परमार वंश की जानकारी के स्त्रोत ‘परमार शिलालेख’ एवं कवि पद्मगुप्त/ परिमल द्वारा रचित पुस्तक ‘नवसाहसाङ्कचरितम्’ हैं।
राजस्थान में परमार वंश की रियासतें
क्र. सं.
रियासतें
1
आबू
2
मालवा
3
वागड़
4
जालौर
5
किराडू
1. आबू का परमार वंश
राजस्थान में परमारों का उत्पत्ति स्थल आबू था।
संस्थापक : धूमराज
आबू में परमार वंश के प्रमुख राजा
क्र. सं.
राजा
1
धूमराज
2
उत्पल राज
3
धरणी वराह
4
धन्धुक
5
विक्रमदेव
6
धारावर्ष
7
सोम सिंह
8
प्रताप सिंह
9
विक्रम सिंह
1. धूमराज
यह आबू में परमारों का संस्थापक था।
इसे परमारों का आदिपुरुष भी कहा जाता है।
2. उत्पल राज
इससे आबू के परमारों की वंशावली प्रारम्भ होती है।
3. धरणी वराह
इसने अपने राज्य को नौ भागों में बाट दिया अतः इसका राज्य ‘नवकोटि मारवाड़’ कहलाया।
गुजरात के चालुक्य राजा मूलराज प्रथम ने आबू पर आक्रमण किया इस समय धवल राठौड़ ने इसे शरण दी। इसका उल्लेख हस्तीकुंडी अभिलेख में मिलता है।
हस्तीकुंडी अभिलेख :-
समय : 997 ई.
यह अभिलेख पाली से प्राप्त हुआ।
यह अभिलेख धवल राठौड़ का है।
4. धन्धुक
गुजरात के चालुक्य राजा भीम प्रथम ने आबू पर आक्रमण किया तथा आबू पर अधिकार कर विमलशाह को आबू का प्रशासक बनाया।
इस समय मालवा के भोज परमार ने इसे चित्तौड़ में शरण दी।
विमलशाह ने धन्धुक तथा भीम प्रथम के बीच समझौता करवाया।
इसकी पुत्री लाहिनी/ लाहिणी देवी ने बसन्तगढ़ (सिरोही) में सूर्य मंदिर तथा सरस्वती बावड़ी का जीर्णोद्धार करवाया।
सरस्वती बावड़ी को लाहिणी बावड़ी भी कहा जाता है, क्योंकि इसका पुनर्निर्माण लाहिनी देवी द्वारा करवाया गया था।
राजस्थान में सर्वाधिक सूर्य मंदिर सिरोही जिले में स्थित हैं।
ऋषभदेव मंदिर (देलवाड़ा) :-
स्थित : देलवाड़ा (माउंट आबू, सिरोही)
निर्माण : विमलशाह
अन्य नाम :-
आदिनाथ जैन मंदिर (भगवान ऋषभदेव को आदिनाथ भी कहा जाता है।)
विमल वसहि मंदिर (विमलशाह द्वारा निर्माण करवाये जाने के कारण)
कर्नल जेम्स टाॅड के अनुसार यह मंदिर ताजमहल के बाद भारत की दुसरी सबसे सुंदर इमारत है।
5. विक्रमदेव
उपाधि : महामण्डलेश्वर
इसने अर्णोराज चौहान तथा कुमारपाल चालुक्य के मध्य हुए संघर्ष में भाग लिया, जिसकी जानकारी ‘द्वयाश्रय महाकाव्य’ (हेमचन्द्र सूरि) तथा ‘कुमारपाल प्रबंध’ (जिनमण्डनोपाध्याय) में मिलती है।
6. धारावर्ष
यह एक तीर से तीन भैंसों को बींध देता था, जिसकी जानकारी धारावर्ष की मूर्ति तथा पाटनारायण मंदिर के अभिलेख (सिरोही, 1287 ई.) से मिलती है।
सिरोही के अचलगढ़ किले में इसकी मूर्ति में इसे एक तीर से तीन भैंसों को बींधते हुए दिखाया गया है।
प्रह्लादन देव :-
बड़ा भाई : धारावर्ष
नाटक : पार्थपराक्रमव्यायोगः
इसने गुजरात में ‘प्रह्लादन पुर’ नामक नगर की स्थापना की।
पृथ्वीराज चौहान के आक्रमण के समय इसने आबू की रक्षा की।
प्रह्लादन देव की जानकारी कीर्ति कौमुदी (सोमेश्वर) पुस्तक से मिलती है।
कायन्द्रा का युद्ध :-
समय : 1178 ई.
स्थान : कायन्द्रा (सिरोही)
मध्य : मोहम्मद गौरी (गजनी का राजा) Vs मूलराज द्वितीय चालुक्य (गुजरात का राजा)
मूलराज द्वितीय की आयु कम होने के कारण उसकी माँ नायिका देवी गुजरात का शासन चलाती थी। अर्थात् मूलराज द्वितीय की संरक्षिका उसकी माँ नायिका देवी थी।
मूलराज द्वितीय (नायिका देवी) के सहयोगी :-
केल्हण (नाडौल)
कीर्तिपाल (जालौर)
धारावर्ष (आबू)
इस युद्ध में मोहम्मद गौरी हार गया।
7. सोम सिंह
सेनापति :-
वस्तुपाल
तेजपाल
नेमिनाथ जैन मंदिर (देलवाड़ा) :-
स्थित : देलवाड़ा (माउंट आबू, सिरोही)
निर्माण :-
वस्तुपाल
तेजपाल
अन्य नाम :-
लूणवसहि या लूणवसाही मंदिर
देवरानी-जेठानी का मंदिर
8. प्रताप सिंह
इसने मेवाड़ के जैत्रसिंह से चन्द्रावती को छीन लिया था।
इसके मंत्री देल्हण ने पाटनारायण मंदिर का पुनर्निर्माण (जीर्णोद्धार) करवाया।
9. विक्रम सिंह
इसके शासन काल में आबू के परमार राजा ‘रावल’ तथा ‘महारावल’ की उपाधियां धारण करने लगे।
कालांतर में जालौर के सोनगरा चौहानों ने आबू के परमार राज्य के पश्चिमी भू-भाग पर अधिकार कर लिया।
लूम्बा देवड़ा ने परमारों से आबू तथा चन्द्रावती छीनकर सिरोही में चौहान राज्य की स्थापना की।
2. मालवा का परमार वंश
इस क्षेत्र में ‘मालव’ नामक जाति निवास करने के कारण इस क्षेत्र को मालवा कहा जाने लगा।
मालवा मध्य प्रदेश में स्थित है।
मालवा के परमारों का उत्पत्ति स्थल भी आबू ही था।
राजधानी (क्रमशः) :-
धार नगरी
उज्जैन
धार नगरी
मालवा में परमार वंश के प्रमुख राजा
क्र. सं.
राजा
1
कृष्णराज
2
मुंज परमार
3
सिंधुराज
4
भोज परमार
1. कृष्णराज
अन्य नाम : उपेन्द्र
इसके बेटे डम्बर सिंह ने वागड़ में परमार राज्य की स्थापना की।
2. मुंज परमार
इसने मेवाड़ के राजा शक्ति कुमार पर आक्रमण किया।
इस समय इसने आहड़ (उदयपुर) को तोड़ दिया तथा चित्तौड़ के किले पर अधिकार कर लिया।
इस समय धवल राठौड़ ने शक्ति कुमार की सहायता की।
इस आक्रमण की जानकारी हस्तिकुंडी अभिलेख में मिलती है।
यह कर्नाटक के चालुक्य राजा तैलप द्वितीय के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया।
उपाधियाँ :-
कवि वृष
उत्पलराज
श्री वल्लभ
अमोघवर्ष
वाक्पतिराज
पृथ्वी वल्लभ
दरबारी विद्वान
क्र. सं.
दरबारी विद्वान
पुस्तक
1
हलायुध
अभिधान रत्नमाला
2
पद्मगुप्त/ परिमल
नवसाहसांक चरित
3
धनंजय
दशरूपकम्
4
धनपाल
तिलक मंजरी
3. सिंधुराज
बड़ा भाई : मुंज परमार
उपाधि : नवसाहसांक
4. भोज परमार
इसने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण (शिव) मंदिर का निर्माण करवाया।
इसने उदयपुर में नागदा के पास भोजसर झील का निर्माण करवाया।
इसने मध्य प्रदेश में भोजताल का निर्माण करवाया।
इसने अपनी राजधानी धार नगरी (मालवा, मध्य प्रदेश) में ‘सरस्वती कंठाभरण’ नामक संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया।
कालांतर में तुर्कों ने इस पाठशाला को तोड़कर इसके स्थान पर ‘कमालमौला मस्जिद’ का निर्माण करवाया।
इस पाठशाला की दिवारों पर ‘कूर्म शतक’ तथा ‘पारिजात मंजरी’ (मदन) पुस्तकों की पंक्तियां लिखवायी गई थी।
मदन, मालवा के राजा अर्जुन वर्मा का दरवारी विद्वान था।
पुस्तकें :-
शृंगार मंजरी कथा
कूर्म शतक (प्राकृत भाषा)
सरस्वती कंठाभरण
समरागण
विदूज्जन मण्डल
3. वागड़ का परमार वंश
संस्थापक : डम्बर सिंह
राजधानी : अर्थूणा (बांसवाड़ा)
वागड़ में परमार वंश के प्रमुख राजा
क्र. सं.
राजा
1
डम्बर सिंह
2
मंडलीक
3
चामुंडराज
1. डम्बर सिंह
पिता : कृष्णराज (मालवा का राजा)
इसने वागड़ में परमार राज्य की स्थापना की।
2. मंडलीक
इसने पाणाहेड़ा (बाँसवाड़ा) में ‘मंडलेश्वर मंदिर’ का निर्माण करवाया।
3. चामुंडराज
पिता : मंडलीक
इसने 1079 ई. में अर्थूणा (बांसवाड़ा) में ‘मंडलेश्वर मंदिर’ का निर्माण करवाया।
1179 ई. में राजा सामन्त सिंह गुहिल ने परमारों से वागड़ छीन लिया।