेर को अपनी राजधानी बनाया।
- आमेर कछवाहा वंश की तीसरी राजधानी थी।
- इसने आमेर में अंबिकेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।
3. राजदेव
- इसने आमेर में कदमी महल का निर्माण करवाया जहाँ आमेर के राजाओं का राजतिलक होता था।
4. भारमल
- शासन काल : 1547-1573 ई.
- इसने मजनूं खाँ तथा चगताई खाँ की सहायता से अकबर से मुलाकात की।
- 1562 ई. में इसने अकबर की अधिनता (संधि) स्वीकार की। ऐसा करने वाला यह राजस्थान का पहला राजा था।
- इसने सांभर में अपनी बेटी हरखाबाई का विवाह अकबर के साथ किया।
- अकबर ने इसे 5000 का मनसबदार बनाया तथा ‘अमीर-उल-उमरा’ की उपाधि दी।
हरखाबाई :-
- उपाधि : मरियम उज्जमानी
- बेटा : जहाँगीर
5. भगवानदास/ भगवंतदास
- शासन काल : 1573-1589 ई.
- इसने सरनाल (गुजरात) में मिर्जा विद्रोह को दबाया इसलिए अकबर ने इसे नगाड़ा तथा झंडा देकर सम्मानित किया।
- अकबर ने इसे 7 वर्षों तक पंजाब का गवर्नर बनाया।
- इसने अपनी बेटी मानबाई का विवाह जहाँगीर के साथ किया।
मानबाई :-
- उपाधि : शाह बेगम/ शाह-ए-बेगम
- बेटा : खुसरो
- जहाँगीर की शराब पीने की आदत से परेशान होकर इसने आत्महत्या कर ली।
6. मानसिंह
- शासन काल : 1589-1614 ई.
- रानी : कनकावती
- बेटा : जगतसिंह
- राजतिलक के समय अकबर ने इसे 5000 का मनसबदार बनाया, लेकिन 1605 ई. में इसे बढ़ाकर 7000 कर दिया गया।
- इसने नासिर खाँ तथा कतलू खाँ को हराकर पूरी के जगन्नाथ मंदिर पर नियंत्रण स्थापित किया।
- मृत्यु : एलिचपुर (महाराष्ट्र)
- अकबर ने इसे दो उपाधियाँ दी जैसे-
- मिर्जा राजा
- फर्जन्द (अर्थ- बेटा)
- अकबर ने इसे काबुल, बंगाल एवं बिहार का गवर्नर बनाया।
गवर्नर
क्र. सं. | स्थान | विशेष |
---|---|---|
1 | काबुल | 𑇐 समय : 1581-1586 ई. 𑇐 यहाँ इसने मिर्जा हकीम के विद्रोह को दबाया। 𑇐 यहाँ इसने पांच कबिलों (रोशनिया, युसुफजाई) को हराया इसलिए इसने आमेर के झंडे का रंग पंचरंगा कर दिया। 𑇐 पहले आमेर का झंडा सफेद/ झाड़शाही था। |
2 | बंगाल | 𑇐 यहाँ इसने ढ़ाका (पूर्वी बंगाल) के राजा केदार को हराया तथा शिला माता की मूर्ति लेकर आया जिसे आमेर में स्थापित करवाया। 𑇐 इसने आमेर में शिला माता (कछवाहा वंश की इष्टदेवी) का मंदिर बनाया। 𑇐 इसने नासिरजंग व कतलू खाँ को हराकर पुरी (ओडिशा) के जगन्नाथ मंदिर पर नियंत्रण स्थापित किया। |
3 | बिहार | 𑇐 यहाँ इसने कई राजाओं को हराया। जैसे- 1. पूरणमल (गिद्धौर का राजा) 2. अनंत चेरू (गया का राजा) 3. रामचन्द्र देव (खुर्दा का राजा) |
सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
क्र. सं. | नगर | स्थित | निर्माण | विशेष |
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1 | अकबर नगर | बंगाल | मानसिंह | 𑇐 वर्तमान नाम : राजमहल |
2 | मानपुर | बिहार | मानसिंह | |
किला | ||||
1 | रोहतासगढ़ का किला | बिहार | मानसिंह | |
2 | आमेर का किला | जयपुर | मानसिंह | |
3 | जमवारामगढ़ का किला | जयपुर | मानसिंह | |
मंदिर | ||||
1 | भवानी शंकर मंदिर | बैकटपुर (बिहार) | मानसिंह | |
2 | महादेव मंदिर | गया (बिहार) | मानसिंह | |
3 | राधा गोविंद मंदिर | वृंदावन (उत्तर प्रदेश) | मानसिंह | |
4 | जगत शिरोमणि मंदिर | आमेर (जयपुर) | कनकावती (मानसिंह) | 𑇐 इस मंदिर का निर्माण कनकावती ने अपने बेटे जगतसिंह की याद में करवाया था। 𑇐 इस मंदिर में मानसिंह द्वारा चित्तौड़ से लायी गई भगवान श्री कृष्ण की वही मूर्ति लगी हुई है, जिसकी पूजा मीरा बाई चित्तौड़ में करती थी। |
दरबारी विद्वान
क्र. सं. | दरबारी विद्वान | पुस्तक |
---|---|---|
1 | पुंडरीक विट्ठल | 𑇐 राग माला 𑇐 राग मंजरी 𑇐 राग चंद्रोदय 𑇐 नर्तन निर्णय |
2 | राय मुरारी दास | 𑇐 मान प्रकास |
3 | जगन्नाथ | 𑇐 मानसिंह कीर्ति मुक्तावली |
7. मिर्जा राजा जयसिंह
- शासन काल : 1621-1667 ई.
- इसका शासनकाल आमेर के कछवाहा वंश के राजाओं में सर्वाधिक (46 वर्ष) था।
- समकालीन मुगल बादशाह :-
- जहाँगीर : जहाँगीर ने इसे अहमद नगर (महाराष्ट्र) के मलिक अम्बर के खिलाफ भेजा।
- शाहजहाँ : शाहजहाँ ने इसे मिर्जा राजा की उपाधि दी तथा कंधार (अफगानिस्तान) अभियान पर भेजा।
- औरंगजेब : औरंगजेब ने इसे शिवाजी (दक्षिण भारत) के खिलाफ भेजा।
- जहाँगीर ने इसे अहमद नगर (महाराष्ट्र) के मलिक अम्बर के खिलाफ भेजा।
- शाहजहाँ ने इसे मिर्जा राजा की उपाधि दी तथा कंधार (अफगानिस्तान) अभियान पर भेजा।
- औरंगजेब ने इसे शिवाजी (दक्षिण भारत) के खिलाफ भेजा।
- यह मुगलों का एकमात्र ऐसा सेनापति था, जो मुगलों को हराता है।
- मृत्यु : बुरहानपुर (महाराष्ट्र)
पुरन्दर की संधि :-
- समय : 1665 ई.
- मध्य : मिर्जा राजा जयसिंह (औरंगजेब) + शिवाजी
- निकोलो मनूची (इटली) ने अपनी पुस्तक ‘Storia/Storio Do Mogor’ में इस संधि का वर्णन किया।
- इस संधि के तहत शिवाजी ने 35 में से 23 किले मुगलों को दिए।
सांस्कृतिक उपलब्धियां
क्र. सं. | नगर | स्थान | निर्माण | विशेष |
---|---|---|---|---|
1 | जयसिंह पुरा | महाराष्ट्र | मिर्जा राजा जयसिंह | |
किला | ||||
1 | जयगढ़ | आमेर | मिर्जा राजा जयसिंह | 𑇐 यह किला आमेर की संकटकालीन राजधानी था। 𑇐 प्राचीन नाम : चील का टोला |
दरबारी विद्वान
क्र. सं. | दरबारी विद्वान | पुस्तक |
---|---|---|
1 | बिहारी जी | 𑇐 बिहारी सतसई (शृंगार रस के 700 दोहे) |
2 | रायकवि | 𑇐 जयसिंह चरित्र |
3 | कुलपति मिश्र | 𑇐 यह बिहारी जी का भांजा था। 𑇐 इसने 52 पुस्तकें लिखी, जिनसे मिर्जा राजा जयसिंह के दक्षिण अभियानों की जानकारी मिलती है। |
8. सवाई जयसिंह
- शासन काल : 1700-1743 ई.
- रानी :-
- सूरज कंवर :-
- पुत्र : ईश्वरी सिंह
- चंद्र कंवर :-
- पुत्र : माधोसिंह
- सूरज कंवर :-
- यह 7 मुगल बादशाहों के समकालिन था।
- बहादुर शाह प्रथम (मुअज्जम) ने आमेर पर आक्रमण किया तथा सवाई जयसिंह को राजा के पद से हटाकर विजय सिंह को आमेर का राजा बनाया।
- बहादुर शाह प्रथम ने आमेर का नाम बदलकर इस्लामाबाद/ मोमिनाबाद कर दिया।
- 1708 ई. में यह देबारी समझौते में शामिल हुआ।
- इसने भरतपुर के राजा मोहकम सिंह के खिलाफ बदन सिंह का साथ दिया तथा बदन सिंह को भरतपुर का राजा बनाया।
- इसने बदन सिंह को डीग की जागीर तथा बृजराज (ब्रजराज) की उपाधि दी।
- मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने इसे राज राजेश्वर की उपाधि दी।
- इसे तीन बार मालवा (मध्य प्रदेश) का मुगल गवर्नर बनाया गया।
- इसने बूंदी में उम्मेदसिंह के खिलाफ दलेल सिंह का साथ दिया।
मुगल उत्तराधिकारी संघर्ष :-
- मध्य : आजम (हार) Vs मुअज्जम (जीत)
- इस संघर्ष में आजम का साथ सवाई जयसिंह ने तथा मुअज्जम का साथ जयसिंह के भाई विजय सिंह ने दिया।
- जीत के बाद मुअज्जम ‘बहादुर शाह प्रथम’ के नाम से राजा बना।
सांभर का युद्ध :-
- समय : 1709 ई.
- स्थान : सांभर
- मध्य : सैय्यद हुसैन (मुगल सेनापति) Vs सवाई जयसिंह (आमेर) + अजीत सिंह (मारवाड़)
- जीत : जयसिंह + अजीत सिंह
- इस युद्ध के बाद सवाई जयसिंह ने आमेर पर पुनः अधिकार कर लिया।
- इस युद्ध के बाद सांभर झील पर आमेर तथा मारवाड़ का संयुक्त अधिकार था।
गंगवाना का युद्ध :-
- समय : 1741 ई.
- स्थान : गंगवाना (अजमेर)
- मध्य : अभय सिंह (मारवाड़) Vs जोरावर सिंह (बीकानेर)
- जीत : जोरावर सिंह
- इस युद्ध में सवाई जयसिंह ने जोरावर सिंह का साथ दिया।
मुगल (सवाई जयसिंह) Vs मराठा
क्र. सं. | युद्ध | समय | स्थान | जीत |
---|---|---|---|---|
1 | पिलसुद का युद्ध | 10 मई, 1715 ई. | पिलसुद (मध्य प्रदेश) | सवाई जयसिंह (मुगल) |
2 | मंदसौर का युद्ध | 1733 ई. | मंदसौर (मध्य प्रदेश) | मराठा |
3 | रामपुरा का युद्ध | 1735 ई. | रामपुरा (कोटा, राजस्थान) | मराठा |
धौलपुर समझौता :-
- समय : 1741 ई.
- स्थान : धौलपुर
- मध्य : सवाई जयसिंह + बालाजी बाजीराव (मराठा पेशवा)
- इस समझौते में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला की तरफ से प्रतिनिधित्व सवाई जयसिंह ने किया।
सांस्कृतिक उपलब्धियां :-
- अश्वमेध यज्ञ :-
- आयोजन : 1740 ई. में जयसिंह द्वारा
- पुरोहित : पुंडरीक रत्नाकर
- जयपुर के सभी दरवाजे बंद कर दिए गए और एक घोड़ा छोड़ा गया जिसे दीप सिंह कुम्भाणी ने पकड़ लिया।
- स्थापत्य कला
- साहित्य कला
- चित्रकला
सांस्कृतिक उपलब्धियां
क्र. सं. | स्थापत्य कला | संस्थापक | विशेष |
---|---|---|---|
1 | जयपुर शहर | जयसिंह | 𑇐 स्थापना : 18 नवंबर, 1727 ई. 𑇐 वास्तुकार : विद्याधर भट्टाचार्य (बंगाल) 𑇐 इसकी स्थापना में पुर्तगाली ज्योतिषी जेवियर डी सिल्वा की सहायता ली गई। 𑇐 इस शहर को केन्टन (चीन) एवं बगदाद (इराक) शहरों की तर्ज पर बसाया गया। 𑇐 यह 9 वर्गों के सिद्धांत पर बसाया गया। 𑇐 यह भारत का पहला आधुनिक एवं नियोजित शहर है। 𑇐 बादल महल, सिटी पैलेस (जयपुर) की पहली इमारत थी जिसे पहले शिकार होदी के नाम से जाना जाता था। 𑇐 बख्तराम शाह की पुस्तक बुद्धि विलास से जयपुर की स्थापना की जानकारी मिलती है। 𑇐 जयपुर कछवाहा वंश की चौथी राजधानी थी। 𑇐 वर्ष 2019 में युनेस्को ने जयपुर शहर को विश्व विरासत सूची में शामिल किया। 𑇐 स्टेलनी रीड ने अपनी पुस्तक ‘Royal Towns of India’ में जयपुर को ‘पिंक सिटी’ कहा है। |
2 | नाहरगढ़ का किला (जयपुर) | जयसिंह | 𑇐 यह किला मराठों के खिलाफ सुरक्षा हेतु बनवाया गया। 𑇐 अन्य नाम :- 1. जयपुर का पहरेदार 2. सुदर्शनगढ़ (पहले) 𑇐 शहरी सैनिक नाहरसिंह के नाम पर इस किले का नाम नाहरगढ़ रखा गया। |
3 | चंद्र महल (जयपुर) | जयसिंह | 𑇐 वर्तमान नाम : सिटी पैलेस 𑇐 इसे जयसिंह ने स्वयं के लिए बनवाया था। 𑇐 यह 7 मंजिला इमारत है, जिसके सबसे ऊपरी भाग को मुकुट मंदिर कहते हैं। |
4 | सिसोदिया रानी का महल (जयपुर) | जयसिंह | 𑇐 जयसिंह ने अपनी रानी चंद्र कंवर हेतु महल का निर्माण करवाया जिसे सिसोदिया रानी का महल कहा जाता है। |
5 | जल महल (जयपुर) | जयसिंह | 𑇐 यह महल जयपुर की मानसागर झील में स्थित है। 𑇐 अश्वमेध यज्ञ के ब्राह्मणों को इसी महल में ठहराया गया था। |
6 | गोविन्द देव जी मंदिर (जयपुर) | जयसिंह | 𑇐 यह मंदिर गौड़ीय/गोडीय सम्प्रदाय का प्रमुख मंदिर है। 𑇐 जयपुर के राजा स्वयं को गोविन्द देव जी का दीवान मानते थे। |
7 | हरमाड़ा नहर (जयपुर) | जयसिंह | 𑇐 इस नहर का निर्माण जयपुर में पेयजल की आपूर्ति हेतु किया गया था। |
8 | जंतर मंतर | जयसिंह | 𑇐 जयसिंह ने भारत के 5 स्थानों पर जंतर मंतर का निर्माण करवाया। जैसे- 1. दिल्ली (सबसे पहला) 2. जयपुर (सबसे बड़ा) 3. उज्जैन (मध्य प्रदेश) 4. मथुरा (उत्तर प्रदेश) 5. काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) 𑇐 वास्तविक नाम : यंत्र-मंत्र 𑇐 वर्ष 2010 में जयपुर के जंतर मंतर को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया। |
साहित्य कला | |||
1 | जयसिंह कारिका (ज्योतिष ग्रंथ) | 𑇐 यह ज्योतिष ग्रंथ जयसिंह द्वारा लिखा गया। | |
2 | जीज-ए-मुहम्मदशाही (नक्षत्र सारणी) | 𑇐 यह नक्षत्र सारणी जयसिंह ने मुहम्मद शाह रंगीला पर तैयार करवाई। | |
चित्रकला | |||
1 | सूरत खाना (चित्रकला विभाग) | जयसिंह | 𑇐 चित्रकार : साहिबराम, मुहम्मदशाह |
दरबारी विद्वान
क्र. सं. | दरबारी विद्वान | विशेष |
---|---|---|
1 | पुंडरीक रत्नाकर | 𑇐 पुस्तक : जयसिंह कल्पद्रुम |
2 | पण्डित जगन्नाथ | 𑇐 पुस्तकें : सिद्धान्त सम्राट तथा सिद्धान्त कौस्तुभ 𑇐 इसने यूक्लिड ज्यामिति नामक पुस्तक का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया। |
3 | केवलराम | 𑇐 इसने लोगरिथम नामक फ्रेन्च पुस्तक का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया। |
4 | नयन चन्द्र मुखर्जी | 𑇐 इसने ऊकर नामक अरबी ग्रंथ का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया |
5 | मुहम्मद मेहरी | 𑇐 इसे विदेशों से पुस्तकें लाने के लिए भेजा गया। |
6 | मुहम्मद शरीफ | 𑇐 इसे विदेशों से पुस्तकें लाने के लिए भेजा गया। |
7 | बख्तराम शाह | 𑇐 पुस्तक : बुद्धिविलास (इस पुस्तक से जयपुर की स्थापना की जानकारी मिलती है।) |
सामाजिक सुधार :-
- जयपुर में सत्ती प्रथा एवं बाल विवाह को नियंत्रित किया।
- विधवा विवाह एवं अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन दिया।
- साधु संतो को गृहस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित किया तथा उनके लिए मथुरा (उत्तर प्रदेश) के पास वैरागपुर नामक गाँव बसाया।
- ब्राह्मणों के आपसी भेदभाव को समाप्त किया।
देबारी समझौता :-
- समय : 1708 ई.
- स्थान : देबारी (उदयपुर)
- इस समझौते के अनुसार माधोसिंह को जयपुर का राजा होना चाहिए था, लेकिन जयसिंह ने ईश्वरी सिंह को राजा बना दिया।
- माधोसिंह तथा ईश्वरी सिंह में जयपुर की राजगद्दी हेतु उत्तराधिकारी संघर्ष हुआ।
9.सवाई ईश्वरीसिंह
- शासन काल : 1743-1750 ई.
राजमहल का युद्ध :-
- समय : 1747 ई.
- स्थान : राजमहल (टोंक)
- मध्य : ईश्वरीसिंह (जीत) Vs माधोसिंह प्रथम (हार)
- ईश्वरीसिंह के सहयोगी :-
- सूरजमल (भरतपुर)
- माधोसिंह प्रथम के सहयोगी :-
- जगत सिंह द्वितीय (मेवाड़)
- उम्मेद सिंह (बूंदी)
- दुर्जन साल (कोटा)
- मराठा
- इस युद्ध की जीत की याद में ईश्वरीसिंह ने जयपुर में ईसरलाट/ लाट-मीनार (7 मंजिला स्तम्भ) का निर्माण करवाया। जिसका वर्तमान नाम सरगासूली है।
बगरू का युद्ध :-
- समय : 1748 ई.
- स्थान : बगरू (जयपुर)
- मध्य : ईश्वरीसिंह (हार) Vs माधोसिंह प्रथम (जीत)
- ईश्वरीसिंह के सहयोगी :-
- सूरजमल (भरतपुर)
- माधोसिंह प्रथम के सहयोगी :-
- जगत सिंह द्वितीय (मेवाड़)
- उम्मेद सिंह (बूंदी)
- दुर्जन साल (कोटा)
- मराठा
- युद्ध के बाद-
- ईश्वरीसिंह ने माधोसिंह प्रथम को पाँच परगने दिए।
- उम्मेद सिंह को बूंदी का राजा मान लिया गया।
- मराठों को युद्ध हरजाना दिया गया।
- मराठों ने ईश्वरीसिंह को युद्ध हरजाने हेतु परेशान किया। अतः ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या कर ली।
- ईश्वरीसिंह राजस्थान का एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने मराठों से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी।
10. सवाई माधोसिंह प्रथम
- शासन काल : 1750-1768 ई.
- 1751 ई. में इसने जयपुर में मराठों का कत्लेआम करवाया।
कांकोड का युद्ध :-
- समय : 1759 ई.
- स्थान : कांकोड (टोंक)
- मध्य : माधोसिंह प्रथम (जीत) Vs मराठा (हार)
भटवाड़ा का युद्ध :-
- समय : 1761 ई.
- स्थान : भटवाड़ा (बारां)
- मध्य : माधोसिंह प्रथम Vs शत्रुशाल (कोटा)
- कारण : रणथम्भौर का किला
- जीत : शत्रुशाल
- इस युद्ध में शत्रुशाल की तरफ से सेनापति कोटा का जालिम सिंह झाला था।
सांस्कृतिक उपलब्धियां
क्र. सं. | स्थापत्य कला | संस्थापक | विशेष |
---|---|---|---|
1 | सवाई माधोपुर शहर (राजस्थान) | माधोसिंह प्रथम | 𑇐 स्थापना : 1763 ई. |
2 | माधोराजपुरा किला (जयपुर) | माधोसिंह प्रथम | 𑇐 यह किला मराठों पर जीत की याद में बनवाया गया। |
3 | शीतला माता मंदिर (चाकसू, जयपुर) | माधोसिंह प्रथम | |
4 | मोती डूंगरी महल (जयपुर) | माधोसिंह प्रथम |
11. सवाई प्रतापसिंह
- शासन काल : 1778-1803 ई.
- यह ब्रजनिधि नाम से कविताएँ लिखता था।
- इसकी कविताओं के संग्रह को ब्रजनिधि ग्रंथावली कहते हैं।
- काव्य गुरु : गणपति भारती
- संगीत गुरु :-
- चाँद खाँ :-
- प्रतापसिंह ने इसे बुद्ध प्रकाश की उपाधि दी।
- पुस्तक : स्वर सागर
- चाँद खाँ :-
- इसके काल में जयपुर में तमाशा लोक नाट्य लोकप्रिय हुआ। जिसके लिए बंशीधर भट्ट को महाराष्ट्र से जयपुर बुलाया गया।
- इसके दरबार में 22 कलाकार (विद्वान) थे। जिन्हें गंधर्व/ प्रताप बाईसी कहा जाता था।
- इसने 22 कलाकारों/ विद्वानों हेतु गुणीजन खाना नामक विभाग बनवाया।
तुंगा का युद्ध :-
- समय : 1787 ई.
- स्थान : तुंगा (लालसोट के पास, जयपुर)
- मध्य : प्रतापसिंह (जीत) Vs मराठा (हार)
- मराठा सेनापति : महादजी सिंधिया
- प्रतापसिंह का सहयोगी : विजयसिंह (जोधपुर/ मारवाड़)
पाटन का युद्ध :-
- समय : 1790 ई.
- स्थान : पाटन (सीकर)
- मध्य : प्रतापसिंह + विजयसिंह (जोधपुर/ मारवाड़) Vs मराठा
- मराठा सेनापति : डी.बोई (फ्रांसीसी)
- जीत : मराठा
मालपुरा का युद्ध :-
- समय : 1800 ई.
- स्थान : मालपुरा (टोंक)
- मध्य : प्रतापसिंह + भीमसिंह (जोधपुर/ मारवाड़) Vs मराठा
- मराठा सेनापति : दौलत राव सिंधिया
- जीत : मराठा
सांस्कृतिक उपलब्धियां
क्र. सं. | स्थापत्य कला | संस्थापक | विशेष |
---|---|---|---|
1 | हवामहल (जयपुर) | प्रतापसिंह | 𑇐 स्थापना : 1799 ई. 𑇐 वास्तुकार : उस्ताद लालचन्द्र 𑇐 आकृति : भगवान श्री कृष्ण के मुकुट के समान 𑇐 यह 5 मंजिला इमारत है। जैसे- 1. शरद/ प्रताप मंदिर (पहली) 2. रतन मंदिर (दूसरी) 3. विचित्र मंदिर (तीसरी) 4. प्रकाश मंदिर (चौथी) 5. हवा मंदिर (पांचवी) 𑇐 खिड़कियां : 365 𑇐 झरोखे : 953 𑇐 हवामहल से रानियां तीज तथा गणगौर की सवारियां देखती थी। |
साहित्य कला | |||
1 | 𑇐 प्रतापसिंह बृजनिधि नाम से कविताएं लिखता था। | ||
चित्रकला | |||
1 | चित्रकला स्कूल (जयपुर) | प्रतापसिंह | 𑇐 प्रतापसिंह का शासन काल जयपुर चित्रकला का स्वर्णकाल माना जाता है। 𑇐 चित्रकार : लालचन्द (इसने जयपुर की चित्रकला स्कूल में पशुओं की लड़ाई के चित्र बनाये) |
संगीत सम्मेलन :-
- आयोजन : जयपुर (प्रतापसिंह द्वारा)
- अध्यक्ष : देवर्षि बृजपाल भट्ट
- इस सम्मेलन में शामिल होने वाले सभी सदस्यों द्वारा ‘राधा गोविन्द संगीत सार’ नामक पुस्तक लिखी गई।
12. सवाई जगतसिंह द्वितीय
- शासन काल : 1803-1818 ई.
- इसकी प्रेमिका सर कपूर (नर्तकी) के कारण इसे जयपुर का बदनाम शासक भी कहते हैं।
- सर कपूर को शासन कार्यों में हस्तक्षेप के कारण नाहरगढ़ किले में नजर बंद कर दिया गया।
- 1818 ई. में इसने अंग्रेजों से संधि की।
गिंगोली का युद्ध :-
- समय : 1807 ई.
- स्थान : गिंगोली (नागौर)
- मध्य : जगतसिंह द्वितीय Vs मानसिंह
नोट : विजयसिंह (जोधपुर) की प्रेमिका गुलाबराय को 'जोधपुर की नूरजहाँ' कहा जाता है।
13. सवाई रामसिंह द्वितीय
- शासन काल : 1835-1880 ई.
- यह अपने पिता सवाई जयसिंह तृतीय की मृत्यु के बाद कम उम्र में राजा बना।
- संरक्षक : मेजर जॉन लुडलो
- इसके शासन काल में जॉन लुडलो ने निम्न कुरीतियों पर रोक लगाई-
- सत्ती प्रथा
- समाधि प्रथा
- कन्या वध
- मानव व्यापार (कन्या क्रय-विक्रय)
- इसने 1857 ई. की क्रांति में अंग्रेजों का साथ दिया इसीलिए अंग्रेजों ने इसे ‘सितार-ए-हिन्द’ की उपाधि तथा ‘कोटपुतली’ परगना दिया।
- 1868 ई. में इसने ब्रिटिश शासक जार्ज एडवर्ड पंचम के जयपुर आगमन के समय जयपुर में गुलाबी रंग (गेरुआ रंग) करवाया।
- जाॅर्ज एडवर्ड पंचम ने जयपुर को ‘गोल्डन बर्ड‘ कहा।
- इसके काल में जयपुर में ‘ब्लू पॉटरी’ लोकप्रिय हुई।
सांस्कृतिक उपलब्धियां
क्र. सं. | सांस्कृतिक उपलब्धियां | स्थापना | संस्थापक | विशेष |
---|---|---|---|---|
1 | मदरसा-ए-हुनरी | 1857 ई. | रामसिंह द्वितीय | 𑇐 इस संस्थान की स्थापना राज्य में कला एवं संस्कृति के विकास हेतु की गई। 𑇐 1886 ई. में सवाई माधोसिंह द्वितीय ने इसका नाम बदलकर ‘महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स’ कर दिया। 𑇐 1988 ई. में इसका नाम बदलकर ‘राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स’ कर दिया। 𑇐 वर्तमान नाम : राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स |
2 | कन्या विद्यालय (जयपुर) | 1866 ई. | रामसिंह द्वितीय | 𑇐 इसकी स्थापना कांति चंद्र मुखर्जी की सलाह पर की गई थी। 𑇐 राजस्थान की किसी भी रियासत में यह पहला कन्या विद्यालय था। |
3 | महाराजा काॅलेज (जयपुर) | 1844 ई. | रामसिंह द्वितीय | |
4 | संस्कृत काॅलेज (जयपुर) | 1844 ई. | रामसिंह द्वितीय | |
5 | अलबर्ट हाॅल संग्रहालय (जयपुर) | 1876 ई. | रामसिंह द्वितीय | 𑇐 इसकी स्थापना प्रिंस अलबर्ट के जयपुर आगमन पर की गई। 𑇐 नींव : 1876 ई. (प्रिंस अलबर्ट द्वारा) 𑇐 वास्तुकार : स्टीवन जैकब 𑇐 उद्घाटन : 1887 ई. (एडवर्ड ब्रेडफोर्ड द्वारा) 𑇐 यह राजस्थान का पहला संग्रहालय है। |
6 | रामगढ़ बाँध (जयपुर) | रामसिंह द्वितीय | ||
7 | रामनिवास बाग (जयपुर) | रामसिंह द्वितीय | ||
8 | रामप्रकाश थिएटर (जयपुर) | रामसिंह द्वितीय |
रूपा बढारण केस :-
- यह केस जयपुर के राजा सवाई जयसिंह तृतीय की मृत्यु से संबंधित था।
- इस केस की जाँच हेतु ब्लैक और ऑलविज नामक दो अंग्रेज अधिकारी नियुक्ति किये गये थे।
- जयपुर की जनता ने इन अंग्रेज अधिकारियों पर हमला कर दिया, जिसमें ब्लैक मारा गया।
14. सवाई माधोसिंह द्वितीय
- शासन काल : 1880-1922 ई.
- अन्य नाम : बब्बर शेर
- इसने अपनी 9 दासियों हेतु नाहरगढ़ (जयपुर) में 9 एक जैसे महल बनवाए।
- इसने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (B.H.U.) की स्थापना हेतु महन मोहन मालवीय को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी।
- 1904 ई. में इसने जयपुर में डाक व्यवस्था की शुरुआत की। जो राजस्थान की किसी भी रियासत में पहली बार किया गया।
- इसने चन्द्रमहल (जयपुर) में मुगल, राजपूत तथा यूरोपियन शैली में मुबारक महल का निर्माण करवाया।
15. सवाई मानसिंह द्वितीय
- शासन काल : 1922-1947 ई.
- रानी : गायत्री देवी (कूच बिहार)
- प्रधानमंत्री : मिर्जा इस्माइल (आधुनिक जयपुर का निर्माता)
- यह आमेर (जयपुर) के कछवाह वंश का अंतिम शासक था।
- यह आजादी के समय आमेर (जयपुर) का राजा था।
- 1949-1956 ई. तक यह राजस्थान के राजप्रमुख के पद पर रहे।
- यह राजस्थान का प्रथम, अंतिम एवं एकमात्र राजप्रमुख था।
गायत्री देवी :-
- यह 1962 ई. में स्वतंत्र पार्टी से आम चुनाव जीतकर लोकसभा सदस्य बनी।
- यह राजस्थान से पहली महिला लोकसभा सदस्य थी।
- आत्मकथा : The Princess Remembers
- मृत्यु : 29 जुलाई 2009
2. अलवर का कछवाहा वंश
- मिर्जा राजा जयसिंह ने कल्याणसिंह नरुका को माचेड़ी (जयपुर) की जागीर दी।
- अलवर में कछवाहा वंश की नरुका शाखा का शासन था।
अलवर में कछवाहा वंश के प्रमुख राजा
क्र. सं. | राजा |
---|---|
1 | प्रताप सिंह |
2 | बख्तावर सिंह |
3 | विनय सिंह |
4 | जयसिंह |
5 | तेजसिंह |
1. प्रताप सिंह
- यह आमेर (जयपुर) रियासत के अधीन माचेड़ी ठिकाने का सामंत था।
- यह माचेड़ी से अलवर गया।
- 1774 ई. में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने इसे अलवर का स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया।
- 1775 ई. में इसने अलवर पर अधिकार कर अपनी राजधानी बनाया।
दरबारी विद्वान
क्र. सं. | दरबारी विद्वान | पुस्तक |
---|---|---|
1 | जाचक जीवण | प्रताप रासौ |
2. बख्तावर सिंह
- यह बख्तेश तथा चन्द्रसखी नाम से कविताएं लिखता था।
- 14 नवम्बर 1803 ई. में इसने अंग्रेजों से संधि की।
- दासी : मूसी महारानी
नोट : 1803 ई. में राजस्थान की अलवर तथा भरतपुर दोनों रियासतों ने अंग्रेजों से संधि की।
लसवाड़ी का युद्ध :-
- समय : 1 नवंबर, 1803 ई.
- स्थान : लसवाड़ी गाँव (अलवर)
- मध्य : मराठा Vs अंग्रेज (बख्तावर सिंह)
3. विनय सिंह
- रानी : शीला
- अंग्रेजों ने अलवर का विभाजन कर बलवन्त सिंह को तिजारा दे दिया।
- कुछ समय बाद इसने तिजारा पुनः प्राप्त कर लिया।
सांस्कृतिक उपलब्धियां
क्र. सं. | सांस्कृतिक उपलब्धियां | निर्माण | विशेष |
---|---|---|---|
1 | मूसी महारानी की छतरी (अलवर) | विनय सिंह | 𑇐 खम्भे : 80 𑇐 अन्य नाम : 80 खम्भों की छतरी 𑇐 मूसी महारानी बख्तावर सिंह की दासी थी। |
2 | सिलीसेढ़ झील (अलवर) | विनय सिंह | 𑇐 इसका निर्माण विनय सिंह ने अपनी रानी शीला के लिए करवाया। 𑇐 अन्य नाम : राजस्थान का नन्दन कानन |
4. जयसिंह
- इसने उत्तर प्रदेश की बनारस हिन्दी विश्वविद्यालय (B.H.U.) एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याल (A.M.U.) तथा लाहौर की सनातन धर्म कॉलेज को आर्थिक सहायत दी।
- इसने पहले गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।
- 10 दिसम्बर 1903 ई. को इसने बाल विवाह तथा अनमेल विवाह पर रोक लगा दी।
- इसने स्वेदशी वस्तुओं का प्रयोग प्रारम्भ किया।
- इसने गाँवों में पंचायतों की स्थापना की।
- ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग के आगमन पर इसने अलवर में सरिस्का महल का निर्माण करवाया।
- 1933 ई. में तिजारा दंगों के बाद अंग्रेजों ने इसे राजा के पद से हटा दिया। जिसके बाद यह पेरिस (फ्रांस) चला गया।
- इसने अलवर में तथा किशनसिंह ने भरतपुर में हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित किया।
- मृत्यु : पेरिस (फ्रांस)
चैम्बर ऑफ प्रिंसेज :-
- अध्यक्ष (क्रमशः) :-
- गंगासिंह
- जयसिंह
- जयसिंह ने इसका नाम बदलकर ‘नरेन्द्र मंडल’ कर दिया।
5. तेजसिंह
- यह आजादी के समय अलवर का राजा था।
- महात्मा गाँधी की हत्या में इसकी संदिग्ध भूमिका थी, लेकिन बाद में उच्चतम न्यायालय ने इसे निर्दोष करार दे दिया।
- महात्मा गाँदी की हत्या में अलवर के प्रधानमंत्री भास्कर खरे को भी संदिग्ध माना गया।