परिचय
राजस्थान के भौतिक प्रदेशों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया गया है। जैसे-
- व्यक्तिगत आधार पर राजस्थान के भौतिक प्रदेशों का वर्गीकरण :-
- प्रो. वी.सी. मिश्रा द्वारा सन् 1967 में “राजस्थान का भूगोल” नामक पुस्तक लिखी गई, जिसमें राजस्थान को 7 भौतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है। जैसे-
- शुष्क प्रदेश
- अर्द्धशुष्क प्रदेश
- नहरी प्रदेश
- अरावली प्रदेश
- पूर्वी कृषि एवं औद्योगिक प्रदेश
- दक्षिण-पूर्वी कृषि प्रदेश
- चम्बल बीहड़ प्रदेश
- प्रो. वी.सी. मिश्रा द्वारा सन् 1967 में “राजस्थान का भूगोल” नामक पुस्तक लिखी गई, जिसमें राजस्थान को 7 भौतिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है। जैसे-
- भौगोलिक कारकों के आधार पर राजस्थान के भौतिक प्रदेशों का वर्गीकरण :-
- भौगोलिक कारकों के आधार पर राजस्थान को 4 भौतिक प्रदेशों में बांटा गया है, जिसका मुख्य आधार उच्चावच एवं जलवायु है। जैसे-
- मरुस्थल (जलवायु)
- अरावली (उच्चावच)
- पूर्वी मैदान (उच्चावच)
- हाड़ौती पठार (उच्चावच)
- भौगोलिक कारकों के आधार पर राजस्थान को 4 भौतिक प्रदेशों में बांटा गया है, जिसका मुख्य आधार उच्चावच एवं जलवायु है। जैसे-
राजस्थान के भौतिक प्रदेशों की सामान्य जानकारी
मरुस्थल | अरावली | पूर्वी मैदान | हाड़ौती पठार | |
---|---|---|---|---|
निर्माण | टैथिस सागर पर | गोंडवानालैंड पर | टैथिस सागर पर (नदियों के द्वारा जमा किये गये अवसादों से) | गोंडवानालैंड पर (बेसाल्ट लावा चट्टानों से) |
निर्माण काल | टर्शियरी काल (प्राथमिकता) व प्लीस्टोसीन काल | प्री. केम्ब्रियन काल | प्लीस्टोसीन काल | क्रिटेशियस काल |
क्षेत्रफल | 61.11% | 9% | 23% | 6.89% |
जनसंख्या | 40% | 10% | 39% | 11% |
जिले | 12 | 13 (मुख्यतः 7) | 10 | 7 |
मिट्टी | बलूई या रेतीली | पर्वतीय या वनीय | जलोढ़ या कछारी | काली या कपासी |
जलवायु | शुष्क एवं अर्द्धशुष्क | उपार्द्र | आर्द्र | अति आर्द्र |
1. मरुस्थल
- राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी मरुस्थल को ‘थार मरुस्थल’ भी कहा जाता है।
राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी मरुस्थल की सामान्य जानकारी
निर्माण | टैथिस सागर पर |
निर्माण काल | टर्शियरी काल (प्राथमिकता) व प्लीस्टोसीन काल |
क्षेत्रफल | 1,75,000 वर्ग किलोमीटर (राजस्थान के 61.11% क्षेत्रफल में फैला) |
लम्बाई | गुजरात से हरियाणा तक 640 KM |
चौड़ाई | अरावली से राजस्थान के पश्चिम तक 300 KM |
औसत ऊंचाई | 200-300 मीटर |
ढाल | उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर |
जनसंख्या | 40% |
जिले | 12 |
मिट्टी | बलूई या रेतीली |
जलवायु | शुष्क एवं अर्द्धशुष्क |
मरुस्थल का अध्ययन :-
- अध्ययन की दृष्टि से मरुस्थल को दो भागों में बांटा जाता है। जैसे-
- शुष्क मरुस्थल (राठी प्रदेश)
- अर्द्धशुष्क मरुस्थल (बांगड़ प्रदेश)
1. शुष्क मरुस्थल (राठी प्रदेश)
- 25 cm से कम वर्षा वाले भौतिक प्रदेश को ‘शुष्क मरुस्थल’ (राठी प्रदेश) कहा जाता है।
- वर्षा : 0-25 cm
- क्षेत्रफल : 1 लाख वर्ग किलोमीटर
- इस क्षेत्र में राठी नस्ल की गाय पायी जाती है, इसलिए इस क्षेत्र को ‘राठी प्रदेश’ भी कहा जाता है।
- अध्ययन की दृष्टि से शुष्क मरुस्थल (100%) को दो भागों में बांटा जाता है। जैसे-
- (अ) बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश (41.5%)
- (ब) बालुका स्तूप युक्त प्रदेश (58.5%)
(अ) बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश (41.5%) :-
- इस क्षेत्र में बालुका स्तूप नहीं पाये जाते हैं क्योंकि यहाँ पथरीला मरुस्थल पाया जाता है, जिसे ‘हमादा’ कहा जाता है।
- विस्तार :-
- जैसलमेर (सर्वाधिक) : पोकरण, रामगढ़, लोद्रवा
- जोधपुर : फलौदी
- बाड़मेर
(ब) बालुका स्तूप युक्त प्रदेश (58.5%)-
- जब पवन द्वारा मिट्टी का निक्षेपण (जमाव) किया जाता है, तो निर्मित संरचना को ‘बालुका स्तूप’ का जाता है।
- राजस्थान में-
- सर्वाधिक बालुका स्तूप जैसलमेर जिले में पाये जाते हैं।
- सभी प्रकार के बालुका स्तूप जोधपुर जिले में पाये जाते हैं।
बालुका स्तूप के प्रकार (राजस्थान के प्रमुख बालुका स्तूप) :-
- 1. बरखान बालुका स्तूप :-
- जब पवन द्वारा मिट्टी का निक्षेपण अर्द्धचन्द्राकार आकृति में किया जाता है, तो निर्मित स्थलाकृति को ‘बरखान बालुका स्तूप’ कहा जाता है।
- चौड़ाई : 100 से 200 मीटर (इसकी दोनों भुजाओं के मध्य)
- ऊँचाई : 10 से 20 मीटर
- विस्तार : सर्वाधिक शेखावाटी (सर्वाधिक चूरू के भालेरी गाँव में) एवं बीकानेर
- ये सर्वाधिक गतिशील होते हैं, इस कारण मरुस्थलीकरण में इनका सर्वाधिक योगदान होता है।
- 2. अनुप्रस्थ बालुका स्तूप :-
- जब पवन द्वारा मिट्टी का निक्षेपण पवन की दिशा के समकोण पर किया जाता है, तो निर्मित स्थलाकृति तो ‘अनुप्रस्थ बालुका स्तूप’ कहा जाता है।
- विस्तार : सामान्यतः जोधपुर, बीकानेर (सर्वाधिक) एवं बाड़मेर
- 3. अनुदैर्ध्य (रेखीय) बालुका स्तूप :-
- जब पवन द्वारा मिट्टी का निक्षेपण पवन की दिशा के समानांतर किया जाता है, तो निर्मित स्थलाकृति को ‘अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप’ कहा जाता है।
- ये सामान्यतः नदियों (नदी बेसिनों) के पास अधिक पाये जाते हैं। जैसे- लूनी बेसिन, जवाई बेसिन व घग्गर बेसिन
- विस्तार सर्वाधिक (क्रमशः)-
- जैसलमेर (पहला स्थान)- सर्वाधिक
- बीकानेर (दूसरा स्थान)
- 4. पैराबोलिक (परवलयिक) बालुका स्तूप :-
- बरखान के विपरीत या महिलाओं की हैयर पिन (क्लिप) जैसे बालूका स्तूप ‘पैराबोलिक बालुका स्तूप’ कहलाते हैं।
- विस्तार : सामान्यतः जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर एवं जोधपुर
- ये राजस्थान में सर्वाधिक पाये जाते हैं, क्योंकि ये सभी मरुस्थलीय जिलों में पाये जाते हैं।
- 5. सीफ बालुका स्तूप :-
- बरखान के निर्माण के दौरान जब पवन की दिशा में परिवर्तन होता है तो बरखान की एक भुजा आगे की ओर बढ़ जाती है जिससे निर्मित स्थलाकृति को ‘सीफ बालुका स्तूप’ कहा जाता है। अर्थात् एक भुजा वाले बरखान बालुका स्तूप को ‘सीफ बालुका स्तूप’ कहा जाता है।
- विस्तार : सामान्यतः बीकानेर, जैसलमेर एवं शेखावाटी
- 6. तारानुमा बालुका स्तूप :-
- अनियमित (अनिश्चित) हवाओं से निर्मित बालुका स्तूप जिसमें तीन या तीन से अधिक भुजाएं होती है, उन्हें ‘तारानुमा बालुका स्तूप’ कहा जाता है।
- विस्तार सर्वाधिक (क्रमशः)-
- जैसलमेर
- सूरतगढ़ (श्री गंगानगर)
- बीकानेर
- 7. स्रब कापीस बालुका स्तूप (नेबखा):-
- मरुस्थल में झाड़ियों के पास बनने वाले छोटे बालुका स्तूप को ‘स्रब कापीस बालुका स्तूप’ कहा जाता है।
- विस्तार : सर्वाधिक जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर
- 8. नेटवर्क बालुका स्तूप :-
- एक दूसरे से (आपस में) जुड़े हुए बालुका स्तूपों को ‘नेटवर्क बालुका स्तूप’ कहा जाता है।
- विस्तार : सर्वाधिक जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर एवं बाड़मेर
- समकोण पर बनने वाले बालुका स्तूप के उदाहरण :-
- अनुप्रस्थ बालुका स्तूप
- बरखान बालुका स्तूप
- पैराबोलिक बालुका स्तूप
- समानांतर बालुका स्तूप के उदाहरण :-
- अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप
- सीफ बालुका स्तूप
2. अर्द्धशुष्क मरुस्थल (बांगड़ प्रदेश)
- वह भौतिक प्रदेश जो शुष्क मरुस्थल (25 cm) एवं अरावली प्रदेश (50 cm) के मध्य स्थित हो, उसे ‘अर्द्धशुष्क मरुस्थल’ (बांगड़ प्रदेश) कहा जाता है।
- वर्षा : 25-50 cm
- क्षेत्रफल : 75,000 वर्ग किलोमीटर
- अध्ययन की दृष्टि से अर्द्धशुष्क मरुस्थल को 4 भागों में बांटा जाता है। जैसे-
- 1. लूनी बेसिन (गोडवाड़ बेसिन) :-
- विस्तार: पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर एवं सिरोही
- विशेषताएं :-
- लवणीय पादप : लूनी बेसिन में लवणीय पादप सर्वाधिक बालोतरा (बाड़मेर) में पाये जाते हैं।
- काला भूरा डूंगर (पाली) : यह लूनी बेसिन के पूर्व में स्थित पहाड़ियां है, जो लूनी बेसिन की पूर्वी सीमा बनाता है।
- नेहड़ रन : यह लूनी बेसिन में जालौर जिल में स्थित है।
- 2. नागौरी उच्च भूमि :-
- विस्तार : नागौर, डीडवाना-कुचामन, आंशिक अजमेर
- इस क्षेत्र में लवणीय (खारे पानी की) झीलें सर्वाधिक पायी जाती हैं।
- विशेषताएं :-
- कूबड़/बांका पट्टी :-
- यह नागौर व अजमेर के मध्य स्थित है।
- इसमें फ्लोराईड अधिक पाया जाता है, जिससे फ्लोरोसिस बीमारी होती है।
- कूबड़/बांका पट्टी :-
- 3. शेखावाटी अन्तःप्रवाह क्षेत्र :-
- विस्तार : चूरू, सीकर, झुंझुनूं, नीम का थाना एवं उत्तरी नागौर
- विशेषताएं :-
- बीड़ : शेखावाटी में चारागाह भूमियों को बीड़ कहा जाता है।
- तोरावाटी : कांतली नदी के अपवाह क्षेत्र को तोरावाटी कहा जाता है। जिसका विस्तार सीकर, झुंझुनूं एवं नीम का थाना में है।
- जोहड़ : शेखावाटी में पानी के कच्चे कुओं को जोहड़ कहा जाता है।
- सर : शेखावाटी में मानसून के दौरान बनने वाले तालाब को सर कहा जाता है।
- 4. घग्गर बेसिन :-
- विस्तार : मुख्यतः श्री गंगानगर, हनुमानगढ़ एवं अनुपगढ़
- विशेषताएं :-
- काठी/बग्गी : घग्गर बेसिन में पायी जाने वाली चिकनी एवं उपजाऊ मिट्टी को काठी/बग्गी कहा जाता है।
- नाली/पाट : हनुमानगढ़ जिले में घग्गर के अपवाह क्षेत्र में नाली/पाट कहा जाता है।
- प्रमुख उत्पादित फसलें : गेहूँ, चावल, कपास, गन्ना
मरुस्थल से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु :-
- प्लाया झील : मरुस्थल में अस्थाई पानी की झीलों को ‘प्लाया झील’ कहा जाता है। जो जैसलमेर के उत्तरी भाग में सर्वाधिक पायी जाती हैं।
- खड़ीन झील : पश्चिमी राजस्थान (जैसलमेर) में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा निर्मित झीलों को ‘खड़ीन झील’ कहा जाता है। जो जैसलमेर के उत्तरी भाग में सर्वाधिक पायी जाती है।
- रन/टाट/ढ़ाढ़ : मरुस्थल में लवणीय, दलदली एवं अनुपजाऊ भूमि/झीलों को रन/टाट/ढ़ाढ़ कहा जाता है। जिसका सर्वाधिक विस्तार जैसलमेर व बाड़मेर में है।
- भारत में सर्वाधिक रन वाले जिले (क्रमशः) :-
- कच्छ (कच्छ का रन भारत का सबसे बड़ा रन है।)
- लेह
- जैसलमेर
- राजस्थान के प्रमुख रन :-
- तालछापर (चूरू)
- पड़िहारा/परिहारा (चूरू)
- फलौदी (फलौदी)- पहले जोधपुर में
- बाप (फलौदी)- पहले जोधपुर में
- भाकरी (जैसलमेर)
- पोकरण (जैसलमेर)
- थोब (बाड़मेर)
- नेहड़ रन (जालौर)
- भारत में सर्वाधिक रन वाले जिले (क्रमशः) :-
- जल पट्टी (लाठी सीरीज) : सरस्वती नदी के भूगर्भिक जलीय अवशेष को ‘जल पट्टी’ कहा जाता है।
- स्थित : जैसलमेर के पोकरण से मोहनगढ़ के मध्य
- कुल लम्बाई : 60 km
- इस क्षेत्र में सेवण/लीलोण घास अधिक पायी जाती है, जिसे गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) की शरण स्थली कहा जाता है।
- इस क्षेत्र में चांदन गाँव में नलकूप अधिक पाये जाते हैं, जिन्हें थार का घड़ा कहा जाता है।
- नोट : राजस्थान की दूसरी जल पट्टी बायतू (बाड़मेर) से सांचौर (जालौर) के मध्य स्थित है।
- आकल वुड फॉसिल पार्क :-
- स्थित : राष्ट्रीय मरु उद्यान, आकल (जैसलमेर)
- समय : आकल वुड फॉसिल पार्क में जुरासिक काल के लकड़ी के जीवाश्म स्थित है, जो 18 करोड़ी (180 मिलयन) वर्ष पूर्व के है।
- यह लकड़ी के जीवाश्म भारत एवं राजस्थान में लकड़ी के प्राचीनतम जीवाश्म है।
- बाप बोल्डर क्ले :-
- स्थित : फलौदी (पहले जोधपुर)
- हिमानी (ग्लेशियार) द्वारा निर्मित/जमा किये गये बड़े कंकर पत्थरों एवं बारीक अवसादों को ‘बाप बोल्डर क्ले’ कहा जाता है।
- निर्माण काल : पर्मो कार्बोनीफेरस काल
- बालसन : मरुस्थल में पहाड़ियों से घिरे जल बेसिन को ‘बालसन’ कहा जाता है। जैसे- सांभर झील
- धोरे : लहरदार बालुका स्तूपों को ‘धोरे’ कहा जाता है, जो सर्वाधिक जैसलमेर में पाए जाते हैं।
- धरियन : स्थानांतरित बालुका स्तूपों को ‘धरियन’ कहा जाता है, जो सर्वाधिक जैसलमेर में पाए जाते हैं।
- नखलिस्तान (मरू उद्यान) : मरुस्थल में जहाँ जल बेसिन (जल) उपलब्ध होता है वहाँ हरियाली विकसित हो जाती है, जिसे ‘नखलिस्तान’ कहा जाता है। जैसे-
- कोलायत झील (बीकानेर)
- गजनेर झील (बीकानेर)
- गडीसर/गड़ीसर झील (जैसलमेर)
- पीवणा :-
- यह सांप की एक प्रजाति है, जिसका रंग पीला होता है।
- यह सर्वाधिक विषैला होता है।
- यह सर्वाधिक जैसलमेर में पाया जाता है।
- मरुस्थल का मार्च :-
- मरुस्थल का स्थानांतरण/आगे बढ़ना/मरुस्थलीकरण को ही ‘मरुस्थल का मार्च’ कहा जाता है, जिसमें सर्वाधिक योगदान बरखान बालुका स्तूप का होता है।
- राजस्थान में मरुस्थलीकरण (मरुस्थल का मार्च) की दिशा ‘दक्षिण-पश्चिम’ से ‘उत्तर-पूर्व’ (हरियाणा) की ओर है।
- थार मरुस्थल :-
- थार मरुस्थल का कुल क्षेत्रफल 2,38,254 वर्ग किलोमीटर है।
- विश्व में थार मरुस्थल (100%) का विस्तार भारत (85%) तथा पाकिस्तान (15%) में है।
- भारत में थार मरुस्थल (100%) का विस्तार (क्रमशः)-
- राजस्थान :-
- राजस्थान के कुल क्षेत्र (4 भौतिक प्रदेशों) में 61.11% (लगभग 62%) हिस्सा थार मरुस्थल का है।
- राजस्थान में थार मरुस्थल का कुल क्षेत्रफल 1,75,000 वर्ग किलोमीटर है।
- गुजरात
- हरियाणा
- पंजाब
- राजस्थान :-
- भारत के कुल थार मरुस्थल का 62% हिस्सा राजस्थान में है।
- भारत के कुल थार मरुस्थल का 38% हिस्सा गुजरात, हरियाणा, पंजाब में है।
राजस्थान में मरुस्थल का महत्व :-
- जैव विविधता : विश्व के अन्य मरुस्थलों की तुलना में थार मरुस्थल में जैव विविधता अधिक पायी जाती है।
- नवीकरणीय ऊर्जा : राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग में नवीकरणीय ऊर्जा (मुख्यतः सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा) की संभावना अधिक है, क्योंकि यहाँ सौर विकिरणों की तीव्रता अधिक है।
- ऊर्जा खनिज :-
- राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग (मरुस्थलीय क्षेत्र) में जीवाश्म/ऊर्जा खनिज अधिक पाए जाते हैं। जैसे- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।
- राजस्थान में कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस का सर्वाधिक उत्पादन बाड़मेर में होता है।
- नमक उत्पादन : राजस्थान के पश्चिमी भाग (नागौर) में खारे पानी की झील अधिक पायी जाती है, इस कारण यहाँ नमक का अधिक उत्पादन होता है। जैसे-
- सांभर झील (जयपुर)
- पंचभद्रा झील (बाड़मेर) : सर्वाधिक गुणवत्ता वाला नमक
- डीडवाना झील (नागौर)
- डेगाना झील (नागौर)
- लूणकरणसर झील (बीकानेर)
- रेवासा झील (सीकर)
- भारत में नमक उत्पादन में-
- पहला : गुजरात
- दूसरा : तमिलनाडु
- तीसरा : राजस्थान
- पर्यटन : पश्चिमी राजस्थान की विशिष्ट संस्कृति पर्यटन को राजस्थान में आकर्षित करती है। जैसे-
- ऊँट महोत्सव (बीकानेर)
- मरु महोत्सव (जैसलमेर)
- थार महोत्सव (बाड़मेर)
- मारवाड़ महोत्सव (जोधपुर)
- परमाणु परीक्षण :-
- थार मरुस्थल को परमाणु परीक्षण स्थली कहा जाता है, क्योंकि इसमें भारत का परमाणु परीक्षण स्थल पोकरण (जैसलमेर) स्थित है।
- भारत में परमाणु परीक्षण :-
- पहला (1974) : पोकरण (तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी)
- दूसरा (1998) : पोकरण (तात्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी)
- सैन्य प्रशिक्षण : राजस्थान के थार मरुस्थल में दो सैन्य प्रशिक्षण केंद्र भी स्थित है। जैसे-
- चांदन फील्ड फायरिंग रैंज (जैसलमेर)
- महाजन फील्ड फायरिंग रैंज (बीकानेर)
- पशु सम्पदा (पशुधन) : राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग में पशु सम्पदा (पशुधन) अधिक पायी जाती है।
- राजस्थान में सर्वाधिक पशु सम्पदा वाले जिले : बाड़मेर, जोधपुर
- मानसून : उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान की भौगोलिक दशायें मानसून को आकर्षित करती है।
- खाद्यान्न उत्पादन : राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग में मोटा अनाज अधिक उत्पादित होता है। जैसे- बाजरा
2. अरावली
- निर्माणकाल के आधार पर यह एक प्राचीनतम पर्वतमाला है।
- निर्माण प्रक्रिया के आधार पर यह एक वलित पर्वतमाला है।
- वर्तमान स्थिति के आधार पर यह एक अवशिष्ट पर्वतमाला है।
- अरब सागर को अरावली का पिता कहा जाता है, क्योंकि अरावली की उत्पत्ति अरब सागर से होती है।
अरावली पर्वतमाला की सामान्य जानकारी
निर्माण | गोंडवानालैंड पर |
निर्माण काल | प्री. केम्ब्रियन काल |
क्षेत्रफल | 9% |
जनसंख्या | 10% |
जिले | 13 (मुख्यतः 7) |
मिट्टी | पर्वतीय या वनीय |
जलवायु | उपार्द्र |
भारत की सर्वोच्च चोटियां :-
- वर्तमान में-
- भारत की सर्वोच्च चोटी कंचनजंघा (सिक्किम) है। जिसकी कुल ऊँचाई 8,586 मीटर है।
- उत्तर भारत की सर्वोच्च चोटी कंचनजंघा है।
- दक्षिण भारत की सर्वोच्च चोटी अनाईमुडी/अनामुडी (केरल) है। जिसकी कुल ऊँचाई 2,695 मीटर है।
- मध्य भारत की सर्वोच्च चोटी गुरु शिखर (सिरोही) है। जिसकी कुल ऊँचाई 1722 मीटर है।
अरावली का विस्तार :-
- औसत ऊँचाई-
- निर्माण के समय : 2700 मीटर
- वर्तमान : 930 मीटर
- सर्वोच्च चोटी : गुरु शिखर (आबू, सिरोही)
- दिशा :-
- दिशा : दक्षिण-पश्चिम (नेऋत्य) से उत्तर-पूर्व (ईशान) की ओर
- घटती हुई चौड़ाई की दिशा : दक्षिण-पश्चिम (नेऋत्य) से उत्तर-पूर्व (ईशान) की ओर
- बढ़ती हुई चौड़ाई की दिशा : उत्तर-पूर्व (ईशान) से दक्षिण-पश्चिम (नेऋत्य) की ओर
- भारत में अरावली का विस्तार :-
- विस्तार : खेडब्रह्मा (गुजरात) से रायसीना पहाड़ियां (दिल्ली) तक
- शुरुआत : खेडब्रह्मा (गुजरात), गुजरात में अरावली की शुरुआत पालनपुर/गिरनार पहाड़ियों से भी मानी जाती है। (प्राथमिकता खेडब्रह्मा)
- अंतिम स्थान : रायसीना पहाड़ियां (दिल्ली)
- लम्बाई : 692 km
- चौड़ाई : सर्वाधिक गुजरात व न्यूनतम दिल्ली
- इसका लगभग 80% भाग राजस्थान में स्थित है।
- राजस्थान में अरावली का विस्तार :-
- विस्तार : आबू (सिरोही) से खेतड़ी (नीम का थाना) तक
- शुरुआत : आबू (सिरोही)
- अंतिम स्थान : खेतड़ी (नीम का थाना)
- लम्बाई : 550 km
- चौड़ाई : सर्वाधिक सिरोही व न्यूनतम नीम का थाना
- सर्वाधिक ऊँचाई सिरोही एवं न्यूनतम अजमेर में है।
- सर्वाधिक विस्तार उदयपुर व न्यूनतम अजमेर में है।
अरावली का अध्ययन :-
- अध्ययन की दृष्टि से राजस्थान में अरावली पर्वतमाला को तीन भागों में बांटा गया है। जैसे-
- 1. उत्तरी अरावली :-
- स्थित : खेतड़ी (नीम का थाना) से जयपुर के मध्य
- इसकी सर्वोच्च चोटी ‘रघुनाथगढ़’ (सीकर) है। जिसकी कुल ऊँचाई 1055 मीटर है।
- 2. मध्य अरावली :-
- स्थित : जयपुर से राजसमंद के मध्य
- इसे अजमेर/मेरवाड़ा अरावली भी कहा जाता है, क्योंकि इसका मुख्यतः विस्तार अजमेर जिले में है।
- जिले : मुख्यतः अजमेर, ब्यावर, केकड़ी, आंशिक टोंक
- इसकी सर्वोच्च चोटियां क्रमशः-
- टॉडगढ़ चोटी (ब्यावर) : 934 मीटर
- तारागढ़ चोटी (अजमेर) : 873 मीटर
- नाग चोटी (अजमेर) : 795 मीटर
- 3. दक्षिणी अरावली :-
- स्थित : राजसमंद से सिरोही के मध्य
- इसकी सर्वोच्च चोटी ‘गुरु शिखर’ (आबू, सिरोही) है। जिसकी कुल ऊँचाई 1722 मीटर है।
- अध्ययन की दृष्टि से दक्षिणी अरावली को पुनः दो भागों में बांटा जाता है। जैसे-
- (अ) आबू अरावली :-
- विस्तार : सिरोही (सर्वाधिक), पाली
- इसकी सर्वोच्च चोटी ‘गुरु शिखर’ (आबू, सिरोही) है। जिसकी कुल ऊँचाई 1722 मीटर है।
- (ब) मेवाड़ी अरावली :-
- विस्तार : उदयपुर (सर्वाधिक), राजसमंद
- इसकी सर्वोच्च चोटी ‘जरगा’ (उदयपुर) है। जिसकी कुल ऊँचाई 1431 मीटर है।
राजस्थान के प्रमुख पठार (अरावली के प्रमुख पठार) :-
- राजस्थान में सर्वाधिक पठार अरावली में स्थित है।
- अरावली में सर्वाधिक पठार दक्षिण अरावली में स्थित है।
राजस्थान के प्रमुख पठार (अरावली के प्रमुख पठार)
क्र. सं. | पठार | स्थित | ऊँचाई (मीटर) | विशेषता |
---|---|---|---|---|
1 | उड़िया पठार | सिरोही (दक्षिणी अरावली) | 1360 | 𑇐 यह राजस्थान एवं सिरोही का सबसे ऊंचा पठार है। |
2 | आबू पर्वत | सिरोही (दक्षिणी अरावली) | 1200 | 𑇐 यह सिरोही का दूसरा एवं राजस्थान का तीसरा सबसे ऊंचा पठार है। 𑇐 यह गुम्बदाकार संरचना ‘बैथोलिथ’ (Dome Shape) का उदाहरण है। 𑇐 यह पर्वत नहीं, ब्लकि एक पठार है। |
3 | भोराट का पठार | राजसमंद की कुम्भलगढ़ पहाड़ियों एवं उदयपुर की गोगुंदा पहाड़ियों के मध्य (दक्षिणी अरावली) | 1225 | 𑇐 मेवाड़ अरावली की सर्वोच्च चोटी जरगा इसी पर स्थित है। 𑇐 यह राजस्थान का दूसरा सबसे ऊंचा पठार है। |
4 | भोमट का पठार | मुख्यतः डूंगरपुर एवं उदयपुर (दक्षिणी अरावली) | 𑇐 यह एक पहाड़ी व पठारी क्षेत्र है। इस पर भील जनजाति अधिक रहती है। | |
5 | लसाड़िया का पठार | सलूम्बर (प्राथमिकता) एवं प्रतापगढ़ (पहले उदयपुर) (दक्षिणी अरावली) | 𑇐 यह जयसमंद झील (सलूम्बर) के पूर्व में स्थित उत्खात (उबड़खाबड़) पठार है। | |
6 | क्रांसका पठार | सरिस्का, अलवर (उत्तरी अरावली) | ||
7 | कांकणवाड़ी पठार | सरिस्का, अलवर (उत्तरी अरावली) | ||
8 | मेसा पठार | चित्तौड़गढ़ (हाड़ौती) | 𑇐 यह अरावली का भाग नहीं है। 𑇐 इसका संबंध चित्तौड़गढ़ दुर्ग से है। | |
9 | मानदेसरा पठार | चित्तौड़गढ़ (हाड़ौती) | 𑇐 यह अरावली का भाग नहीं है। 𑇐 इसका संबंध भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य से है। |
राजस्थान के प्रमुख दर्रे (अरावली के प्रमुख दर्रे) :-
- पर्वतों के मध्य नीचा एवं तंग (संकरा) रास्ता दर्रा (नाल) कहलाता है।
- दर्रा पर्वतों के दो ओर के स्थानों को जोड़ता है।
- राजस्थान में सर्वाधिक दर्रे दक्षिणी अरावली में स्थित है।
- अरावली में सर्वाधिक दर्रे राजसमंद जिले में स्थित है।
- जिले के अनुसार राजस्थान में सर्वाधिक दर्रे राजसमंद जिले में स्थित है।
राजस्थान के प्रमुख दर्रे (अरावली के प्रमुख दर्रे)
क्र. सं. | दर्रे या नाल | स्थित | विशेषता |
---|---|---|---|
1 | ढेबर नाल | सलूम्बर (पहले उदयपुर) (दक्षिणी अरावली) | 𑇐 यह गोमती नदी हेतु प्रसिद्ध है। 𑇐 जयसमंद झील (सलूम्बर) इसी नाल में गोमती नदी पर स्थित है इसीलिए जयसमंद झील को ढेबर झील भी कहा जाता है। |
2 | फूलवारी नाल | कोटड़ा तहसील, उदयपुर (दक्षिणी अरावली) | 𑇐 सोम, मानसी और वाकल नदियां इस नाल से बहती हैं। |
3 | हाथी गुड़ा नाल | राजसमंद (दक्षिणी अरावली) | 𑇐 यह राजसमंद, उदयपुर (गोगुंदी) एवं सिरोही को जोड़ती है। |
4 | पगल्या नाल | राजसमंद (दक्षिणी अरावली) | 𑇐 यह मेवाड़ (राजसमंद) व मारवाड़ (पाली) को जोड़ती है। |
5 | देसूरी नाल | पाली (दक्षिणी अरावली) | 𑇐 यह पाली एवं चारभुजा नाथ मंदिर (राजसमंद) को जोड़ती है। |
6 | बर नाल | ब्यावर (पहले पाली) (मध्य अरावली) | 𑇐 यह मारवाड़ (जोधपुर व पाली) को मेरवाड़ा (ब्यावर, अजमेर) से जोड़ती है। |
7 | केवड़ा नाल | उदयपुर (दक्षिणी अरावली) | |
8 | हाथी नाल | उदयपुर (दक्षिणी अरावली) | |
9 | कमली/खामली घाट | राजसमंद (दक्षिणी अरावली) | |
10 | गोरम घाट | राजसमंद (दक्षिणी अरावली) | |
11 | परवारिया नाल | ब्यावर (मध्य अरावली) | |
12 | सुरा नाल | ब्यावर (मध्य अरावली) | |
13 | सोमेश्वर नाल | राजसमंद |
अरावली की प्रमुख चट्टानें :-
- राजस्थान एवं अरावली की भू-आकृतिक संरचना का अध्ययन ए.एम. हैरोन द्वारा किया गया है।
- ए.एम. हैरोन के अनुसार अरावली का निर्माण देहली महासमूह की चट्टानों से हुआ है।
- देहली महासमूह की प्रमुख चट्टानें :-
- अजबगढ़ समूह : दिल्ली से अलवर तक उत्तरी अरावली
- अलवर समूह : अलवर से अजमेर तक मध्य अरावली
- रायलो समूह : अजमेर से गुजरात तक दक्षिणी अरावली
राजस्थान/अरावली की सर्वोच्च चोटियां (अवरोही क्रम)
क्र. सं. | सर्वोच्च चोटी | स्थित | ऊँचाई (मीटर) | विशेषता |
---|---|---|---|---|
1 | गुरु शिखर | सिरोही (आबू अरावली) | 1722 | 𑇐 यह आबू अरावली/अरावली/राजस्थान की सर्वोच्च चोटी है। 𑇐 कर्नल जेम्स टॉड ने इसे संतों का शिखर कहा है। |
2 | सेर | सिरोही (आबू अरावली) | 1597 | 𑇐 यह अरावली/राजस्थान की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। |
3 | देलवाड़ा | सिरोही (आबू अरावली) | 1442 | 𑇐 यह अरावली/राजस्थान की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है। |
4 | जरगा | उदयपुर (मेवाड़ अरावली) | 1431 | 𑇐 यह अरावली/राजस्थान की चौथी सबसे ऊंची चोटी है। 𑇐 यह मेवाड़ अरावली की सर्वोच्च चोटी है। |
5 | अचलगढ़ | सिरोही (आबू अरावली) | 1380 | 𑇐 यह अरावली/राजस्थान की पांचवीं सबसे ऊंची चोटी है। |
6 | कुंभलगढ़ | राजसमंद | 1224 | |
7 | रघुनाथगढ़ | सीकर | 1055 | 𑇐 यह उत्तरी अरावली की सर्वोच्च चोटी है। |
8 | ऋषिकेश | सिरोही | 1017 | |
9 | कमलनाथ | उदयपुर | 1001 | |
10 | सज्जनगढ़ | उदयपुर | 938 | |
11 | टॉडगढ़ (मोरमजी/गोरमजी) | ब्यावर | 934 | 𑇐 यह मध्य अरावली की सर्वोच्च चोटी है। |
12 | खो/खोह | जयपुर ग्रामीण (पहले जयपुर) | 920 | |
13 | सायरा | उदयपुर | 900 | |
14 | तारागढ़ | अजमेर | 873 | 𑇐 यह मध्य अरावली की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। |
15 | बिलाली | कोटपुतली-बहरोड़ (पहले अलवर) | 775 | |
16 | रोजा भाकर | जालौर | 730 |
पीडमांट (Peidmont) :-
- Peid = पाद (Foot)
- Mont = पर्वत (Mountain)
- पर्वत पदीय क्षेत्रों को पीडमांट कहते हैं। अर्थात् पर्वतों के तलहटी वाले (आधार) क्षेत्र को पीडमांट कहा जाता है। जैसे- देवगढ़ (राजसमंद)
राजस्थान एवं अरावली की प्रमुख पहाड़ियां या पर्वत
क्र. सं. | पहाड़ी या पर्वत | स्थित | विशेषता |
---|---|---|---|
1 | त्रिकूट पहाड़ी | जैसलमेर | 𑇐 इस पर सोनार दुर्ग स्थित है। |
2 | त्रिकूट पर्वत | करौली | 𑇐 इस पर कैलादेवी मंदिर स्थित है। |
3 | चिड़िया टूक पहाड़ी | जोधपुर | 𑇐 इस पर मेहरानगढ़ दुर्ग स्थित है। |
4 | छप्पन पहाड़ी/सिवाणा पहाड़ियां/गोलाकार पहाड़ियां (56 पहाड़ियों का समूह) | सिवाणा (बालोतरा) + आंशिक बाड़मेर (बालोतरा प्राथमिकता) | 𑇐 इन पहाड़ियों में नाकोड़ पर्वत भी स्थित है, जिसे राजस्थान का मेवा नगर कहा जाता है। 𑇐 इन पहाड़ियों में पिपलूद पहाड़ी भी स्थित है, जिसे राजस्थान का लघु माउंट आबू कहा जाता है। |
5 | रोजा भाकर | जालौर | |
6 | इसराना भाकर | जालौर | |
7 | झारोला भाकर | जालौर | |
8 | सुंधा पर्वत | जालौर | 𑇐 यह सुंधा माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। 𑇐 2006 में इस पर्वत पर राजस्थान के पहले रज्जु मार्ग (रोप वे) की शुरुआत की गई थी। 𑇐 इस पर्वत को भालू संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। |
9 | जसवंतपुरा पहाड़ी | जालौर | 𑇐 इस पहाड़ी की सर्वोच्च चोटी डोरा पर्वत है, जिसकी उँचाई 869 मीटर है। |
10 | भाकर | सिरोही | 𑇐 दक्षिणी अरावली (सिरोही) में छोटी, तीव्र ढ़ाल एवं उत्खात पहाड़ियों को भाकर कहा जाता है। 𑇐 भाकर पहाड़ी मुख्यतः सिरोही जिले में पायी जाती है। |
11 | बेल का मगरा | सिरोही | 𑇐 इस पहाड़ी में वॉलेस्टोनाइट खनिज के भंडार पाए जाते हैं। |
12 | रेल का मगरा | राजसमंद | |
13 | मोती मगरी | फतेहसागर झील के पास (उदयपुर) | |
14 | माछला मगरा | पिछोला झील/ दूध तलाई के पास (उदयपुर) | 𑇐 इस पहाड़ी पर मंसापूर्ण करणी माता मंदिर स्थित है। 2008 में इस पहाड़ी पर 𑇐 राजस्थान का दूसरा रज्जु मार्ग (रोप वे) स्थापित किया गया। |
15 | हिरण मगरी | उदयपुर | |
16 | जरगा पहाड़ी | उदयपुर | |
17 | रागा पहाड़ी | उदयपुर | 𑇐 उदयपुर में जरगा व रागा पहाड़ियों के मध्य स्थित हरियाली वाले क्षेत्र को देशहरो कहा जाता है, जो दक्षिणी अरावली (उदयपुर) में स्थित है। |
18 | गोगुंदा पहाड़ी | उदयपुर | 𑇐 इस पहाड़ी से बेड़च/आयड़ नदी का उद्गम होता है। |
19 | बीछामेड़ा पहाड़ी | उदयपुर | 𑇐 इस पहाड़ी से सोम नदी का उद्गम होता है। |
20 | बिजराल पहाड़ी | राजसमंद | 𑇐 इस पहाड़ी से खारी नदी का उद्गम होता है। |
21 | दिवेर पहाड़ी | राजसमंद | 𑇐 इस पहाड़ी से कोठारी नदी का उद्गम होता है। |
22 | खमनौर पहाड़ी | राजसमंद | 𑇐 इस पहाड़ी से बनास नदी का उद्गम होता है। 𑇐 कोठारी व खारी, बनास की सहायक नदियां हैं। |
23 | टॉडगढ़ पहाड़ी | ब्यावर (पहले अजमेर-मेरवाड़ा) | 𑇐 राजस्थान में मध्य अरावली की सर्वोच्च चोटी टॉडगढ़ (934 मीटर) है। |
24 | तारागढ़ पहाड़ी | अजमेर (मेरवाड़ा) | 𑇐 तारागढ़ चोटी की कुल ऊँचाई 873 मीटर है। |
25 | नाग पहाड़ी | अजमेर (मेरवाड़ा) | 𑇐 इस पहाड़ी से लूनी नदी का उद्गम होता है। 𑇐 ये पहाड़ियां सर्पीलाकार आकृति की है। 𑇐 नाग चोटी की कुल ऊँचाई 795 मीटर है। |
26 | मोती डूंगरी | जयपुर शहर (पहले जयपुर) | 𑇐 यह गणेश मंदिर हेतु प्रसिद्ध है। (मोती डूंगरी गणेश मंदिर) |
27 | झालाना डूंगरी | जयपुर शहर (पहले जयपुर) | 𑇐 यह लैपर्ड प्रोजेक्ट हेतु प्रसिद्ध है। |
28 | चील पहाड़ी/ईगल हिल्स/जयगढ़ पहाड़ी | जयपुर शहर (पहले जयपुर) | 𑇐 इस पहाड़ी पर जयगढ़ दुर्ग स्थित है। |
29 | महादेव डूंगरी | बैराठ (कोटपुतली-बहरोड़) बैराठ पहले जयपुर में था बैराठ को वर्तमान में विराटनगर के नाम से जाना जाता है। | 𑇐 बैराठ सभ्यता के कारण इस पहाड़ी का नाम महादेव डूंगरी रखा गया था। |
30 | गणेश डूंगरी | बैराठ (कोटपुतली-बहरोड़) | 𑇐 बैराठ सभ्यता के कारण इस पहाड़ी का नाम गणेश डूंगरी रखा गया था। |
31 | भीम डूंगरी | बैराठ (कोटपुतली-बहरोड़) | 𑇐 बैराठ सभ्यता के कारण इस पहाड़ी का नाम भीम डूंगरी रखा गया था। |
32 | बीजक डूंगरी | बैराठ (कोटपुतली-बहरोड़) | 𑇐 बैराठ सभ्यता के कारण इस पहाड़ी का नाम बीजक डूंगरी रखा गया था। |
33 | सेवर पहाड़ी | जयपुर ग्रामीण (पहले जयपुर) | 𑇐 इस पहाड़ी से साबी/साहिबी नदी का उद्गम होता है। 𑇐 साबी/साहिबी नदी को हरियाणा में नजफगढ़ का नाला कहा जाता है। |
34 | मनोहरपुर पहाड़ी | जयपुर ग्रामीण (पहले जयपुर) | 𑇐 इस पहाड़ी से मेंथा/मेंढ़ा नदी का उद्गम होता है। |
35 | बैराठ पहाड़ी | कोटपुतली-बहरोड़ (पहले जयपुर) | 𑇐 इस पहाड़ी बाणगंगा नदी का उद्गम होता है। |
36 | बरवाड़ा पहाड़ी | जयपुर ग्रामीण (पहले जयपुर) | |
37 | चौथ का बरवाड़ा | सवाई माधोपुर | 𑇐 यह चौथ माता मंदिर हेतु प्रसिद्ध है। 𑇐 इस पहाड़ी पर सीसा जस्ता के भण्डार स्थित है। 𑇐 भारत में सीसा जस्ता के सर्वाधिक (99.96%) भण्डार स्थित राजस्थान में है। 𑇐 भारत में सीसा जस्ता भण्डार में दूसरे स्थान (0.04%) पर कर्नाटक राज्य है। |
38 | बाबाई पहाड़ी | जयपुर ग्रामीण (पहले जयपुर) | |
39 | बबाई पहाड़ी | नीम का थाना (पहले झुंझुनूं) | |
40 | मालखेत पहाड़ी | सीकर | |
41 | खंडेला पहाड़ी | सीकर | 𑇐 इस पहाड़ी से कांतली नदी का उद्गम होता है। 𑇐 इस पहाड़ी का रोहिला क्षेत्र यूरेनियम के भण्डार हेतु प्रसिद्ध है। 𑇐 भारत में यूरेनियम की सबसे बड़ी खान जादूगोड़ा खान (सिंहभूम जिला, झारखंड) है। 𑇐 भारत में यूरेनियम की दूसरी सबसे बड़ी खान तुमल्लापल्ली खान (आंध्रप्रदेश) है। 𑇐 भारत में यूरेनियम की तीसरी सबसे बड़ी खान रोहिला क्षेत्र की खान (खंडेला पहाड़ी, सीकर) है। |
42 | हर्ष पहाड़ी | सीकर | 𑇐 इस पहाड़ी पर हर्षनाथ मंदिर, जीणमाता मंदिर स्थित है। |
43 | काजल पहाड़ी | सीकर | 𑇐 यह पहाड़ी हर्ष पहाड़ी का ही भाग है। 𑇐 इस पहाड़ी पर रज्जु मार्ग (रोप-वे) बनाया गया है। |
44 | हर्षनाथ पहाड़ी | अलवर | |
45 | उदयनाथ पहाड़ी | अलवर | 𑇐 इस पहाड़ी से रूपारेल नदी का उद्गम होता है। |
46 | भैरांच पहाड़ी | अलवर | |
47 | भानगढ़ पहाड़ी | अलवर | |
48 | सिरावास पहाड़ी | अलवर | |
49 | सिराबास पहाड़ी | अलवर | |
50 | बिजासण पहाड़ी | भीलवाड़ा | 𑇐 इस पहाड़ी से रूपारेल नदी का उद्गम होता है। (बिजासण माता मंदिर बूंदी के इंद्रगढ़ स्थान पर स्थित है।) |
51 | आडावाला/आरावाल पर्वत | बूंदी |
जालौर : जालौर, बाड़मेर व सिरोही (आबू) की पहाड़ियों में मुख्यतः ग्रेनाइट चट्टानें पायी जाती है। इनमें सर्वाधिक ग्रेनाइट चट्टानें जालौर जिले में पायी जाती है इसलिए जालौर को 'राजस्थान की ग्रेनाइट सिटी' कहा जाता है।
गिरवा : तस्तरीनुमा पहाड़ियों (पर्वतों की श्रृंखला) को गिरवा कहा जाता है।
राजस्थान के रज्जु मार्ग (रोप-वे) : वर्तमान में 7
क्र. सं. | रज्जु मार्ग (रोप वे) | स्थित | शुरू | लम्बाई (मीटर) |
---|---|---|---|---|
1 | सुंधा माता मंदिर | सुंधा पर्वत (जालौर) | 20 दिसंबर, 2006 | 800 |
2 | मंशापूर्णा करणी माता | माछला मगरा (उदयपुर) | 8 जून, 2008 | 387 |
3 | सावित्री माता मंदिर | पुष्कर | 3 मई, 2016 (वसुंधरा राजे द्वारा) | 700 |
4 | सामोद वीर हनुमान मंदिर | चौमू (जयपुर) | 25 मई, 2019 | 400 |
5 | खोले के हनुमान मंदिर | जयपुर | 28 सितंबर, 2023 (कलराज मिश्र द्वारा) | 436 |
6 | नीमच माता रोपवे | उदयपुर | 22 जनवरी, 2024 (गुलाबचंद कटारिया द्वारा) | 430 |
7 | काजल शिखर माता मंदिर (जीण माता मंदिर) | काजल पहाड़ी (सीकर) | 10 अप्रैल, 2024 | 500 |
राजस्थान में अरावली का महत्व :-
- मरुस्थलीकरण : अरावली एक अवरोधक के रूप में मरुस्थलीकरण को रोकती है या सीमित करती है।
- जैव विविधता : राजस्थान में सर्वाधिक जैव विविधता अरावली में पायी जाती है क्योंकि अरावली में वनस्पति अधिक पायी जाती है।
- अपवाह तंत्र या नदियां : राजस्थान की अधिकांश नदियों का उद्गम अरावली से होता है।
- जनजातियां : राजस्थान की अधिकांश जनजातियां अरावली में पाई जाती हैं, इस कारण अरावली को जनजातियों की शरणस्थली कहा जाता है। जिसमें मुख्यतः मीणा (जयपुर), भील (उदयपुर), गरासिया (सिरोही) जनजातियां रहती हैं।
- खनिज : अरावली में धात्विक खनिज अधिक पाये जाते हैं, क्योंकि अरावली का निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों (धारवाड़ चट्टानों) से हुआ है।
- पर्यटन : अरावली राजस्थान में पर्यटन को आकर्षित करती है, क्योंकि प्रसिद्ध धार्मिक स्थल ‘पुष्कर’ (अजमेर) तथा राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन ‘माउण्ट आबू’ (सिरोही) अरावली में स्थित हैं।
- सभ्यता : अरावली पर्वतमाला को प्राचीन सभ्यताओं (आहड़, बैराठ, गणेश्वर) एवं नवीन नगरीय सभ्यताओं (जयपुर, अजमेर, उदयपुर) की जन्म भूमि कहा जाता है।
- झील : राजस्थान की अधिकांश झीलें (मीठे पानी की झीलें) अरावली में पायी जाती है, जो पर्यटन को आकर्षित करती है। जैसे-
- पिछोला झील (उदयपुर)
- फतेहसागर झील (उदयपुर)
- जयसमंद झील (सलूम्बर)- पहले उदयपुर
- पुष्कर झील (अजमेर)
- आना सागर झील (अजमेर)
- मान सागर झील (जयपुर)
- जल विभाजक रेखा : अरावली को जल विभाजक रेखा भी कहा जाता है, क्योंकि यह राजस्थान के अपवाह तंत्र को दो भागों में बांटती है। जैसे-
- बंगाल की खाड़ी में गिरनी वाली नदियां (पूर्व)
- अरब सागर में गिरनी वाली नदियां (पश्चिम)
- विशेष : राजस्थान में भोराट का पठार भी जल विभाजक का कार्य करता है।
- योजना प्रदेश : अरावली को योजना प्रदेश भी कहा जाता है, क्योंकि राजस्थान सरकार की अधिकांश योजनाएं इससे संबंधित होती है। जैसे-
- आदिवासी विकास
- खनिज उत्पादन
- जैव विविधता संरक्षण
- पर्यटन का विकास
- सभ्यता का संरक्षण
3. पूर्वी मैदान
निर्माण | टैथिस सागर पर (नदियों के द्वारा जमा किये गये अवसादों से) |
निर्माण काल | प्लीस्टोसीन काल |
क्षेत्रफल | 23% |
जनसंख्या | 39% |
जिले | 10 |
मिट्टी | जलोढ़ या कछारी |
जलवायु | आर्द्र |
राजस्थान के पूर्वी मैदान का अध्ययन :-
- अध्ययन की दृष्टि से राजस्थान के पूर्वी मैदान को तीन भागों में बांटा गया है। जैसे-
- माही मैदान
- बनास एवं बाणगंगा मैदान
- चम्बल मैदान
1. माही मैदान :-
- राजस्थान के दक्षिणी मैदान को माही/बागड़/भाटी मैदान कहा जाता है।
- विस्तार : बांसवाड़ा (सर्वाधिक), प्रतापगढ़ (कांठल) एवं डूंगरपुर
- मिट्टी : लाल चिकनी मिट्टी
- उत्पादित फसलें :-
- मक्का : माही कंचन व माही धवल, मक्का की एक उच्च उपज किस्म (HYV) है।
- HYV Full Form : High Yielding Variety
- HYV का पूरा नाम : अधिक उपज देने वाली किस्म
- चावल : माही सुगंधा (चावल की उन्नत किस्म- HYV)
- गन्ना
- मक्का : माही कंचन व माही धवल, मक्का की एक उच्च उपज किस्म (HYV) है।
- प्रतापगढ़ माही नदी के किनारे स्थित है इसलिए माही नदी को ‘कांठल की गंगा’ कहा जाता है।
- राजस्थान में कांठल का मैदान प्रतापगढ़ में माही नदी बनाती है।
- माही नदी को ‘वागड़ की गंगा’ एवं ‘आदिवासियों की गंगा’ कहा जाता है।
नोट :- छप्पन मैदान : बांसवाड़ा एवं प्रतापगढ़ में माही नदी के मैदान को छप्पन का मैदान कहा जाता है क्योंकि छप्पन के मैदान का विस्तार 56 गाँवों में है।
2. बनास एवं बाणगंगा मैदान :-
- बनास मैदान : अरावली के पूर्व में
- मिट्टी : मुख्यतः भूरी मिट्टी
- अध्ययन की दृष्टि के बनास के मैदान को दो भागों में बांटा जाता है। जैसे-
- मेवाड़ मैदान (बनास का दक्षिणी मैदान) :-
- विस्तार : उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, शाहपुरा
- मालपुरा-करौली मैदान (बनास का उत्तरी मैदान) :-
- विस्तार : अजमेर, केकड़ी, टोंक, सवाई माधोपुर
- मेवाड़ मैदान (बनास का दक्षिणी मैदान) :-
- बाणगंगा मैदान (रोही का मैदान) : अरावली के पूर्व में
- विस्तार : भरतपुर (सर्वाधिक), दौसा, जयपुर ग्रामीण, कोटपुतली-बहरोड़
- मिट्टी : मुख्यतः जलोढ़ मिट्टी
- इस मैदान में जनसंख्या घनत्व अधिक है, क्योंकि यहाँ सर्वाधिक उपजाऊ जलोढ़ मृदा पाई जाती है।
3. चम्बल मैदान (बीहड/डांग का मैदान) :-
- चम्बल नदी के अवनालिका अपरदन से निर्मित उत्खात स्थलाकृतियों को बिहड़ कहा जाता है, जो चम्बल के मैदान में पाये जाते हैं।
- विस्तार : चित्तौड़गढ़, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, गंगापुर सिटी
- मिट्टी : काली-ज्लोढ़ मिट्टी
दिशा के अनुसार राजस्थान के मैदान
क्र. सं. | मैदान | दिशा (राजस्थान में) |
---|---|---|
1 | घग्गर का मैदान | उत्तर |
2 | माही का मैदान | दक्षिण |
3 | चम्बल का मैदान | पूर्व |
4 | लूनी का मैदान | पश्चिम |
5 | यमुना का मैदान | उत्तर-पूर्व |
6 | सिंधु का मैदान | उत्तर-पश्चिम |
राजस्थान के पूर्वी मैदान का महत्व :-
- उपजाऊ मैदान :-
- इस क्षेत्र का निर्माण नदियों द्वारा जमा किये गये अवसादों से हुआ है इस कारण यहाँ सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी (मुख्यतः जलोढ़ मिट्टी) पाई जाती है, इसलिए यह क्षेत्र सर्वाधिक उपजाऊ भौतिक प्रदेश है। जैसे- बाणगंगा का मैदान
- जनसंख्या घनत्व : इस क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व अधिक है, क्योंकि यह अधिक उपजाऊ मैदान है।
- औद्योगिक विकास : इस क्षेत्र में अन्य भौतिक प्रदेशों की तुलना में औद्योगिक विकास अधिक हुआ है। जैसे- जयपुर, अलवर।
- आधारभूत संरचना : इस क्षेत्र में आधारभूत संरचना का विकास अधिक हुआ है। जैसे- सड़क, विद्युत, परिवहन एवं शिक्षा।
- पक्षी जैव-विविधता : इस क्षेत्र में पक्षी जैव विविधता सर्वाधिक पायी जाती है। जैसे-
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर)
- बध बारेठा वन्यजीव अभयारण्य (बयाना तहसील, भरतपुर)
4. हाड़ौती पठार
- हाड़ौती के पठार को ‘राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी पठारी प्रदेश’ भी कहा जाता है।
हाड़ौती पठार की सामान्य जानकारी
निर्माण | गोंडवानालैंड पर (बेसाल्ट लावा चट्टानों से) |
निर्माण काल | क्रिटेशियस काल |
औसत ऊँचाई | 500 मीटर |
क्षेत्रफल | 6.89% |
जनसंख्या | 11% |
जिले | 7 |
मिट्टी | काली या कपासी |
जलवायु | अतिआर्द्र |
हाड़ौती पठार का अध्ययन :-
- अध्ययन की दृष्टि के हाड़ौती के पठार को 2 मुख्य एवं 3 गौण भागों में बांटा जाता है। जैसे-
- मुख्य भाग :-
- विन्ध्यन कगार :-
- स्थित : हाड़ौती के दक्षिण-पूर्व में
- विस्तार :-
- हाड़ौती : कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़
- डांग क्षेत्र : सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर
- इसमें बलुआ पत्थर (सर्वाधिक), चूना पत्थर, कोटा स्टोन, लाल पत्थर व हीरा आदि प्रमुख चट्टानें या खनिज पाये जाते हैं।
- दक्कन लावा पठार :-
- स्थित : हाड़ौती के दक्षिण में
- विस्तार : राजस्थान में विस्तार-
- ऊपरमाल पठार : भीलवाड़ा (बिजोलिया) एवं चित्तौड़गढ़ (भैंसरोड़गढ़)
- मालव प्रदेश : प्रतापगढ़ एवं झालावाड़
- विन्ध्यन कगार :-
- गौण भाग :-
- अर्द्धचन्द्राकार पहाड़ी :-
- स्थित : यह पहौड़ी के उत्तर, पश्चिम, दक्षिण में स्थित है।
- इस पहाड़ी का (विस्तार)-
- उत्तरी भाग : बूंदी पहाड़ी (96 किलोमीटर)
- दक्षिण भाग : मुकुंदरा पहाड़ी- (कोटा- प्राथमिकता, झालावाड़) (120 किलोमीटर)
- शाहबाद उच्च भूमि (बारां) :-
- यह मुख्यतः हाड़ौती के पूर्व में स्थित है।
- विस्तार : मुख्यतः बारां
- इस क्षेत्र में घोड़े की नाल जैसी पहाड़ियां (हाडौती- बारां) स्थित है। इन पहाड़ियों के मध्य रामगढ़ क्रेटर झील स्थित है, जो एक उल्का पिण्ड झील है।
- इस क्षेत्र में मुख्यतः सहरिया जनजाति पायी जाती है।
- डग-गंगधार उच्च भूमि :-
- स्थित : झालावाड़
- मिट्टी : मुख्यतः काली मिट्टी
- उत्पादन : सर्वाधिक सोयाबीन
- अर्द्धचन्द्राकार पहाड़ी :-
महान सीमांत भ्रंश (GBF) :-
- GBF : Great Boundary Fault
- यह एक भ्रंश है, जो राजस्थान में अरावली एवं हाड़ौती के मध्य स्थित है।
- विस्तार : चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर
- यह अरावली के पूर्व में तथा हाड़ौती के उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
- यह विश्व धरोहर स्थल में शामिल है।
हाड़ौती पठार का महत्व :-
- कृषि उत्पादकता : इस क्षेत्र में कृषि उत्पादकता अधिक पायी जाती है, क्योंकि यहाँ उपजाऊ मिट्टी (काली मिट्टी) पाई जाती है।
- जनसंख्या घनत्व : इस क्षेत्र में जनसँख्या घनत्व अधिक पाया जाता है, क्योंकि यहाँ उपजाऊ मिट्टी पायी जाती है।
- खनिज : इस क्षेत्र में मुख्यतः पत्थर वाले खनिज अधिक पाए जाते हैं। जैसे- बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, रेड स्टोन (धौलपुरी पत्थर)
- जल उत्पादकता (सतही जल) : इस क्षेत्र में जल उत्पादकता अधिक पायी जाती है, क्योंकि इस क्षेत्र में नदियां अधिक पायी जाती है।
- जलीय जैव विविधता : इस क्षेत्र में जलीय जैव विविधता अधिक पायी जाती है। जैसे- घड़ियाल, मगरमच्छ, उदबिलाव, गांगेय सूस (डॉल्फिन)- गांगेय सूस सर्वाधिक गंगा नदी में पायी जाती है।