परिचय
- मानवाधिकार का अर्थ : मानव अधिकार, एक मानव होने के नाते प्राप्त होने वाले वे मौलिक अधिकार हैं, जो माँ के गर्भ से लेकर मृत्यु पर्यन्त उसे प्राप्त रहते हैं एवं जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि के आधार पर वंचित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है। अर्थात् मानव अधिकार विश्व भर में मान्य व्यक्तियों के वे अधिकार हैं जो उनके पूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास हेतु अत्यावश्यक हैं, और जिनका उद्भव मानव की अन्तर्निहित गरिमा से हुआ है।
- विश्व मानव अधिकार सम्मेलन, जो वियना सम्मेलन, 1993 के नाम से प्रसिद्ध है, में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 10 दिसंबर, 1948 की उपलब्धियों का मूल्यांकन किया गया और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकार के क्षेत्र में आगे कार्य करने के लिये आधार तैयार किया गया।
- SHRC का पूरा नाम : State Human Rights Commission (राज्य मानवाधिकार आयोग)
- RSHRC का पूरा नाम : Rajasthan State Human Rights Commission (राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग)
- यह एक वैधानिक/सांविधिक आयोग है, क्योंकि इसकी स्थापना “मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993” के अध्याय 5 की धारा 21 (1) के अंतर्गत की गई है।
- वैधानिक/सांविधिक आयोग : वह आयोग जिसकी स्थापना किसी अधिनियम के माध्यम से की गई हो, वैधानिक/सांविधिक आयोग कहलाता है।
- स्थापना की अधिसूचना : 18 जनवरी, 1999 को जारी की गई थी। (तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत)
- स्थापना : 23 मार्च, 2000 (मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 21 (1) के अंतर्गत)
- कार्य प्रारम्भ : 23 मार्च, 2000
- मुख्यालय : जयपुर (स्थापना से वर्तमान तक)
- यह एक सलाहकारी आयोग है, क्योंकि इसकी सलाह राज्य सरकार हेतु बाध्यकारी नहीं है।
- यह केवल राज्य व समवर्ती सूची के विषयों पर सुनवाई करता है।
- मानवाधिकार की परिभाषा :-
- ‘मानवाधिकार’ शब्द “मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993” की धारा 2 (घ) में परिभाषित है, जिसके अंतर्गत मानवाधिकार से अभिप्राय है संविधान में उल्लिखित अथवा अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में अंगीभूत व्यक्ति की जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा से संबंधित अधिकार जो न्यायालय द्वारा लागू योग्य हो।
- ‘मानवाधिकार’ की परिभाषा इस प्रकार काफी व्यापक है, जिसके अन्तर्गत वे सब मुद्दे आते हैं जो जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के परिधि के भीतर हैं।
- मुख्य उद्देश्य : राज्य में मानव अधिकारों की रक्षा हेतु एक निगरानी संस्था के रूप में कार्य करना है।
- मानव अधिकार के अन्य नाम :-
- मूल अधिकार (Fundamental Rights)
- आधारभूत अधिकार (Basic Rights)
- अन्तर्निहित अधिकार (Inherent Rights)
- प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights)
- जन्म अधिकार (Birth Rights)
- मानव अधिकार दिवस :-
- अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस :-
- दिन : 10 दिसंबर
- शुरूआत : संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1950 में 10 दिसंबर के दिन को “अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस” घोषित किया गया।
- कारण : 10 दिसंबर, 1948 को पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अंगीकार किया था, जिसे ‘मानव अधिकारों की सार्वभौमिक/सर्वव्यापी घोषणा’ (UDHR) के नाम से भी जाना जाता है।
- भारत में मानव अधिकार दिवस :-
- दिन : 10 दिसंबर
- थीम (2024) : “हमारे अधिकार, हमारा भविष्य, अभी”
- अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस :-
मानवाधिकारों हेतु निर्मित संस्थाएं
स्तर | संस्था |
---|---|
अंतर्राष्ट्रीय/ विश्व | संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) |
भारत | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) |
राज्य (भारत) | राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) |
संरचना

समय | सदस्य |
---|---|
स्थापना से 2006 तक | 1 अध्यक्ष + 4 सदस्य = 5 |
2006 से वर्तमान तक | 1 अध्यक्ष + 2 सदस्य = 3 |
संरचना क्रमशः | वर्तमान | विशेषताएं |
---|---|---|
अध्यक्ष | न्यायमूर्ति श्री गंगा राम मूलचंदानी | 1 |
सदस्य | 1. न्यायमूर्ति श्री राम चंद्र सिंह झाला 2. श्री अशोक कुमार गुप्ता | 𑇐 स्थापना से 2006 तक- 4 𑇐 2006 से वर्तमान तक- 2 |
सचिव | श्री घनेंद्र भान चतुर्वेदी (IAS) | 𑇐 IAS अधिकारी (राज्य सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी से कम स्तर का अधिकारी नहीं हो सकता।) 𑇐 आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी |
उप-सचिव | सुश्री प्रगति आसोपा (RAS) | RAS अधिकारी |
अन्वेषण एजेन्सी (जाँच दल) :-
- आयोग में सदस्यों के समान अपनी एक अन्वेषण एजेन्सी (जाँच दल) भी है, जिसका नेतृत्व ऐसे पुलिस अधिकारी जो महानिरीक्षक पुलिस (IG) के पद से कम स्तर का नहीं हो, द्वारा किया जाता है।
- आयोग की अपनी एक अन्वेषण एजेन्सी है, जिसका नेतृत्व ऐसे पुलिस अधिकारी जो महानिरीक्षक पुलिस के पद से कम स्तर का नहीं हो, द्वारा किया जाता है।
- वर्तमान प्रमुख : श्री सुष्मित विश्वास (अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक)
वर्तमान राजनीतिक पदाधिकारी
नाम | पदनाम | पार्टी |
---|---|---|
श्री भजन लाल शर्मा | मुख्यमंत्री, राजस्थान सरकार | भारतीय जनता पार्टी (BJP) |
श्री अविनाश गहलोत | कैबिनेट मंत्री, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, राजस्थान सरकार | भारतीय जनता पार्टी (BJP) |
अध्यक्ष व सदस्य
अध्यक्ष | सदस्य | |
---|---|---|
योग्यता | 𑇐 स्थापना से 2019 तक- उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। 𑇐 2019 से वर्तमान तक- किसी भी राज्य उच्च न्यायालय का सेवारत्त या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश होना चाहिए। | 𑇐 पहला सदस्य- उच्च न्यायालय या जिला न्यायालय का सेवारत्त या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होना चाहिए। (जिला न्यायाधीश के रूप में न्यूनतम 7 वर्ष का अनुभव) 𑇐 दूसरा सदस्य- वह व्यक्ति जिसे मानवाधिकारों का विशेष ज्ञान हो। |
नियुक्ति (धारा 22) | 𑇐 राज्यपाल द्वारा एक समिति की सिफारिश पर जिसमें निम्न सदस्य शामिल होते हैं- 1. मुख्यमंत्री (अध्यक्ष) 2. विधानसभा का अध्यक्ष 3. विधानसभा में विपक्ष का नेता (नेता प्रतिपक्ष) 4. गृह मंत्री 𑇐 यदि राज्य में द्विसदनात्मक व्यवस्था (विधानसभा व विधानपरिषद) का प्रावधान हो तो समिति में निम्न 2 सदस्य और शामिल होते हैं- 5. विधानपरिषद का अध्यक्ष 6. विधानपरिषद में विपक्ष का नेता (नेता प्रतिपक्ष) | अध्यक्ष के समान |
पुनर्नियुक्ति (धारा 37) | 𑇐 स्थापना से 2019 तक- नहीं 𑇐 2019 से वर्तमान तक- हाँ | 𑇐 स्थापना से 2019 तक- पुनर्नियुक्ति केवल 5 वर्ष की अवधि के लिए। 𑇐 2019 से वर्तमान तक- पुनर्नियुक्ति में 5 वर्ष की समय सीमा समाप्त कर दी गई है। |
शपथ | राज्यपाल या राज्यपाल द्वारा नामित किसी व्यक्ति द्वारा | राज्यपाल या राज्यपाल द्वारा नामित किसी व्यक्ति द्वारा |
कार्यकाल (धारा 24) | 𑇐 स्थापना से 2019 तक- 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो। 𑇐 2019 से वर्तमान तक- 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो। | 𑇐 स्थापना से 2019 तक- 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो। 𑇐 2019 से वर्तमान तक- 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो। |
वेतन, भत्ते एवं सेवा की शर्तें (धारा 26) | 𑇐 निर्धारण- राज्य सरकार द्वारा 𑇐 उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान। 𑇐 वर्तमान वेतन- ₹ 2,50,000/- प्रतिमाह 𑇐 नोट- नियुक्ति के बाद इनमें किसी प्रकार का अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता। | 𑇐 निर्धारण- राज्य सरकार द्वारा 𑇐 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान। 𑇐 वर्तमान वेतन- ₹ 2,25,000/- प्रतिमाह 𑇐 नोट- नियुक्ति के बाद इनमें किसी प्रकार का अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता। |
त्यागपत्र (इस्तीफा) (धारा 23) | राज्यपाल | राज्यपाल |
निष्कासन (धारा 23) | 𑇐 निम्न 2 मामलोंं में सर्वोच्च न्यायालय की जाँच के पश्चात दोषी पाए जाने पर राष्ट्रपति द्वारा- 1. कदाचार/ दुर्व्यवहार 2. असमर्थता 𑇐 निम्न 3 मामलों में राष्ट्रपति द्वारा बिना किसी जाँच के- 1. दिवालियापन 2. नैतिक पतन 3. लाभ का पद धारण करने पर | अध्यक्ष के समान |
नोट : यदि किसी उच्च न्यायालय के सेवारत्त न्यायाधीश को आयोग में अध्यक्ष या सदस्य नियुक्त करना है, तो उससे पहले उसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अनुमति लेनी आवश्यक है।
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम
भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु अधिनियम पहली बार 1993 में लाया गया था, जिसमें अब तक दो बार (2006, 2019) संशोधन किया जा चुका है।
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 :-
- लागू : 28 सितंबर, 1993 (भारत सरकार द्वारा)
- राष्ट्रपति : शंकर दयाल शर्मा
- उपराष्ट्रपति : के. आर. नारायणन
- प्रधानमंत्री : नरसिंह राव (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- गृह मंत्री : शंकरराव चव्हाण (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- संसद द्वारा पारित इस अधिनियम में राष्ट्रीय स्तर पर “राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग” (NHRC) एवं राज्य स्तर पर “राज्य मानव अधिकार आयोग” (SHRC) और मानवाधिकार अदालतों की स्थापित करने का प्रावधान है।
- इस अधिनियम की धारा 2 (घ) में मानव अधिकारों को परिभाषित किया गया है।
- इस अधिनियम में 8 अध्याय एवं 43 भाग हैं।
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की महत्वपूर्ण धाराएं
अध्याय | धारा | प्रावधान |
---|---|---|
5 | 21 | आयोग की संरचना या आयोग का प्रावधान |
5 | 22 | अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया |
5 | 23 | अध्यक्ष व सदस्यों की निष्कासन प्रक्रिया (त्यागपत्र) |
5 | 24 | अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल |
5 | 25 | कार्यवाहक अध्यक्ष की नियुक्ति प्रक्रिया (राज्यपाल द्वारा सदस्यों में से) |
5 | 26 | अध्यक्ष व सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं सेवा शर्तें |
5 | 27 | आयोग के कर्मचारी |
5 | 28 | आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन (आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राज्य सरकार को सौंपता है।) |
5 | 29 | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से संबंधित कुछ प्रावधानों को राज्य मानवाधिकार आयोग पर लागू करना। (धारा 9, 10, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18) |
6 | 30 | मानवाधिकार न्यायालय |
6 | 31 | विशेष लोक अभियोजक |
7 | 33 | आयोग की वित्तीय स्वायत्तता (राज्य सरकार द्वारा आयोग को वार्षिक अनुदान) |
8 | 35 | आयोग के खाते एवं लेखा परीक्षा |
8 | 37 | अध्यक्ष व सदस्यों की पुनर्नियुक्ति |
8 | 41 | नियम बनाने की राज्य सरकार की शक्ति |
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के आधिकारिक दस्तावेज़ के लिए यहां क्लिक करें
मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 :-
- इस अधिनियम द्वारा आयोग में सदस्यों की संख्या 5 (1 अध्यक्ष + 4 सदस्य) से घटाकर 3 (1 अध्यक्ष + 2 सदस्य) कर दी गई।
- राष्ट्रपति : डॉ. ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम
- उपराष्ट्रपति : भैरों सिंह शेखावत
- प्रधानमंत्री : मनमोहन सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
- गृह मंत्री : शिवराज पाटिल
मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 के आधिकारिक दस्तावेज़ के लिए यहां क्लिक करें
मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2019 :-
- प्रस्ताव : लोकसभा में 08 जुलाई, 2019 (गृह मंत्री अमित शाह द्वारा)
- लोकसभा में पारित : 19 जुलाई, 2019
- राज्यसभा में पारित : 22 जुलाई, 2019
- मंत्रालय : गृह मंत्रालय
- राष्ट्रपति : राम नाम कोविन्द
- उपराष्ट्रपति : वेंकैया नायडू
- प्रधानमंत्री : नरेन्द्र मोदी (भारतीय जनता पार्टी)
- गृह मंत्री : अमित शाह (भारतीय जनता पार्टी)
- यह अधिनियम “मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993” में संशोधन हेतु लाया गया था।
- योग्यता (अध्यक्ष) : किसी भी राज्य उच्च न्यायालय का सेवारत्त या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश हो सकता है। (2019 से पहले अध्यक्ष पद हेतु उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को नियुक्ति किया जाता था।)
- कार्यकाल (अध्यक्ष, सदस्य) : 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो। (2019 से पहले 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो, था।)
- आयोग में पदेन सदस्यों का प्रावधान किया गया। जैसे-
- अध्यक्ष, राज्य अनुसूचित जाति आयोग
- अध्यक्ष, राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग
- अध्यक्ष, राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग
- अध्यक्ष, राज्य अल्पसंख्यक आयोग
- अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग
- अध्यक्ष, राज्य बाल संरक्षण आयोग
- आयुक्त, राज्य दिव्यांग बोर्ड
- पुनर्नियुक्ति : इस अधिनियम के तहत आयोग का अध्यक्ष पुनर्नियुक्ति का पात्र होगा तथा सदस्यों की पुनर्नियुक्ति में पांच वर्ष की समय सीमा को हटाया गया है। (2019 से पहले आयोग के अध्यक्ष की पुनर्नियुक्ति का प्रावधान नहीं था और सदस्यों की पुनर्नियुक्ति केवल 5 वर्ष की अवधि के लिए होती थी।)
- केंद्र शासित प्रदेश : इस अधिनियम के तहत केंद्र शासित प्रदेशों में मानवाधिकार से संबंधित कार्यों को केंद्र सरकार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) को सौंप सकती है। जैसे- दिल्ली के मानवाधिकार संबंधी कार्य राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) द्वारा किए जाएंगे।
मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2019 के आधिकारिक दस्तावेज़ के लिए यहां क्लिक करें
आयोग के कार्य एवं भूमिका
- लोक सेवकों के विरुद्ध मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित शिकायते प्राप्त करना। (राज्य व समवर्ती सूची के विषयों पर)
- आयोग को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (CPC 1908) के अंतर्गत निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त है-
- लोक सेवक को समन/नोटिस जारी करना।
- लोक सेवक को गवाही/साक्ष्य हेतु बुलाना।
- किसी सरकारी कार्यालय से सरकारी दस्तावेज प्राप्त करना।
- लोक सेवक का बयान शपथ पत्र पर लेना
- आयोग जाँच के पश्चात-
- लोक सेवक के विरुद्ध राज्य सरकार को अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश करना।
- राज्य सरकार को पीड़ित हेतु क्षतिपूर्ति या मुआवजें की सिफारिश करना।
- न्यायालय में पीड़ित की ओर से अपील करना।
- लोक सेवक के विरुद्ध राज्य सरकार को जुर्माने की सिफारिश करना।
- राज्य सरकार के सरकारी संस्थाओं का निरीक्षण करना। जैसे- जेल, पुलिस थाने, मानसिक पुनर्वास केंद्र एवं नारी निकेतन आदि।
- न्यायालय की अनुमति से, न्यायालय में विचाराधीन मामलों की सुनवाई करना।
- मानवाधिकार संरक्षण हेतु कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों (NGO) को प्रोत्साहित करना।
- मानवाधिकार क्षेत्र में जागरूकता हेतु सेमिनार व कांफ्रेंसों का आयोजन करवाना।
- राज्य सरकार को वार्षिक प्रतिवेदन सौंपना।
- मानवाधिकार संरक्षण में बाधक तत्वों की पहचान करना।
- जिले में जिला मानवाधिकार इकाई की स्थापना करना।
- मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध तथा संवर्धन करना।
- मानवाधिकार के संरक्षण हेतु संविधान या किसी अन्य विधि का पुनर्विलोकन करना।
- मानवाधिकार से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों की समीक्षा तथा उनके क्रियान्वयन हेतु सिफारिशें करना।
- ‘मानवाधिकार संदेश’ नामक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन करना।
- आयोग स्वतः संज्ञान द्वारा भी सुनवाई कर सकता है।
आयोग को स्वायत्त, स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाये रखने हेतु किए गए उपाय
- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 द्वारा आयोग को सांविधिक/वैधानिक दर्जा दिया गया है।
- अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति की पारदर्शी प्रक्रिया। (राज्यपाल द्वारा एक समिति की सिफारिश पर)
- अध्यक्ष व सदस्यों के कार्यकाल का स्थायित्व। (3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो)
- आयोग की वित्तीय स्वायत्तता। (धारा 33)
- अध्यक्ष व सदस्यों के निष्कासन की जटिल प्रक्रिया। (राष्ट्रपति द्वारा)
वे मामले जो आयोग के क्षेत्राधिकार से बाहर हैं
- अस्पष्ट या अनाम या अपठनीय, तुच्छ या अकारण किसी को परेशान करने वाले।
- किसी अन्य आयोग के समक्ष लम्बित मामले।
- एक वर्ष से अधिक पुराने प्रकरण।
- सिविल विवाद से संबंधित जैसे संपत्ति के अधिकार, संविदागत बाध्यताएं आदि।
- सेवा या श्रम प्रकरण या औद्योगिक विवादों से संबंधित मामले।
- आरोप जो किसी लोक सेवक के विरुद्ध नहीं हो।
- आरोप जो किसी सेवानिवृत्त लोक सेवक से संबंधित हो।
- जहां अभिकथनों से मानवाधिकारों के किसी विनिर्दिष्ट अतिक्रमण का मामला नहीं बनता हो।
- जहां मामला किसी न्यायालय या अधिकरण के समक्ष विचाराधीन हो।
- जहां मामला किसी न्यायिक अभिमत या आयोग के किसी विनिश्चय के अन्तर्गत आता हो।
- जहां आयोग को किसी अन्य प्राधिकारी को प्रेषित परिवाद की प्रति प्राप्त हो।
- जहां मामला आयोग के कार्यक्षेत्र के बाहर हो।
- संघ सूची से संबंधित मामले।
- यदि शिकायत सैन्य प्रशासन से संबंधित हो।
- व्यक्तिगत मामले।
आयोग की कमियाँ
- यह केवल एक सलाहकारी निकाय है, इसलिए इसे दंतविहीन/शाकाहारी बाघ की संज्ञा दी गई है।
- आयोग को 1 वर्ष से पुराने मामलों में जाँच का अधिकार नहीं है।
- आयोग को सैन्य प्रशासन से संबंधित मामलों में जाँच का अधिकार नहीं है।
- आयोग के वार्षिक प्रतिवेदन पर किसी प्रकार का विचार विमर्श नहीं होना।
- आयोग को स्थानीय पुलिस के सहयोग का अभाव है।
- आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों के पद रिक्त रहना।
- आयोग में शिकायतों का अत्यधिक लंबित रहना।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच. एल. दत्तू ने राज्य मानवाधिकार आयोग को दंतविहीन/शाकाहारी बाघ की संज्ञा दी है।
आयोग में सुधार या आगे की राह
- आयोग की सलाह राज्य सरकार हेतु बाध्यकारी होनी चाहिए।
- यदि सरकार आयोग की सलाह ना माने तो एक माह के अंदर जवाब देना चाहिए।
- आयोग को 1 वर्ष से पूराने मामलों में भी जाँच का अधिकार दिया जाना चाहिए।
- आयोग को सैन्य प्रशासन से संबंधित मामलों में भी जाँच का अधिकार दिया जाना चाहिए।
- आयोग में अत्यधिक लंबित मामले होने के कारण सरकार को समय पर अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति करनी चाहिए।
- आयोग के वार्षिक प्रतिवेदन पर विधानसभा में विचार विमर्श होना चाहिए ताकि आयोग में सुधार किये जा सके।
- सरकार द्वारा स्थानीय पुलिस को ऐसे निर्देश दिए जाये जिससे स्थानीय पुलिस आयोग को सहयोग करे।
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्षों की सूची
क्र. सं. | अध्यक्ष का नाम | कार्यकाल | विशेषताएं |
---|---|---|---|
1 | न्यायाधिपति श्रीमती कान्ता भट्नागर | 23-03-2000 से 11-08-2000 तक | 𑇐 ये प्रथम, प्रथम महिला एवं एकमात्र महिला अध्यक्ष हैं। 𑇐 ये न्यूनतम कार्यकाल वाली अध्यक्ष हैं। 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रही- 1. पहली महिला मुख्य न्यायाधीश, मद्रास उच्च न्यायालय 2. न्यायाधीश (1968), राजस्थान उच्च न्यायालय |
2 | न्यायाधिपति श्री एस. सगीर अहम्मद | 16-02-2001 से 03-06-2004 तक | 𑇐 ये एकमात्र अल्पसंख्यक अध्यक्ष हैं। 𑇐 ये एकमात्र ऐसे अध्यक्ष हैं जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी रहे हैं। 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. 6 दिसंबर, 1961 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील के रूप में नामांकित हुए। 2. लखनऊ पीठ के समक्ष सिविल पक्ष में प्रैक्टिस की। 3. 1971 से उत्तर रेलवे और 1976 से उत्तर प्रदेश सरकार के स्थायी वकील थे। 4. 2 नवंबर, 1981 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्ति हुए। 5. 30 दिसंबर, 1982 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए। 6. 1 नवंबर, 1993 को कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित। 7. 18 मार्च, 1994 को कश्मीर उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश नियुक्ति हुए। 8. 23 सितंबर, 1994 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित। 9. 6 मार्च, 1995 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए। |
3 | न्यायाधिपति श्री अमर सिंह गोदारा (कार्यवाहक अध्यक्ष) | 04-06-2004 से 06-07-2005 तक | 𑇐 ये प्रथम कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। |
4 | न्यायाधिपति श्री एन. के. जैन (नगेन्द्र कुमार जैन) | 16-07-2005 से 15-07-2010 तक | 𑇐 ये सर्वाधिक कार्यकाल वाले अध्यक्ष हैं। 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय 2. मुख्य न्यायाधीश, मद्रास उच्च न्यायालय 3. अध्यक्ष, राजस्थान विधिज्ञ परिषद 4. अंशकालिक व्याख्याता, जोधपुर विश्वविद्यालय 5. मुख्य न्यायाधीश, कर्नाटक उच्च न्यायालय 6. लोकायुक्त, हिमाचल प्रदेश 7. अध्यक्ष, हिमाचल प्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग |
5 | न्यायाधिपति श्री जगत सिंह (कार्यवाहक अध्यक्ष) | 19-07-2010 से 09-10-2010 तक | |
6 | श्री पुखराज सिरवी (कार्यवाहक अध्यक्ष) | 26-10-2010 से 13-04-2011 तक | |
7 | श्री एच. आर. कुडी (कार्यवाहक अध्यक्ष) | 14-06-2012 से 10-03-2016 तक | |
8 | न्यायाधिपति श्री प्रकाश टाटिया | 11-03-2016 से 25-11-2019 तक | 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. मुख्य न्यायाधीश व न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय 2. मुख्य न्यायाधीश, झारखंड उच्च न्यायालय 3. न्यायाधीश, दिल्ली उच्च न्यायालय |
9 | न्यायाधिपति श्री महेश चन्द्र शर्मा (कार्यवाहक अध्यक्ष) | 05-12-2019 से 24-01-2021 तक | |
10 | न्यायाधिपति श्री जी. के. व्यास (न्यायाधिपति श्री गोपाल कृष्ण व्यास) | 25-01-2021 से 24-01-2024 तक | 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. अध्यक्ष, राजस्थान उच्च न्यायालय की विधिक सेवा समिति 2. सदस्य, राजस्थान उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति 3. अध्यक्ष, राजस्थान न्यायिक अकादमी 4. अध्यक्ष, न्यायिक मजिस्ट्रेटों के चयन की निचली न्यायिक समिति व चयन बोर्ड 5. न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय |
11 | न्यायाधिपति श्री रामचन्द्र सिंंह झाला (कार्यवाहक अध्यक्ष) | 12-02-2024 से 27-06-2024 तक | |
12 | न्यायाधिपति श्री गंगाराम मूलचन्दानी | 𑇐 28-06-2024 से लगातार | 𑇐 ये वर्तमान अध्यक्ष हैं। 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय (11 अप्रैल, 2016 से 11 अप्रैल, 2020 तक) |
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्यों की सूची
क्र. सं. | सदस्य का नाम | कार्यकाल | विशेषताएं |
---|---|---|---|
1 | न्यायाधिपति श्री अमर सिंह गोदारा | 07-07-2000 से 06-07-2005 तक | 𑇐 ये प्रथम कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय |
2 | श्री आर. के. आकोदिया | 25-03-2000 से 24-03-2005 तक | |
3 | श्री बी. एल. जोशी | 25-03-2000 से 31-03-2004 तक | 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. 1957 में राजस्थान पुलिस सेवा में चयन हुआ। 2. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में इस्लामाबाद और लंदन में भारतीय उच्चायोगों और वाशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास के साथ कार्य किया। 3. 9 जून, 2004 को दिल्ली के उप-राज्यपाल नियुक्त हुए। 4. अप्रैल, 2007 में मेघालय के राज्यपाल नियुक्त हुए। 5. 29 अक्टूबर, 2007 को उत्तराखंड के राज्यपाल नियुक्त हुए। 6. 28 जुलाई, 2009 को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त हुए। |
4 | प्रोफेसर आलमशाह खान | 24-03-2000 से 17-05-2003 तक | |
5 | श्री नमो नारायण मीणा | 11-09-2003 से 23-03-2004 तक | 𑇐 ये न्यूनतम कार्यकाल वाले सदस्य हैं। (1 वर्ष) 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADGP), राजस्थान पुलिस 2. 2004 से 2009 तक संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (UPA) सरकार में पर्यावरण और वन राज्यमंत्री तथा वित्त मंत्रालय के व्यय, बैंकिंग और बीमा विभाग में राज्यमंत्री रहे। (पूर्व केंद्रीय मंत्री) 𑇐 इन्हें राष्ट्रपति पुलिस पदक और राष्ट्रपति के विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया है। |
6 | न्यायाधिपति श्री जगत सिंह | 10-10-2005 से 09-10-2010 तक | 𑇐 ये कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय (जोधपुर) |
7 | श्री धर्म सिंह मीणा | 07-07-2005 से 06-07-2010 तक | 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजस्थान |
8 | श्री पुखराज सिरवी | 15-04-2006 से 13-04-2011 तक | 𑇐 ये कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। 𑇐 ये सर्वाधिक कार्यकाल वाले सदस्य हैं। (7 वर्ष) 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. 1967 में राजस्थान पुलिस सेवा में चयन हुआ। 2. अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक (AIGP) 3. पुलिस महानिरीक्षक (IGP) 𑇐 इन्हें दो बार राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया। |
9 | श्री एच. आर. कुडी/कुरी | 01-09-2011 से 31-08-2016 तक | 𑇐 ये कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। |
10 | डॉ. एम. के. देवराजन | 01-09-2011 से 31-08-2016 तक | 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक, राजस्थान लघु उद्योग निगम 2. सहायक निदेशक, इंटेलिजेंस ब्यूरो 3. राजस्थान पुलिस के शॉफ्ट रिकल्स प्रशिक्षण कार्यक्रमों के प्रभारी रहे। 4. पुलिस महानिरीक्षक (IGP) 5. राजस्थान पुलिस के सामुदायिक पुलिसिंग कार्यक्रमों में नोडल अधिकारी रहे। 𑇐 इन्होंने 4 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिनमें से 3 पुरस्कार इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ चीफ्स ऑफ पुलिस से प्राप्त हैं। |
11 | न्यायाधिपति श्री महेश चंद्र शर्मा | 03-10-2018 से 29-04-2021 तक | 𑇐 ये कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय 2. अतिरिक्त महाधिवक्ता, राजस्थान |
12 | श्री महेश गोयल | 25-01-2021 से 24-01-2024 तक | 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. कमांडेंट, राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी (RAC) 2. पुलिस उप महानिरीक्षक (DIG), राजस्थान 3. पुलिस महानिरीक्षक (IGP) (इंटेलिजेंस), राजस्थान 𑇐 इन्हें 2000 में राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया। |
13 | न्यायाधिपति श्री रामचन्द्र सिंह झाला | 16-01-2023 से लगातार | 𑇐 ये वर्तमान सदस्य हैं। 𑇐 ये कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। 𑇐 ये निम्नलिखित पदों पर भी रहे- 1. न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय 2. नैतिकता आयुक्त, RCA |
14 | श्री अशोक कुमार गुप्ता | 28-06-2024 से लगातार | 𑇐 ये वर्तमान सदस्य हैं। 𑇐 ये सेवानिवृत्त IPS अधिकारी हैं। |
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- आयोग में केवल लोक सेवक के विरुद्ध ही शिकायत की जा सकती है, अन्य किसी के विरुद्ध शिकायत नहीं की जा सकती है।
- आयोग बिना किसी अपील या शिकायत भी मामले की सुनवाई कर सकता है।
- राजस्थान सरकार द्वारा राज्य मानवाधिकार आयोग नियम विनियम 2001 में बनाये गये थे।
- आयोग को 7 दिवस में अपील पर सुनवाई करना आवश्यक है। (अतिआवश्यक मामलों में 24 घंटे में सुनवाई)
- ‘जयपुर घोषणा’ का संबंध इस आयोग से है।
आयोग की गतिविधियां
- आयोग के कार्य क्षेत्र में सभी प्रकार के वे मानव अधिकार आते हैं जिनमें नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।
- आयोग हिरासत में हुई मौतों, बलात्कार, उत्पीड़न, पुलिस और जेलों में ढांचागत सुधार, सुधार गृहों, मानसिक अस्पतालों की हालत सुधारने के मामलों पर विशेष ध्यान दे रहा है।
- समाज के सबसे अधिक कमजोर वर्ग के लोगों के अधिकारों का संरक्षण करने की दृष्टि से, 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को आवश्यक तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान करने, गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करने, माताओं और बच्चों के कल्याण हेतु प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की, आयोग ने सिफारिशें की हैं।
- समानता और न्याय का हनन कर, नागरिकों के खिलाफ किए जा रहे अत्याचारों, विस्थापित हुए लोगों की समस्याएं, और भूख के कारण लोगों की मौंतें, बाल श्रमिकों का शोषण, बाल वेश्यावृत्ति, महिलाओं के अधिकारों आदि पर आयोग ने अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
अपनी व्यापक रूप से बढ़ती हुई जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए आयोग ने शिकायतों की जाँच के अलावा निम्नलिखित कार्यों को भी अपने हाथ में लिया है:
- पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के अधिकार के दुरूपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश।
- जिला मुख्यालय में ‘मानव अधिकार प्रकोष्ठक’ की स्थापना।
- हिरासत में हुई मौतों, बलात्कार और मानवीय उत्पीड़न को रोकने के उपाय।
- व्यवस्थागत सुधार-
- पुलिस
- जेल
- नजर बन्दी केंद्र
- माताओं में अल्प रक्तता और बच्चों में जन्मजात मानसिक अपंगता की रोकथाम।
- एचआईवी/एड्स पीड़ित लोगों के मानव अधिकार।
- मानसिक अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार।
- हाथ से मैल ढोने की प्रथा समाप्त करने के लिए प्रयास।
- गैर-अधिसूचित और खानाबदोश जनजातियों के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए सिफारिशें करना।
- जनस्वास्थ्य प्रदूषण नियंत्रण, खाद्य पदार्थों में मिलावट की रोकथाम, औषधियों में मिलावट व अवधि पार औषधियों पर रोक।
- धर्म, जाति, उपजाति आदि के बहिष्कार के मामलात।
- मानव अधिकारों की शिक्षा का प्रसार और अधिकारों के प्रति जागरूकता में वृद्धि।
मानव अधिकार न्यायालय
- प्रावधान : इसका प्रावधान “मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993” की धारा 30 में किया गया है।
- मानव अधिकारों के उल्लंघन से उत्पन्न अपराधों की शीघ्र सुनवाई करने के उद्देश्य से, राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति से, अधिसूचना द्वारा, प्रत्येक जिले के लिए एक सत्र न्यायालय को उक्त अपराधों की सुनवाई के लिए मानव अधिकार न्यायालय के रूप में निर्दिष्ट कर सकती है: बशर्ते कि इस धारा की कोई बात लागू नहीं होगी यदि-
- सत्र न्यायालय पहले से ही विशेष न्यायालय के रूप में निर्दिष्ट है; या
- ऐसे अपराधों के लिए, किसी अन्य कानून के तहत पहले से ही एक विशेष न्यायालय गठित है।
शिकायतों का पंजीयन एवं सुनवाई की प्रक्रिया
- कार्य संचालन हेतु आयोग में “राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग (प्रक्रिया) विनियम, 2001” लागू है। जिसका क्रियान्वयन 19 जनवरी, 2001 को किया गया था।
- शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया :-
- परिवादों को किसी भी माध्यम से यथा स्वयं उपस्थित होकर, पत्र द्वारा, फैक्स द्वारा, मेल द्वारा आदि के माध्यम से प्रेषित किया जा सकता है।
- समाचार-पत्र में छपी खबरों पर भी आयोग द्वारा प्रसंज्ञान लिया जाता है।
- परिवाद हिन्दी या अंग्रेजी या संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी भाषा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- परिवाद के साथ कोई फीस देय नहीं है।
- आयोग परिवाद के विषय में अतिरिक्त सूचनाऐं जो आवश्यक समझता है, मंगा सकता है।
- आवश्यकतानुरूप शपथ-पत्र प्रस्तुत करने के निर्देश भी दे सकता है।
आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएं
क्र. सं. | भाषा |
---|---|
1 | असमिया |
2 | उड़िया |
3 | उर्दू |
4 | कन्नड़ |
5 | कश्मीरी |
6 | कोंकणी |
7 | गुजराती |
8 | डोगरी |
9 | तमिल |
10 | तेलुगू |
11 | नेपाली |
12 | पंजाबी |
13 | बांग्ला |
14 | बोड़ो |
15 | मणिपुरी |
16 | मराठी |
17 | मलयालम |
18 | मैथिली |
19 | संथाली |
20 | संस्कृत |
21 | सिंधी |
22 | हिंदी |
आयोग द्वारा शिकायतों की जाँच प्रक्रिया :-
- आयोग सरकार या प्राधिकरण से सूचना या रिपोर्ट मांग सकता है तथा वह अपनी ओर से स्वयं शिकायत की जाँच कर सकता है।
- यदि सूचना या रिपोर्ट प्राप्त होने पर आयोग संतुष्ट हो जाता है कि अब आगे कोई जाँच करने की जरूरत नहीं है अथवा संबंधित राज्य सरकार या प्राधिकारी द्वारा अपेक्षित जाँच शुरू कर दी गई है तो आयोग ऐसी शिकायत पर आगे जाँच नहीं करेगा।